सच कहें तो ‘महारानी झाँसी’ जैसे चरित्र को परदे पर उतारना बड़ा कठिन कार्य है। धन्यवाद के पात्र हैं वे लोग जिन्होंने यह फ़िल्म बनाने की सोची। देखी जानी चाहिए यह फ़िल्म, ताकि समझ सकें हम अपने इतिहास को… । मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप जान सकें कि भारत की पवित्र भूमि ने कैसी-कैसी बेटियों को जन्म दिया है। मणिकर्णिका देखिये, ताकि भविष्य में जब कोई मूर्ख माँ दुर्गा के अस्तित्व पर प्रश्न उठाये तो आप उसके मुंह पर थूक कर कहें कि “देख! ऐसी थीं माँ दुर्गा…” । मणिकर्णिका* देखिये, ताकि आप जान सकें कि नारीवाद के झूठे दलालों का पितामह जब जर्मनी में जन्मा भी नहीं था, तभी भारत में हमारी बेटियां कैसे सत्ता सम्भालती थीं, कैसे इतिहास रचती थीं, और किस धूम के साथ मरती थीं।
मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप अपने बेटों को बता सकें कि हमारे लिए बेटियां क्यों पूज्य होती हैं। मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप अपनी बेटियों से कह सकें कि तुम बेटों से किसी भी मामले में कम नहीं हो। ताकि आप अपनी बेटियों को बता सकें कि “नारी उत्थान” की सच्ची परिभाषा वह नहीं जो स्वरा भास्कर या अरुंधति राय जैसी मूर्ख औरतें बताती हैं, स्त्री मर्यादा वह है जो हमें हमारी मनू बता कर गयी है।
मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप शिवाजी महाराज के रामराज्य के स्वप्न को समझ सकें। मणिकर्णिका देखिये, ताकि परदे पर ही सही,भगवा ध्वज तले निकली शौर्य की उस अप्रतिम शोभायात्रा को देख कर आपकी आँखे पवित्र हो सकें। मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप समझ सकें कि स्वतन्त्रता की खुली हवा में लिया गया एक-एक सांस हमारे ऊपर ऋण है उन असंख्य झलकारियों का, जिन्होंने हमारे लिए स्वयं की बलि चढ़ाई थी। यह फ़िल्म तमाचा है उन गद्दारों के गाल पर, जो सरकार से प्रतिवर्ष लाखों की छात्रवृति ले कर भी “हमें चाहिए आजादी” का अवैध नारा लगाते हैं। असंख्य लक्ष्मीबाईयों के वलिदान के फलस्वरूप मिले इस ‘देश’ के टुकड़े करने के स्वप्न देखने वाली निर्लज्ज मानसिकता को फिल्मोद्योग की ओर से अनायास ही दिया गया एक उत्तर है यह फ़िल्म। *मणिकर्णिका मात्र किसी महारानी का नाम नहीं, आजादी का मूल्य बताने वाली किताब का नाम है।*
मणिकर्णिका देखिये, ताकि मरती मणिकर्णिका को देख कर आपकी आँखों से निकली अश्रु की बूंदे चिल्ला कर कह सकें, ”तेरा बैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें…” । फ़िल्म के एक दृश्य में जहाँ महारानी जनरल ह्यूरोज को घोड़े में बांध कर घसीटती हैं, मेरा दावा है उसे देख कर कह उठेंगे आप, “ईश्वर, बेटियाँ देना तो मनू जैसी देना” । झाँसी की सम्पति पर से ईस्ट इंडिया कम्पनी के हर अधिकार को नकारती हुई लक्ष्मीबाई का गरजता स्वरूप देखिये, मैं पूरे विश्वास से कहता हूँ कि आपका माथा उस वीरांगना के समक्ष अनायास ही झुक जाएगा। एक विधवा महारानी का यह संवाद, *“हम लड़ेंगे, ताकि आने वाली पीढियां अपनी आजादी का उत्सव मना सकें”* अकेला ही सक्षम है युगों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाने में।
मणिकर्णिका फ़िल्म के संवाद कैसे हैं, संगीत कैसा है, सिनेमेटोग्राफी कैसी है, कलाकारों का अभिनय कैसा है, निर्देशन कैसा है, दृश्यों की भव्यता किस लायक है, मेरे लिए इन प्रश्नों का कोई मोल नहीं। मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि फ़िल्म में मणिकर्णिका वैसी ही दिखी है, जैसी बचपन में सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ पढ़ कर लगीं थी। उस कविता को पढ़ कर भी रोंगटे खड़े होते थे, फ़िल्म देख कर भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं।
फिल्मोद्योग की अपनी कुछ व्यवसायिक सीमाएँ हैं जिनसे बंधी यह फ़िल्म कहीं-कहीं आपको तथ्यहीन लगेगी, पर फ़िल्म महारानी लक्ष्मीबाई के महान शौर्य को दिखाने में पूर्णतः सफल रही है इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। स्वयं ही नहीं अपने बच्चों को भी दिखाइए यह फ़िल्म, ताकि भारत के भविष्य को उसका इतिहास ज्ञात रहे। किताबों से दूर होती नई पीढ़ी परदे की भाषा ही अधिक समझ रही है न, तो क्यों न उसे उसी भाषा में ही उसके पुस्तैनी शौर्य का स्मरण कराया जाय… मनु जैसी वीरांगनाएँ हर युग के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी।