क्लैट परीक्षा के माध्यम से वकील बनाने के लिए प्रतिवर्ष 19 विश्विद्यालय भाग लेते हैं। ये सभी केंद्र सरकार के अधीन हैं।
अब आई आई टी की प्रवेश परीक्षा अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी दी जा सकती है। नीट के प्रश्नपत्र भी 20 भाषाओं में हल किये जा सकते हैं। पिछले दिनों रेलवे ने लोको पायलट व तकनीशियन की परीक्षा भी कई भाषाओं में सफलतापूर्वक कराई। लेकिन क्लैट की प्रवेश परीक्षा केवल अंग्रेजी माध्यम में ही होती है।
इस परीक्षा में 12 वीं छात्र भाग लेते हैं और यह कहने की आवश्यकता नहीं कि अधिकांश विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं और अंग्रेजी माध्यम में कारण क्लैट परीक्षा में भाग नहीं ले पाते।
प्रश्न उठता है कि क्या हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना अपराध है क्या ? विद्यार्थियों को आप इस आधार पर दो हिस्सों में नहीं बांट सकते कि ये अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं तो भाग ले सकते हैं और ये हिन्दी या तमिल, तेलगु ,कन्नड़ से पढ़े हैं तो इनका कोई हक़ नहीं कि इन 19 विश्विद्यालयों में कदम रख सकें।
भाषा महज माध्यम है। अंग्रेजी पढ़ने से ही अच्छे वकील बनेंगे , ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। अंग्रेजी को प्रतिभा का पर्याय मत बनाईये।
अंग्रेजी में प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाना न्याय की अवधारणा के भी विरुद्ध है। अवसर की समानता की बात संविधान में बहुत स्पष्ट रूप से कही गई है।
क्लैट की अंग्रेजी माध्यम की प्रवेश परीक्षा लाखों छात्र छात्राओं के सपने को चकनाचूर कर रही है। यह साफ़ तौर से अनुचित है।
हमें 500 हस्ताक्षरों के अपने उद्देश्य तक पहुँचने के लिए और समर्थन चाहिए। ज़्यादा जानकारी के लिए, और पेटीशन पर साइन करने के लिए, इस लिंक पर क्लिक करें: