पाकिस्तान खौफनाक एवं वीभत्स आतंकवाद को प्रोत्साहन देता रहे और दुनिया को दिखाने के लिये शांति-वार्ता का स्वांग भी रचता रहे, इस विरोधाभास के होते हुए भी हम कब तक उदारता एवं सद्भावना दर्शाते रहे? जम्मू-कश्मीर में सीमा सुरक्षा बल के एक जवान को वीभत्स तरीके से मारे जाने और फिर तीन पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के अवसर पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री से भारतीय विदेश मंत्री की मुलाकात का कोई औचित्य नहीं रह गया था। भारत सरकार ने इस मुलाकात को स्थगित करके पडौसी देश को एक स्पष्ट सन्देश दिया है, लेकिन संदेश के साथ-साथ करारा जबाव भी दिया जाना जरूरी है। पाकिस्तानी सेना जैसा कहती है उसके उलट काम करती है। इसलिये पड़ोसी देश पर भरोसा करना अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाने के समान है। लेकिन भारत अपनी अहिंसक भावना, भाइचारे एवं सद्भावना के चलते ऐसे खतरे मौल लेता रहता है। हर बार उसे निराशा ही झेलनी पड़ती है, लेकिन कब तक?
न्यूयार्क में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात तय होने की जानकारी सार्वजनिक होने के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर में सीमा पर और सीमा के अंदर पाकिस्तान प्रायोजित जैसा खौफनाक आतंक देखने को मिला, उससे आने वाले दिनों में पाकिस्तानी सेना के साथ-साथ उसके साये में पलते आतंकियों की ओर से किसी बड़े खून-खराबे एवं आतंकी घटना के होने की संभावनाएं बढ़ गयी है। हो सकता है कि पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात को लेकर गंभीर हों, लेकिन पाकिस्तानी सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी के इरादे तो कुछ और ही बयां करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तानी सेना या तो इमरान की पहल को पटरी से उतारने पर तुली है या फिर भारत के प्रति अपनी नफरत का प्रदर्शन करने पर आमादा है। शायद इसी कारण उसने आतंकियों के साथ मिलकर सीमा सुरक्षा बल के एक जवान को धोखे से मारने के बाद पशुवत आचरण किया।
किस्तानी सरकार एवं सेना का छल-छद्म से भरा रवैया नया नहीं है। वह हमेशा विश्वासघात करता रहा है। उसके रवैये से अच्छी तरह अवगत होने के बावजूद नए प्रधानमंत्री इमरान खान पर विश्वास क्यों किया गया? क्यों लगातार हो रही आतंकी घटनाओं के बावजूद भारत सरकार दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की वार्ता के लिये सहमत हुई? पाकिस्तान के दुराग्रह एवं कूटिलता के कारण भारतीय सुरक्षा बलों को बार-बार कीमत चुकानी पड़ रही है। यह सब पाकिस्तान पर भरोसा करने का ही परिणाम है। भारत के जवान ऐसी कीमत अनेक बार चुका चुके हैं। कम से कम अब तो सबक सीखना ही चाहिए। पाकिस्तान के पागलपन और धोखेबाजी की उसकी घातक एवं खौफनाक प्रवृति के दुष्परिणामों को कब तक झेलते रहे? पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का नियमित उल्लघंन किए जाने का एक दुष्परिणाम यह भी है कि सीमावर्ती क्षेत्र में रह रहे हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों में शरण लेनी पड़ी है। समझदारी तो यही कहती है कि सभ्य समाज को विचलित करने वाली इन घटनाओं के बाद विदेश मंत्री स्तर की मुलाकात का प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं किया जाना चाहिए था। भारतीय नेतृत्व ने चाहे जो सोचकर विदेश मंत्री स्तर की मुलाकात के लिए हामी भरी हो, उसे इमरान खान का असली चेहरा तभी दिख जाना चाहिए था जब उनकी सरकार ने आतंकी बुरहान वानी के नाम पर डाक टिकट जारी किया था। अच्छा होता कि जवाबी चिट्ठी के जरिये उनसे पूछा जाता कि क्यों वह आतंकियों का गुणगान करते हुए भारत से संबंध सुधारने की कल्पना कर रहा हैं? यह पहली बार नहीं जब भारत को पाकिस्तान से संबंध सुधार की अपनी पहल पर यकायक विराम लगाने के लिए विवश होना पड़ा हो। दशकों से ऐसा ही होता चला आ रहा है। पाकिस्तान वार्ता की गुहार लगाता है। इस पर देर-सबेर भारत अपने कदम आगे बढ़ाता है, लेकिन वह हर बार उससे धोखा खाता है। भारत को पाकिस्तान के हाथों धोखा खाने के इस सिलसिले को तोड़ना ही होगा। यह सिलसिला पाकिस्तान के ऐसे निरीह एवं कमजोर शासकों से बातचीत करने से नहीं टूटने वाला जिनके हाथ में वास्तविक सत्ता नहीं होती। आखिर भारतीय नेतृत्व इससे अपरिचित कैसे हो सकता है कि पाकिस्तान में सत्ता की असली कमान तो वहां की सेना के हाथ है और वह भारत से बदला लेने की सनक से बुरी तरह ग्रस्त है?
