कांग्रेस पार्टी की दुर्दशा देखकर किसे रोना नहीं आएगा ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी अब जिंदा भी रहेगी या नहीं? इस पार्टी की स्थापना 1885 में एक विदेश में जन्मे अंग्रेज ए.ओ. ह्यूम ने की थी। अब क्या इस पार्टी की अंत्येष्टि भी विदेश में जन्मी सोनिया गांधी के हाथों ही होगी? पिछले 135 साल में इस महान पार्टी में दर्जनों बार फूट पड़ी है और नेतृत्व बदला है लेकिन उसके अस्तित्व को जैसा खतरा आजकल पैदा हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
आज वह इतनी अधमरी हो गई और उसके नेता इतने अपंग हो गए हैं कि वे फूट डालने लायक भी नहीं रह गए हैं? जिन 23 नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा था, क्या उनमें से किसी की हिम्मत है कि जो बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस, आचार्य कृपालानी, डा. लोहिया, जयप्रकाश, निजलिंगप्पा, शरद पवार आदि की तरह पार्टी-नेतृत्व को चुनौती दे सके ?
कांग्रेस में अब तो नारायणदत्त तिवारी, अर्जुनसिंह, नटवरसिंह और शीला दीक्षित जैसे लोग भी नहीं हैं, जो पार्टी में वापिस भी आ गए लेकिन जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष को चुनौती देने की हिम्मत तो की थी। जिन 23 नेताओं ने सोनिया को पत्र लिखकर कांग्रेस की दुर्दशा पर विचार करने के लिए कहा था, जब वे कार्यसमिति की बैठक में बोले तो उनकी घिग्घी बंधी हुई थी। राहुल गांधी ने इन सबकी हवा निकाल दी। कौन हैं, ये लोग ? ये सब इंदिरा-सोनिया परिवार के घड़े हुए कठपुतले हैं। इनकी अपनी हैसियत क्या है ? इनमें से किसी की जड़ जमीन में नहीं है। ये राजनीतिक चमगादड़ हैं। ये उर्ध्वमूल हैं। इनकी जड़ें छत में हैं। ये उल्टे लटके हुए हैं। इनमें से किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि कांग्रेस जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई है, उसे बाकायदा एक लोकतांत्रिक पार्टी बनाने का आग्रह करें।
छह माह बाद जो कार्यसमिति की बैठक होगी, उसमें यदि गैर-सोनिया परिवार के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष बना दिया गया तो वह भी देवकांत बरुआ की तरह दुम हिलाने के अलावा क्या करेगा ? अब तो एक ही रास्ता बचा रह गया है। वह यह कि राहुल गांधी थोड़ा-बहुत पढ़े-लिखे, अनुभवी नेताओं और बुद्धिजीवियों से सतत मार्गदर्शन ले, ठीक से भाषण देना सीखे और इंतजार करे कि मोदी से कोई भयंकर भूल हो जाए। कोई धक्का ऐसा जबर्दस्त लगे कि पस्त होती कांग्रेस की हृदय गति फिर लौट आए तो शायद कांग्रेस बच जाए।