मुंबई, 19 जनवरी, 2017: “किसी भी समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया राजनीतिक इच्छा शक्ति से शुरु होती है, किसी भी निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए कानूनी प्रक्रिया और खुले विचारों के साथ स्वानुशासन भी ज़रुरी है।” यह विचार स्वीडन की काँसुल जनरल सुश्री उलरिका सनबर्ग ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुंबई और आल इंडिया इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन द्वारा (27-29 मार्च) महिला सशक्तीकरण पर आयोजित किए जाने वाले छठे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्मेलन के पूर्व आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
सन 1970 के दशक में स्वीडन में इस दिशा में की गई प्रगति का उल्लेख करते हुए सुश्री उलरिका ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर समाज में परिवर्तन लाने के लिये ऐसा करना हर हाल में ज़रुरी था। जब स्वीडन ने 1971 में परिवारों पर संयुक्त कर को समाप्त कर दिया तो इसका नतीजा ये हुआ कि कामकाजी शक्ति में महिलाओं की भागीदारी में 160 प्रतिशत की वृध्दि हो गई।
इस उच्चस्तरीय चर्चा संगोष्ठी में बांग्लादेश की उप उच्चायुक्त सुश्री समीना नाज़, श्री लंका की काँसुल जनरल सरोजा श्रीसेना, स्वीडन की काँसुल जनरल सुश्री उलरिका सनबर्ग, ब्राज़ील की काँसुल जनरल रोज़मीर द सिल्वा सुज़ानो और यूनाईटेड स्टेट के काँसुलेट की उप प्रमुख अधिकारी जेनिफर ए लार्सन के साथ ही, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुंबई की निदेशक-सुश्री रूपा नायक व जाने माने उपन्यासकार व सामाजिक कार्यकर्ता तुहिन सिन्हा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। फिल्म निर्माता और उपन्यासकार श्री विनोद पांडे ने इस चर्चा सत्र का संचालन किया। चर्चा सत्र में उपस्थित सभी सदस्य इस बात पर सहमत थे कि तकनीक की आसान पहुँच ने पूरी दुनिया में महिलाओं को उन्नत बनाने और कुछ नया करने की दिशा में प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
बांग्लादेश की उच्चायुक्त सुश्री समीना नाज़ ने कहा कि प्रोद्यौगिकी ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में बहुत ही सकारात्मक भूमिका अदा की है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में महिलाओं की उन्नति और सशक्तीकरण का एक लंबा दौर रहा है, और संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमारी इन उल्लेखनीय उपलब्धियों की प्रशंसा की है और बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख़ हसीना को वर्ष 2016 में 50-50 सम्मान भी प्रदान किया गया। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र संघ की जेंडर गैप रिपोर्ट में भी बांग्लादेश को दुनिया के 142 देशों में 10वें नंबर पर जगह दी गई है। ”
श्री लंका की काँसुल जनरल सुश्री श्रीसेना ने कहा कि उनके देश में महिलाओं से जुड़े अधिकांश कारोबार भले ही तकनीक और प्रोद्यौगिकी से नहीं जुड़े थे, लेकिन आज हर किसी के पास तकनीक की सीधी पहुँच है। आज श्री लंका की ज्यादा से ज्यादा महिलाएँ सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कह रही है। उन्होंने कहा कि श्री लंका की महान परंपरा रही है कि वहाँ महिलाओं को समानता का दर्जा दिया गया है, और अन्य देशों की तुलना में बगैर ज्यादा सकारात्मक कार्रवाई के बहुत-कुछ हासिल किया है।
ब्राज़ील की काँसुल जनरल सुश्री रोज़मीर सुज़ानो ने कहा कि उनके देश की सरकार ने तकनीक के माध्यम से गरीब से गरीब आदमी तक पहुँचने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि ब्राज़ील ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर काफी तरक्की की है और अब लोग साझा पितृत्व की अवधारणा पर चर्चा करने लगे हैं। “अब हमारे देश में कारोबार जगत में शिशु घर व बच्चों के लिए नर्सिंग की सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है।” उन्होंने कहा कि कठिन दौर से गुज़र रही कंपनियों कंपनियाँ महिलाओं को लेकर संकुचित नज़रिया अपनाती थी, लेकिन अब कानूनी बदलाव से इस दिशा में बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि ब्राज़ील में महिलाओं के लिए विशेष पुलिस थाने शुरु किए गए हैं और महिलाओं की सुरक्षा के लिए मोबाईल एप भी उपलब्ध कराए गए हैं।
अमरीकी काँसुलेट का प्रतिनिधित्व कर रही सुश्री लार्सन ने कहा कि अमेरिका में प्रोद्योगिकी ने एक तटस्थ भूमिका निभाते हुए लैंगिक भेदभाव को खत्म किया है और साथ ही महिलाओं को आर्थिक जगत में कई मौलिक विचारों के साथ अपनी सशक्त भागीदारी के लिए प्रेरित भी किया है। “ उन्होंने कहा, जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं तो वो आर्थिक गतिविधियों में सक्रियता से भाग लेती है और इसका परिणाम होता है जीडीपी में वृध्दि।”
उपन्यासकार और सामाजिक कार्यकर्ता तुहिन सिन्हा ने कहा, इस समय भारत में एक महिला के रूप में जन्म लेना एक अति रोचक उपलब्धि है क्योंकि हमारा समाज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ एक वैचारिक क्रांति हमें लैंगिक भेदभाव से उठकर सोचने के लिए प्रेरित कर रही है। स्वीडिश काँसुल जनरल ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा की आज हमें इस तरह के बजट तैयार करने होंगे जो स्त्री और पुरुष दोनों वर्गों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाये गए हों और जो साफ़ साफ़ बताएं की वो किस तरफ से लैंगिक भेदभाव कम करने में सहायक हैं। उन्होंने कहा कि स्वीडन में पिता के लिए भी ‘मातृत्व अवकाश’ की सुविधा अनिवार्य की गई, ताकि महिला और पुरुष का कैरियर समान बना रहे। तुहिन ने इसमें अपनी बात जोड़ते हुए कहा कि भारतीय समाज को महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अभी बहुत कुछ करना होगा और ‘महिलाओ को पुरुषों’ एवं ‘पुरुषों को महिलाओं’ के लिए माने जाने वाली भूमिकाओं में काम करना होगा।
संगोष्ठी के संचालक श्री विनोद पांडे ने कहा, कि अब वह समय आ गया है कि महिलाएँ अब अपने अधिकारों के लिये पुरुषों के अधीन नहीं हैं और बेहतर होगा की पुरुष ऐसा सोचना बंद कर दें। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की निदेशक सुश्री रुपा नाईक ने सत्र का समापन करते हुए कहा कि दुनिया की आधी आबादी को उत्पादक आर्थिक जगत में उपेक्षित नज़रिये से देखने की वजह से मानव समाज का बहुत नुक्सान हो रहा है। “शोध रिपोर्टों से साफ पता चलता है कि अगर हम महिलाओं को आर्थिक जगत की मुख्य धारा में बराबर से शामिल करते हैं तो दुनिया की जीडीपी 2025 तक 28 महाशंख (ट्रिलियन) डॉलर की वृध्दि देख सकती है।”
फोटो (बाएं से दाएं): विनोद पांडे; रूपा नायक; सरोजा श्रीसेना; समीना नाज़; उलरिका सनबर्ग; जेनिफर लार्सन; रोज़मीर द सिल्वा सुज़ानो एवं तुहिन सिन्हा
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