जयललिता ने 1965 में अपनी पहली तमिल फिल्म “वेन्निरा अदाई” (सफेद लिबास) महज 16-17 साल की उम्र में की थी। अजीब संयोग ये रहा कि इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने “एडल्ट” श्रेणी का सर्टिफिकेट दिया था। इस तरह नाबालिग जयललिता खुद अपनी फिल्म सिनेमाघर में जाकर नहीं देख सकती थीं। माना जाता है कि उनकी फिल्म को एक गाने की वजह से एडल्ट सर्टिफिकेट दिया गया था। इस गाने में स्लीवलेस ब्लाउज और साड़ी में नाचती जयललिता को झरने में नहाते हुए दिखाया गया था। सेंसर बोर्ड को ये दृश्य नागवार गुजरा और उसने फिल्म को “केवल बालिगों के लिए” श्रेणी का प्रमाणपत्र दे दिया। इसलिए जयललिता खुद अपनी फिल्म सिनेमाघर में नहीं देख पाई थी। फिल्म में जयललिता ने एक विधवा का रोल किया था जिसके पति की शादी के कुछ ही घंटे बाद मौत हो गई थी और इस सदमे के वजह से वो मानसिक संतुलन खो बैठी।
जयललिता को फिल्मों में लाने का श्रेय उनकी मां और मौसी को जाता है जो तमिल फिल्मों की अभिनेत्रियां थीं। आर्थिक तंगी के कारण उनकी मां ने महज 13 साल की उम्र में उन्हें बाल कलाकार के तौर पर फिल्मों में काम कराना शुरू कर दिया। हालांकि जयललिता पढ़ाई में बहुत तेज थीं और दसवीं की परीक्षा में वो अपने बोर्ड में पूरे राज्य में अव्वल रही थीं। बालिग कलाकार के तौर पर उन्होंने 1964 में कन्नड़ फिल्म चिन्नादा गोमबे (सोने की गुड़िया) से शुरुआत की। इसी साल उन्होंने एक अंग्रेजी फिल्म “एपिस्ल” भी की। 1965 में उन्होंने अपनी पहली तेलुगु फिल्म (मानुसुलु ममतालु) और तमिल फिल्म (वेन्निरा अदाई) की। उन्होंने बालिग कलाकार के तौर पर अपनी पहली और आखिरी हिंदी फिल्म ‘इज्जत’ 1968 में की जिसमें धर्मेंद्र और तनुजा उनके साथी कलाकार थे।
जयललिता ने अपने करीब दो दशक लंबे फिल्मी सफर में करीब 300 फिल्मों में अभिनय किया। तमिल, कन्नड़ और तेलुगु फिल्मी जगत में वो बेहद सफल अभिनेत्री बनीं। यूं तो जयललिता ने कन्नड़, तमिल और तेलुगु फिल्म जगत के अपने समकालीन सभी बड़े अभिनेताओं के संग काम किया था लेकिन सुनहरे परदे पर उनकी और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी सदाबहार मानी जाती है। दोनों ने दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों में एक साथ काम किया। जयललिता को कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम, अंग्रेजी और हिंदी पर समान अधिकार प्राप्त था।
एमजीआर के पीछे-पीछे जयललिता भी आज्ञाकारी शिष्या की तरह 1982 में एआईएडीएमके की सदस्य बनकर राजनीति में आ गईं। 1983 में उन्हें पार्टी के प्रचार विभाग का सचिव बनाया गया। 1984 में एमजीआर ने उन्हें राज्य सभा का सांसद बनाया।
जयललिता ने अपनी आखिरी फिल्म 1980 में की। उसके बाद वो एमजीआर के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में आ गईं। एआईएडीएमके ने 1984 में उन्हें पहली बार राज्य सभा सांसद बनाया। 1987 में एमजीआर के निधन के बाद जयललिता को पार्टी के अंदर सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ा लेकिन आखिरकार वो पार्टी की निर्विवाद नेता बनकर उभरीं। 1991 में वो पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। 1989 से 2016 के बीच उन्होंने चार बार तमिलनाडु विधान सभा चुनाव जीता। मई 2016 में उन्होंने छठवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 5 दिसंबर को करीब दो महीने लंबी बीमारी के बाद चेन्नई के अपोलो अस्पताल में उनका निधन हो गया।