पाकिस्तान अपनी अमानवीय एवं हिंसक धारणाओं से प्रतिबद्ध होकर जिस तरह की धोखेबाजी करता है, उससे शांति की कामना कैसे संभव है? अपने द्वारा अपना अहित साधने की दिशा में उठा हुआ उसका यह कदम उसे कहां तक ले जाएगा, अनुमान लगाना कठिन है। उसकी इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण हरकतों में उसका बौनापन ही दिखाई देता है। बात चले युद्ध विराम की, शांति की, भाईचारे की और कार्य हो अशांति के, द्वेष के, नफरत के, आतंक के तो शांति कैसे संभव होगी? ऐसी स्थिति में एक सघन प्रयत्न की जरूरत है, जो पाकिस्तान की चेतना पर जमी हुई धूर्तता एवं चालबाजी की परतों को हटाकर उसे सही रास्ता दिखा सके। यह किस तरह से औचित्यपूर्ण है कि भारत पाकिस्तानी सेना की सनक का इलाज करने के बजाय उसके दबाव में मजबूर प्रधानमंत्रियों से बात करने की पहल करता रहता है। निःसंदेह केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि भारत ने एक और बार पाकिस्तान से बातचीत करने से कदम पीछे खींच लिए। कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि कुछ समय बाद ऐसे ही हालात से फिर न दो-चार होना पड़े। इसके लिए किसी नई रणनीति पर काम करना होगा। भारत की पाकिस्तान संबंधी नीति विकल्पहीनता से ग्रस्त होना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहरायी जा सकती।
हमें पूर्व सरकारों को कोसने की बजाय वर्तमान सरकार के इरादों पर विश्वास करना होगा। यह भी सही है कि जब-जब पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता है तब-तब भारतीय सुरक्षा बल उसे करारा जवाब देते रहे हैं। यह भी एक तथ्य है कि भारतीय सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान को कहीं अधिक क्षति उठानी पड़ती है, लेकिन समस्या यह है कि वह अपनी शैतानी हरकतों से बाज नहीं आता। इसका कारण यही है कि वह तमाम नुकसान उठाने के बाद भी भारत को नीचा दिखाने की मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त है। पाकिस्तान भारत के प्रति नफरत, द्वेष एवं अलगाव की आग में इस कदर झुलस रहा है कि वह सभ्य राष्ट्र की तरह व्यवहार करना ही भूल गया है। इसी कारण वह न केवल आतंकी संगठनों को पालने-पोसने का काम करता है, बल्कि उनके साथ मिलकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम भी देता है। भारत को पाकिस्तान से निपटने के लिए कुछ सख्त नए तौर-तरीके अपनाने होंगे। इस क्रम में यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान एक असामान्य देश है, हिंसक राष्ट्र है एवं आतंकवादी मानसिकता से ग्रस्त है और ऐसे देश सामान्य तौर-तरीकों से काबू में नहीं आते। यह न तो स्वाभाविक है और न ही सहज स्वीकार्य कि हमारे जवान पाकिस्तानी सेना की पागलपन भरी हरकतों का शिकार बनते रहें और फिर भी भारतीय नेतृत्व यह मानकर चलता रहे कि पाकिस्तान को एक न एक दिन अक्ल आ ही जायेगी। लेकिन यह संभव नहीं लगता। पाकिस्तान ने संयम को छोड़ दिया है, वह मर्यादा और सिद्धान्तों के कपड़े उतार कर नंगा हो गया है। पूर्वाग्रह एवं तनाव को ओढ़कर विवेकशून्य हो गया है। तबले की डोरियां हर समय कसी रहेंगी तो उसकी आवाज ठीक नहीं होगी। उसकी रक्त धमनियों में जीवन है, लेकिन बाहर ज़हर। यह कारण है कि हमारे तमाम शांति प्रयत्नों पर वह पानी फेरता रहता है। लेकिन अब भारत को आर-पार की लड़ाई को अंजाम देना ही चाहिए। विचारणीय प्रश्न यह भी है कि हम अपने ही देश में पडौसी देश के हमलों के ही नहीं बल्कि अपने ही लोगों के हमलों के शिकार होकर कैसे सशक्त हो सकेगे? कैसे शत्रु के हमलों का मुकाबला कर सकेेंगे? ये भारत की एकता और अखण्डता के लिये, यहां की शांति के लिये गंभीर खतरे हैं। इन हिंसक हालातों में शांति की पौध नहीं उगायी जा सकती। राष्ट्रवादियों के आत्मबल को जगाने और सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने के लिए आतंकवादियों पर पूरी शक्ति से प्रहार करना ही होगा। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
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