Thursday, December 26, 2024
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जहाँ गए राहुल गाँधी, वहाँ कांग्रेस का का बंटाढार

चाहे इसे महंगाई का असर कहें या फिर मोदी की देश में लहर, जिससे राहुल गांधी भी कांग्रेस प्रत्याशियों को हार से नहीं बचा सके। मोदी-राहुल की समान विधानसभा क्षेत्रों में हुई सभाओं में से 23 पर भाजपा और महज तीन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत मिली। प्रतिद्वंद्वी पार्टियां देश में मोदी की लहर मानने से इंकार करती रही हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में मोदी फैक्टर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के मुकाबले भाजपा प्रत्याशियों को जीत दिलाने में भारी पड़ा है।

कुछ जगह दिखा मोदी का असर

हर राज्यों में तूफानी प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने 11 समान विधानसभा क्षेत्रों में रैलियां कीं। ये सभाएं बीकानेर, बांसवाड़ा, जयपुर, अजमेर, दक्षिणपुरी, इंदौर, मंदसौर, शहडोल, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में हुई थी। इन सभाओं का 27 सीटों पर सीधा प्रभाव था। दोनों पार्टियों के स्टार प्रचारकों की ओर से की गई रैलियों के प्रभाव वाले स्थानों में से जयपुर की नौ सीट, बीकानेर की दो सीट, बांसवाड़ा की एक, अजमेर की दो सीट, रायपुर की तीन सीट, इंदौर की चार सीट, जगदलपुर की एक सीट और मंदसौर की एक सीट पर भाजपा के प्रत्याशियों को जीत मिली।

वहीं, कांग्रेस के प्रत्याशियों को रायपुर, बस्तर और इंदौर की एक-एक सीट पर जीत हासिल हुई है। दोनों की समान स्थानों पर हुई रैलियों में भाजपा 23 पर जीती, तो कांग्रेस को मिलीं महज 3 सीटें। अब बात दिल्ली की, जहां मोदी का जोर ज्यादा नहीं दिखा। नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री के प्रत्याशी डॉ. हर्षवर्धन का जादू भी नहीं चला। जबकि दिल्ली की सत्ता से पंद्रह साल के वनवास को खत्म करने के लिए भाजपा के सभी राष्ट्रीय नेताओं ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था।

आधा दर्जन से अधिक जगहों पर नरेंद्र मोदी की धुआंधार रैली हुई। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने सौ से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया। बड़ी संख्या में स्टार प्रचारक उतारे गए।

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को दिल्ली की कमान सौंपी गई। बावजूद इसके भाजपा ऐसी एक दर्जन सीटों पर हार गई, जो उसका गढ़ मानी जाती हैं। पार्टी ने चुनाव के कुछ ही दिन पहले सीएम का चेहरा पेश कर नया प्रयोग भी किया। फिर भी भाजपा सत्ता की कुर्सी से चार सीढ़ी नीचे ही अटक कर रह गई।

पार्टी पर अब यह भी सवाल उठ रहा है कि आक्रामक चुनावी रणनीति के बाद भी पार्टी अपनी परंपरागत सीट हार गई। आम आदमी पार्टी की परफारमेंस को देखते हुए मोदी फैक्टर पर भी सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के 24 विधायकों में 11 विधायक जिनमें विधायकों के पुत्र प्रत्याशी भी शामिल हैं, को हार का मुंह देखना पड़ा।

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