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मीडिया डेस्क
युगांडा 4 अगस्त, 1972,* को युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने युगांडा में वर्षों से रह रहे 60000 एशियाइयों ( *गैर मुस्लिम, मुख्यतः हिन्दू* ) को अचानक देश छोड़ देने का आदेश दे दिया। उन्हें देश छोड़ने के लिए सिर्फ़ 90 दिन का समय दिया जाता है। ईदी अमीन को अचानक एक सपना आया और उन्होंने युगांडा के एक नगर टोरोरो में सैनिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि *अल्लाह ने उनसे कहा है कि वो सारे एशियाइयों (गैर मुस्लिम मुख्यतः हिन्दू) को अपने देश से तुरंत निकाल बाहर करें। वास्तव मे यह सलाह उसे लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफ़ी ने दी थी।
हर व्यक्ति को अपने साथ सिर्फ़ 55 पाउंड और 250 किलो सामान ले जाने की इजाज़त थी। लोगों के सूटकेस खोल कर देखे जा रहे थे। उनकी हर चीज़ बाहर निकाल कर फेंकी जा रही थी, ताकि वो देख सकें कि उसमें सोना या पैसा तो छिपा कर नहीं रखे गए हैं। *एक हिन्दू लड़की गीता की उंगली से अंगूठी नहीं निकली तो सैनिकों ने उसकी अंगुली काट दी। लोगों को अपनी दुकानें और घर ऐसे ही खुले छोड़ कर आना पड़ा। उन्हें अपना घर का सामान बेचने की इजाज़त नहीं थी। युगांडाई सैनिक उनका वो सामान भी लूटने की फ़िराक में थे, जिन्हें वो अपने साथ बाहर ले जाना चाहते थे।*
युगांडा से बाहर जाने वाले हर एशियाई को बीच में बने पांच रोड ब्लॉक्स से हो कर जाना पड़ता था। हर रोड ब्लॉक पर उनकी तलाशी होती थी और सैनिकों की पूरी कोशिश होती थी कि उनसे कुछ न कुछ सामान ऐंठ लिया जाए।
जॉर्ज इवान स्मिथ अपनी किताब *घोस्ट ऑफ़ कंपाला* में लिखते हैं, अमीन ने एशियाइयों की ज़्यादातर दुकानें और होटल अपने सैनिकों को दे दिए। इस तरह के वीडियो मौजूद हैं जिसमें अमीन अपने सैनिक अधिकारियों के साथ चल रहे हैं। उनके साथ हाथ में नोट बुक लिए एक असैनिक अधिकारी भी चल रहा है और अमीन उसे आदेश दे रहे हैं कि फ़लाँ दुकान को फ़लाँ ब्रिगेडियर को दे दिया जाए और फ़लाँ होटल फ़लाँ ब्रिगेडियर को सौंप दिया जाए। निकाले गए 60000 लोगों में से 29000 लोगों को ब्रिटेन ने शरण दी। केवल वे 11000 लोग भारत आ सके जबकि इनमे से अधिकांश भारतीय गैर मुस्लिम थे। 5000 लोग कनाडा गए । कितने बेघर मारे गए उसका कोई रिकार्ड नहीं।*
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने उन हिन्दुओ को भारत लाने की कोई सार्थक कोशिश नहीं की*।
1947 मे महात्मा गांधी ने अनशन किया। गांधी की मुख्य 2 मांगें थी। पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिए जाएँ* और पाकिस्तान से जान बचा कर आए हिन्दू शरणार्थियों को नवंबर दिसंबर की सर्दी मे पाकिस्तान गए मुस्लिमों के खाली पड़े घरों मे ना घुसने दिया जाए। 1948 मे पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से हजारों लोग जान बचा कर भारतीय कश्मीर मे आए। *उसमे से 99% से अधिक हिन्दू थे*। इनमे भी अधिकांश दलित थे। आज उनकी संख्या 8 लाख है। उन्हे 2019 तक नागरिकता नहीं मिली। मोदी सरकार द्वारा धारा 370 समाप्त करने के बाद (70 वर्ष बाद) इन्हें नागरिकता मिली है इन दलितों के लिए भीम, मीम वाले भी चुप थे, मायवती भी और कांग्रेस भी। क्योंकि ये वोट बैंक नहींं थे।
1971 – बांग्लादेश बना – बड़ी संख्या मे बंग्लादेशी हिन्दू जान बचा कर आए। सबसे अधिक लूट, ह्त्या और बलात्कार के पीड़ित ये हिन्दू ही थे। सरकार की मानसिकता देखिए- 93000 कैदी सैनिकों के लिए तो विशेष में भोजन और सुविधाएं दी गई परंतु उन शरणार्थी हिंदुओ को कुछ नहीं दिया गया।
1990 वी पी सिंह प्रधानमंत्री थे। खाड़ी युद्ध हुआ। कुवैत से बड़ी संख्या मे (1.5 लाख लगभग) भारतीय लाए गए *जिसमे बड़ी संख्या मे मुस्लिम थे। परंतु अपने ही देश कश्मीर से 3 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित भागा दिए गए। तब हिन्दू का विचार न तो प्र्धानमंत्री को आया ना गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद को।
विश्व में 52 से अधिक मुस्लिम देश हैं। इसमें से 90% इस्लामिक शासन प्रणाली से चलते हैं। इनमे परमाणु शक्ति सम्पन्न पाकिस्तान के हालात आज इतने खराब हैं कि गैर मुस्लिम का अस्तित्व ही खतरे में हो गया है।
पूरे विश्व के मुल्कों में जितने भी शरणार्थी हैं वह अधिकाँश मुसलमान हैं और काफिरों के देश में काफिरों की दया की रोटी पर जिंदा हैं ! इन शरणार्थियों की संख्या में सिर्फ दो प्रतिशत वह हैं जिन्हें बौद्ध मुल्क म्याँमार से भगाया गया है। *शेष खुद मुसलमानों के हाथों मुस्लिम राष्ट्रों से ही फिरका परस्ती के नाम पर काफिर कह पीट पीट कर भागे जाने पर मजबूर हुए हैं !
शरणार्थी बेहद ग़मगीन है क्योंकि उन्हें काफिरों के मुल्कों में जीने का हर अधिकार तो मिल रहा है पर शरिया क़ानून नहीं दिये जा रहे ! इतने सम्पन्न , हर सुविधा से भरे देशों में सिर्फ एक कमी है की यह लोग अल्लाह को मानने वाले नहीं हैं।
अब शरणार्थी वहां की सरकारों को समझा रहे हैं की हमें इस्लामिक हुकूक दे दें क्योंकि इस्लाम सलामती का दीन है।
यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो ?
कुछ साल पहले एनडीटीवी के समाचार वाचक रविश ने कहा था – यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे तो कौन सी बिजली टूट पड़ेगी। रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में बसाने के लिए मीडिया, कम्युनिस्ट, नास्तिक, मोमिन खूब जोर लगा रहे हैं। जैसे हमारा देश कोई धर्मशाला हो। ये लोग न व्यवाहरिक रूप से सोचते हैं, न इतिहास से सबक लेते हैं।