Tuesday, November 26, 2024
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शैक्षणिक जगत में हिन्दू संस्कृति का अध्ययन क्यों जरुरी है

हिंदू वह व्यक्ति या संगठन है जो हिंदू धर्म के मौलिक मूल्यों, मौलिक विचारों के अवयव और मौलिक अवधारणाओं से मनोयोग से जुड़ा हो ,उसमें सामाजिक ,धार्मिक और आध्यात्मिक बोध और प्रत्यय के विभिन्न माध्यमों के बीच के अंतर को समझने की बौद्धिक और आध्यात्मिक बोध का समझ हो। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय और नई शिक्षा नीति ,2020 को क्रियान्वित करने वाले विश्वविद्यालय, हिंदू अध्ययन पाठ्यक्रम को क्रियान्वित कर रहे हैं ।विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में उन बहादुर योद्धाओं, हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक और भारतीय दृष्टिकोण को रेखांकित करने वाले स्वातंत्रय वीर महान व्यक्तित्व के विषय को सम्मिलित व शोध किया जा रहा है। जिनके विषय में वामपंथी विचारधारा ,पाश्चात्य विचार धारा के लेखकों, इतिहासकार एवं बौद्धिक व्यक्तित्व उनके उपादेयता को न्यून प्रासंगिकता के तौर पर वर्णन किए थे।

राष्ट्रवादी विचारकों,चिंतकों, कार्यशाला के निष्कर्षों एवं विचार – मंथन से उन हुतात्मा की उपादेयता प्राप्त हो रही है, जिन्होंने अपने विचार, विवेक और प्रत्यय से स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण उपादेयता प्रदान किया है ,उनका स्वतंत्रता संग्राम के प्रति दृष्टिकोण राष्ट्रीय तत्वों से भरा हैं। हिंदू धर्म एक बहुलवादी एवं समावेशी परंपरा है ।यह एक गत्यात्मक सांस्कृतिक चेतन आंदोलन है जो विभिन्न व्याख्यान , प्रथाओं और मान्यताओं के विवेकी मान्यताओं को स्वीकृति प्रदान करता है जिससे इसके भीतर कई सांस्कृतिक व पांथिक संप्रदायों व विरासतों को पालन करने की धारणीय ऊर्जा निहित होती है ।हिंदू व्यक्तित्व वह है जो हिंदू समुदाय के चिंतन ,संस्कृति, दर्शन और संस्कारित सभ्यता के विकास के दौरान सहज रूप से पनपी परंपराओं, सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को रूपायित करता है, जो हिंदू रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन करने के साथ-साथ स्वयं विराट /बृहद हिंदू समाज का सदस्य मानता है ।

दार्शनिक व आध्यात्मिक प्रत्यय के आधार पर कहे तो हिंदू वह है जो हिंदू पंथ के मौलिक विचारों और अवधारणाओं से मजबूती से जुड़ा है। दार्शनिक अवधारणा में शाश्वत आत्मा, मुक्ति की खोज एवं कर्म की अवधारणा सम्मिलित है। हिंदू व्यक्तित्व के लिए आध्यात्मिक बोध और मोक्ष के विभिन्न मार्गों के बीच मौलिक अंतर समझने की बोधात्मक व ज्ञानात्मक क्षमता होनी चाहिए। हिंदू अध्ययन के माध्यम से शिक्षण व अनुसंधान, पर्यटन सांस्कृतिक- विरासत ,संरक्षण योग व आरोग्य और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति व राजनय में उपादेयता व प्रासंगिकता हैं।

हिंदू अध्ययन पाठ्यक्रम एक धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक रीति-रिवाजों के रूप में हिंदू धर्म की व्यापक और अकादमिक महत्व प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इसके ऐतिहासिक विकास शास्त्रों में महत्त्व ,रीति-रिवाजों, दार्शनिक प्रणालियों और सामाजिक पहलुओं का गंभीरता के साथ अध्ययन कर सकते हैं ,जिससे वे इस विषय के गहरी समझ, गंभीर अध्ययन और निचोड़ सार तत्व प्राप्त कर सकें। भारत और अन्य स्थानों के सांस्कृतिक परिदृश्य का महत्वपूर्ण अभिन्न भाग है। हिंदू धर्म ,जहां इसके मानने वाले रहते हैं। हिंदू धर्म का अध्ययन करने से इससे जुड़े समुदायों में इसके प्रति गहरी समझ और गंभीर अध्येता उपादेयता प्राप्त होती है। हिंदू अध्ययन के दौरान इसके अन्य विषय क्षेत्रों जैसे इतिहास ,समाजशास्त्र ,दर्शन शास्त्र, साहित्य और कला का अकादमी ज्ञान प्रदान होता है।

हिंदू धर्म का अध्ययन तुलनात्मक उपागम व अंतर – विषयक उपागम से किया जा सकता है ,जिससे अध्येता को विभिन्न सामाजिक पहलुओं पर पड़ने वाले नवीन प्रभाव और अन्य शैक्षणिक विषयों से इसके उपादेयता का महत्व प्राप्त होता है जो इसके अभिसारी प्रासंगिकता का प्रसार व उपादेयता है।

(लेखक दूरदर्शन समाचार में परामर्श संपादक हैं)

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