दूसरी पुण्यतिथि पर विशेष
थीं तो वह सुषमा ही। लेकिन मैं उन्हें लेडी आयरन की तरह याद करना चाहता हूं। ममत्व से भरी एक मां की तरह याद करना चाहता हूं। एक जनप्रिय विदेश मंत्री की तरह याद करते रहना चाहता हूं। सुषमा शर्मा से सुषमा स्वराज हुईं सुषमा का जीवन अपनी बेटी बांसुरी के नाम की तरह ही सुरीला है। बहुत ही सुरीला। हरि प्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन से भी ज़्यादा सुरीला। शिव कुमार शर्मा के संतूर से भी ज़्यादा मीठा और बिस्मिल्ला खान की शहनाई से भी ज़्यादा गमक और ज़ाकिर हुसैन के तबले से भी ज़्यादा ठसक वाला। एक से एक गुणी , एक से एक डिप्लोमेटिक , एक से एक चतुर और निष्णात विदेश मंत्री हुए हैं भारत में। लेकिन सुषमा स्वराज सा लोकप्रिय और जनप्रिय एक नहीं हुआ। सुषमा के गुरु अटल बिहारी वाजपेयी भी नहीं। जनता से इतना कनेक्ट कोई विदेश मंत्री नहीं हुआ। विदेश मंत्री के नाते जो लकीर सुषमा स्वराज ने खींची है उसे मिटा पाना नामुमकिन है। इस से बड़ी लकीर खींच पाना किसी के वश का है भी नहीं। कभी नेता प्रतिपक्ष होते हुए संसद में अपने एक धारदार भाषण में लगभग ललकार कर कहा था कि हां , मैं सांप्रदायिक हूं। क्यों कि हम 370 हटाना चाहते हैं। क्यों कि हम समान नागरिक संहिता की बात करते हैं। इसी तरह के तमाम अकाट्य तर्क जो भाजपा के एजेंडे में हैं , जिन्हें हिंदुत्ववादी राजनीति के खांचे में सो काल्ड सेक्यूलर लोग डाल देते हैं। सुषमा स्वराज ने इन सभी पर निरंतर तंज करते हुए कहा था उस भाषण में किसी संपुट की तरह कि हां , मैं सांप्रदायिक हूं ! पूरी संसद स्तब्ध थी। लेकिन बतौर मंत्री ख़ास कर विदेश मंत्री रहते सुषमा स्वराज ने हिंदू , मुसलमान नहीं देखा। सेक्यूलर , कम्युनल नहीं देखा। देखा तो सिर्फ मनुष्यता देखी। भारत देश देखा। जैसे वह कभी भी , कहीं से भी चुनाव लड़ सकती थीं , जीत और हार सकती थीं वैसे ही कभी भी किसी भी की मदद कर खुश हो सकती थीं।
कभी हरियाणा राज्य में मंत्री रहीं , दिल्ली की मुख्य मंत्री रहीं , केंद्र में सूचना प्रसारण मंत्री रहीं , संचार मंत्री रहीं , नेता प्रतिपक्ष और बतौर पार्टी प्रवक्ता भी सुषमा स्वराज को हम बहुत याद करते हैं। याद करते हैं उन की सुगमता , सौजन्यता , संवेदना और सक्रियता के लिए। लेकिन बतौर विदेश मंत्री न सिर्फ़ देश और नरेंद्र मोदी सरकार की संकटमोचक बनीं बल्कि देश , विदेश की जनता की भी संकटमोचक बनीं। हम कैसे भुला सकते हैं जब फरवरी , 2015 में जब सुषमा जी ने ईरान के बसरा में बंधक बनाए गए 168 भारतीयों की मदद की और उन्हें छुड़ाया। 2015 में ही बर्लिन में फंसे एक भारतीय व्यक्ति का पासपोर्ट और पैसे कहीं गायब हो गए । सुषमा स्वराज ने उसे फौरन मदद की। भारतीय दूतावास से उस के पासपोर्ट और टिकट का बंदोबस्त करवाया। उन्हों ने दुबई में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिक तौकीर अली की जिस तरह मदद की वह सुषमा जी को कैसे भूल सकता है भला ? तौकीर ने अपने बेटे के इलाज के लिए भारत सरकार से अनुरोध किया था। 12 घंटे के भीतर ही उसे मदद मिल गई थी।
2016 में जोधपुर के रहने वाले नरेश तेवाणी और पाकिस्तान में कराची की प्रिया बच्चाणी की शादी तय हुई थी। लेकिन पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास ने दुल्हन के परिवार और रिश्तेदारों को वीजा जारी करने से मना कर दिया। शादी खटाई में पड़ गई। नरेश ने थक हार कर ट्विटर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद मांगी। . सुषमा जी ने न सिर्फ़ नरेश को भरोसा दिया बल्कि भारत का वीजा भी दिलवाया। एक यमनी महिला की शादी एक भारतीय से हुई थी। महिला ने अपनी 8 महीने की बच्ची की तस्वीर ट्वीट करते हुए विवादित क्षेत्र से निकालने की गुहार लगाई थी। सुषमा स्वराज ने उसे सकुशल निकाला भी वहां से। यह भी 2015 की बात है। 2016 में अपने भाई को बचाने के लिए दोहा हवाई अड्डे पर फंसे एक व्यक्ति की मदद भी सुषमा जी ने की।
