सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी बघारने वाले लेखकों के लिए एक और मुश्किल पेश आ गई है। बल्कि कहिए कि उन्हें अपना नाम चमकाने और शहादत बघारने का एक सौभाग्य मिल गया है। गौरतलब है कि इफको हर साल एक लेखक को 11 लाख रुपए का श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार देता है। इफको के अध्यक्ष , निदेशक मंडल व प्रबंध निदेशक यू एस अवस्थी सुप्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल के योग्य दामाद हैं और सुपरिचित आलोचक देवी प्रसाद अवस्थी के सुपुत्र। यू एस अवस्थी ने ही श्रीलाल शुक्ल की याद में इफको की तरफ से यह पुरस्कार शुरू किया था।
अब इन्हीं यू एस अवस्थी ने आज इफको की तरफ से 2 करोड़ 51 लाख रुपए का चेक राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार को सौंप दिया। न सिर्फ सौंप दिया , ट्वीटर पर इस की सूचना भी परोस दी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से घृणा की खेती करने वाले कितने लेखक श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार से भी कितनी घृणा और दूरी बनाए रखने में सफल होते हैं। हां , देवी प्रसाद अवस्थी की याद में भी प्रति वर्ष एक पुरस्कार दिया जाता है। इस पुरस्कार से भी कितने लोग दूरी बनाएंगे ?
और सौ सवालों पर एक सवाल यह भी कि बतर्ज साहित्य अकादमी श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार और देवी प्रसाद अवस्थी पुरस्कार पाए कितने लेखक इसे वापस भी करेंगे। आख़िर इस से बढ़िया अवसर कब मिलेगा घृणा और नफरत की खेती करने वाले लेखकों को। नाम चमकाने और नाखून कटवा कर शहीद बनने का एक बड़ा अवसर है यह। गंवाना तो नहीं ही चाहिए। अवार्ड वापसी गैंग के सुप्रीमो और रिटायर्ड आई ए एस अशोक वाजपेयी जी , सुन रहे हैं न ! एक बार फिर नेतृत्व संभाल लीजिए। सुनहरा अवसर है यह भी एक ! सुविधा यह भी है कि श्रीलाल शुक्ल पुरस्कार और देवी प्रसाद अवस्थी पुरस्कार वापसी में सचमुच की वापसी की संभावना है।
साहित्य अकादमी अवार्ड वापसी तो हवा-हवाई था। किसी एक लेखक ने सचमुच साहित्य अकादमी आज तक वापस नहीं किया। सिर्फ़ ऐलान किया। तथ्य यह भी महत्वपूर्ण है कि साहित्य अकादमी के संविधान के मुताबिक़ साहित्य अकादमी अवार्ड न साहित्य अकादमी वापस मांग सकती है , न कोई लेखक वापस कर सकता है। इस बाबत संबंधित लेखक से साहित्य अकादमी लिखित सहमति लेने के बाद ही साहित्य अकादमी अवार्ड देती है। पर नफ़रत और घृणा की खेती करने वाले लेखकों ने जनता की आंख में धूल झोंकने के लिए तब साहित्य अकादमी वापस करने का ऐलान कर सिर्फ़ और सिर्फ़ धूर्तई की थी।
साभार- http://sarokarnama.blogspot.com से