2017 में दिल की बीमारी से ग्रसित पाकिस्तान की एक लड़की शिरीन शिराज़ को ओपन हार्ट सर्जरी के लिए एक साल का मेडिकल वीजा देना भी सुषमा जी के खाते में है। इसके अलावा साल 2017 में ही सुषमा जी ने दो अन्य पाकिस्तानी नागरिकों को भारत में सर्जरी के लिए मेडिकल वीजा उपलब्ध करवाया था। ठीक वैसे ही जैसे कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने ग़ज़ल गायक मेंहदी हसन को भारत बुला कर उन का इलाज करवाया था। रात के दो बजे भी कोई सुषमा स्वराज को ट्विटर पर पुकार सकता था। फोन पर गुहरा सकता था। और वह पुकार सुन कर फौरन आप की मदद भी कर देती थीं। कुछ लोग उन्हें तंज में ट्विटर मंत्री भी कहा करते थे। तो कुछ लोगों का दावा था कि अगर आप मंगल ग्रह पर फंस गए हैं तो भारतीय दूतावास वहां भी मदद करने मे सक्षम है। यही कारण था कि ट्विटर पर युवाओं की एक बड़ी संख्या ने सुषमा स्वराज को फॉलो किया था। मूक बधिर गीता जो बचपन में गलती से पाकिस्तान पहुंच गई थी , उसे बेटी की तरह कैसे तो सुषमा जी भारत ले आई थीं। और वह आते ही कैसे तो लपक कर सुषमा जी के सीने में समा गई थी। इसी तरह दो नाबालिग पाकिस्तानी हिंदू लड़कियों को जबरन इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया जा रहा था और मुस्लिम पुरुषों से उन की शादी करवाई जा रही थी। 26 मार्च, 2019 की यह बात है। सुषमा स्वराज के दबाव के चलते इमरान खान की सरकार को झुकना पड़ा। और कि कथित तौर पर अगवा की गई इन लड़कियों को इन के घर भेजा गया। इन को सुरक्षा भी दी गई।
यह और ऐसे बहुतरे किस्से हैं सुषमा स्वराज के। बतौर विदेश मंत्री वह नरेंद्र मोदी सरकार की सब से बड़ी ताकत थीं। और उन की ताकत थे पूर्व सेनाध्यक्ष रहे वी के सिंह और पत्रकार एम जे अकबर। दोनों दो ध्रुव। पर जिस खूबी से बिना किसी विवाद के सुषमा जी ने इन दोनों के साथ विदेश मंत्रालय संभाला , वह अदभुत था। अदभुत ही था जब बीते चुनाव में खुद चुनाव मैदान से भले बाहर थीं पर अपने सहयोगी वी के सिंह के चुनाव प्रचार में गाज़ियाबाद गईं और वहां की जनता से आह्वान किया कि मेरे संकटमोचक को आप लोग ज़रूर वोट दीजिए और विजयी बनाइए। राजनीति में ऐसा कितने लोग कह और कर पाते हैं। सुषमा स्वराज जो विदेशों में फंसे लोगों का सर्वदा संकटमोचक बनती थीं , कितनी सहजता से अपने सहयोगी को अपना संकटमोचक बता रही थीं और हाथ जोड़ कर बता रही थीं। यह आसान नहीं था। कुटिल राजनेताओं के बीच अपनी सहजता को आप बचा पाएं यह शायद ही सहज होता है। लेकिन सुषमा स्वराज ने अपनी सहजता सर्वदा बचा कर ही रखी थी। बहुत कम लोग अब यह याद कर पाते हैं कि भारतीय टेलीफोन में प्राइवेट सेक्टर की शुरुआत बतौर संचार मंत्री सुषमा स्वराज ने ही की थी। इंदौर से। दिल्ली के तमाम विकास कार्य के लिए हम शीला दीक्षित को याद करते हैं। लेकिन इन में से कुछ काम सुषमा स्वराज के खाते में भी हैं। सीखने , समझने और सुनने का शऊर किसी को सीखना हो तो सुषमा स्वराज से सीखे। तमाम महिला राजनीतिज्ञ हुई हैं लेकिन मार्गरेट थ्रैचर , इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहा गया है। कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि सुषमा स्वराज भी आयरन लेडी थीं।
एक समय था जब मैं भाजपा में अटल जी के बाद सुषमा स्वराज में ही भाजपा और देश का भविष्य देखता था। भावी प्रधान मंत्री के रुप में देखता था। मेरी पसंदीदा नेता थीं सुषमा जी। उन के जैसी विदुषी , मृदुभाषी और ओजस्वी नेता अब कोई और नहीं। किडनी ट्रांसप्लांट की मुश्किल से गुज़र रहीं , सुषमा जी दिल का दौरा पड़ने से जब विदा हुईं तो सहसा यह ख़बर सुन कर विश्वास ही नहीं हुआ। सुप्रीमकोर्ट में इमरजेंसी के समय जार्ज फर्नांडीज का डाइनामाईट केस लड़ने वाली सुषमा जी हरियाणा की सब से कम उम्र की विधायक और मंत्री बनी थीं। समाजवादी से भाजपाई बनी सुषमा जी , अटल जी और आडवाणी जी दोनों की प्रिय थीं। दिल्ली की मुख्य मंत्री थीं , केंद्रीय मंत्री भी थीं पर बतौर विदेश मंत्री उन की पाली अदभुत थी। उन के साथ की बहुतेरी यादें हैं। लेकिन एक बात कभी नहीं भूलती। 1996 की बात है । उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी राज्यपाल थे। केंद्र के इशारे पर भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्य मंत्री बनने से रोकने के लिए तमाम बैरियर लगा रखे थे । उन्हीं दिनों लालकृष्ण आडवाणी के साथ सुषमा स्वराज लखनऊ आई थीं। प्रमोद महाजन भी आए थे। आडवाणी जी और प्रमोद महाजन का इंटरव्यू कर चुका था। सुषमा जी का बाकी था । तय हुआ कि कल्याण सिंह के घर पर वह मिलेंगी। निश्चित समय पर पहुंचा कल्याण सिंह के घर। कल्याण सिंह से भी बात हुई। अचानक लान में खड़े-खड़े सामने खड़े कल्याण सिंह से ही ज़रा जोर से पूछ बैठा , सुषमा जी कहां हैं ? कल्याण सिंह कुछ कहते उस के पहले ही , सुषमा जी चहकती हुई बोलीं , ‘ सुषमा जी यहां हैं ! ‘
वह अचानक आ कर मेरे बगल में खड़ी हो गई थीं। मैं सकुचा गया। लेकिन सुषमा जी ने मुझे शर्मिंदा होने नहीं दिया , आगे चलती हुई अपनी खनकती आवाज़ में बोलीं , आइए हम लोग भीतर बैठ जाते हैं। अब जब चली गई हैं तो लगता है जैसी सचमुच वह अभी फिर से बोल देंगी कि , ‘ सुषमा जी यहां हैं ! ‘ संसद में कई बार उन को बोलते सुन कर मंत्रमुग्ध हो जाता था। खास कर बीते दिनों संस्कृत पर दिया गया उन का व्याख्यान खूब वायरल हुआ था। ऐसा तार्किक और तथ्यात्मक भाषण तो न भूतो , न भविष्यति ! तीज-त्यौहार में खूब चटक सिंदूर और मेहदी लगा कर उन का बन-ठन कर झूला झूलना , उन का नाचना आदि बहुत याद आएगा। सोचिए कि वह अस्पताल में थीं और 370 पर ट्विट कर बधाई देना नहीं भूलीं प्रधान मंत्री को। संसद में उन के जैसी ओजस्वी वक्ता , उन के जैसा भाषण देने वाली दूसरी स्त्री मैं ने नहीं देखी। आगे भी क्या देखूंगा। दिखने , मिलने में वह राजनीतिज्ञ लगती ही नहीं थीं । एकदम पारिवारिक महिला थीं। क्या-क्या कहूं , क्या-क्या न कहूं । सुषमा जी भारतीय संस्कृति की संवाहक ,विदुषी, वाकपटु और सम्मोहित व्यक्तित्व वाली राजनेता थीं। विदेश मंत्री के रूप में उन का संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को बुरी तरह से फटकार वाली हिंदी में दिया गया भाषण याद है।ऐसा लगता है कि वे केवल कश्मीर में अनुच्छेद 370 के समापन को सुनने के लिए ही जीवित रहीं। उन के जाने से जनभाषा की संसंदीय सुषमा समाप्त हो गई ! वैयक्तिक आभा का एक युग जी कर हमारे समय की शीर्षतम विदुषी, अटल जी के बाद की सर्वाधिक संतुलित व सम्मोहक संसदीय वक्ता सुषमा स्वराज को किस-किस तरह से याद करुं , समझ नहीं आता। पर सुषमा जी , बस इतना जानिए कि आप हरदम बहुत याद आएगी। भगवान आप की आत्मा को शांति दे । विनम्र श्रद्धांजलि !
साभार http://sarokarnama.blogspot.com/से