– नयी गाड़ी निकाली तो मोड़ पे स्पीड ब्रेकर में चेसिस टकरा गई। पता चला नया स्पीड ब्रेकर बना है। मोड़ पर स्पीड ब्रेकर कौन बनाता है? वो भी इतना ऊँचा जैसे आम आदमी को गाड़ी ख़रीदने की की सज़ा दी जा रही हो। अब किससे करें शिकायत?
– सालों से इसी रास्ते से घर आता जाता था, आज म्यूनिसपैलटी वाले मैनहोल खुला छोड़ के चले गये, रात थी, बारिश थी, सड़क पे ना तो कोई बोर्ड था ना लाइट्स। गाड़ी घुस गई मैनहोल में। एक्सल टूट गया, पसलियों में ज़बर्दस्त झटका लगा। वो तो गणेश जी थे सामने डैशबोर्ड में सो उन्होंने बचा लिया वरना मर ही गया होता। गाड़ी एक महीने से गराज में है, इंश्योरेंस वालों को कुछ खिलाया है तो शायद कुछ पैसा आ जाएगा। अब किससे करें शिकायत?
– नया एक्सप्रेसवे बना था परिवार को लेके, सुबह सुबह, पराठे अचार पैक करके निकल पड़े हम अपनी नयी गाड़ी में। प्रगति का आनंद उठाने। मैं स्पीड लिमिट में अपनी ही लेन में गाड़ी चला रहा था की अचानक उल्टी तरफ़ से एक टेम्पो शॉर्ट कट लेता हुआ आ गया। मैं जब तक ब्रेक मारता… मेरे दोनों बच्चे और बीवी वहीं मर गये और ईश्वर की क्रूरता देखिए मैं बच गया मर मर के जीने के लिए। अब किस से शिकायत करूँ?
– जब पुल बनाने के लिए सड़क बंद की थी तो सरकार ने बोला था ६ महीने में खुल जाएगी, तीन साल हो गये ना तो पुल बना ऊपर से जो कच्चा डायवर्शन बना था उसमें बरसात के कारण तीन तीन फुट के गड्ढे हैं। एक किलोमीटर के रास्ते को क्रॉस करने में आधा घंटा लग जाता है। या तो लोग गिरे पड़े रहते है या ट्रेक्टर फँस जाता है। गाड़ी और शरीर दोनों के अंजर पंजर हो गये हैं पर किससे शिकायत करें साहब।
– अम्माँ को उनकी दोस्त के यहाँ छोड़ने जा रहा था की अचानक मोड़ पे सड़क के कुत्ते पीछे लग गये, मैंने बाइक तेज चलायी पर एकदम से सड़क सँकरी हो गई, बहुत खुदी हुई थी, बाइक ज़ोर से उछली तो अम्माँ फिसलीं और गिर पड़ीं। हिप्स की हड्डी टूट गई। बहुत चोट आयीं। मैंनें ख़ुद को तो किसी तरह सम्भाल लिया पर बाइक बुरी तरह डैमेज हो गई।छै महीने हो गये अम्माँ की हड्डी सेट नहीं हो रही। सारी सैलरी तो अम्माँ की फ़िज़ियोथेरेफ़ी में चली जाती है बाइक कहाँ से ठीक कराऊँ। पैदल जाता हूँ ऑफिस। घुटनों में दर्द सा होने लगा है। डरता हूँ कहीं अम्मा के साथ मैं भी ना लेट जाऊँ खटिया पे। अब किससे शिक़ायत करें?
– सड़क पे जा रही थी दवाई लेने की एक जीप ने पीछे से ठोंक दिया। पाओं की दो हड्डी टूट गई। सारी सेविंग चली गई ऊपर से घर का काम भी नहीं कर सकती। मेड रखनी पड़ी मेरा ख़याल रखने के लिये क्योंकि वो तो ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकते। बेटी लखनऊ में मेडिकल कर रही है, फाइनल ईयर है।
“फुटपाथ पे क्यों नहीं चल रही थीं दीदी?” मैंने पूछा।
फुटपाथ है कहाँ? उसपे तो दुकानें लगी हुई हैं। दुकान के सामने रेवड़ी वाले हैं। उनके आगे बाइक्स पार्क्ड रहती हैं। ज़रा सी सड़क ही बची है चलने के लिये।
“तो म्यूनिसपैलटी या पुलिस को बोल के हटवाती क्यों नहीं? कोई शिक़ायत करेगा ही नहीं तो कैसे होगा। तुम्हारा भी तो कुछ कर्तव्य है एक नागरिक होने के नाते दीदी” मैंने बोला।
उनसे बोला था भैया पर उल्टा हम पे ही गरिया दिये, बोले सड़क पे नहीं चल सकती क्या? फिर पता चला वो ही तो लगवाये हैं सब दुकान। हफ़्ता लेते हैं।
“तो MLA से बोलती।”
बोला था पर वो बोले सरकार ही कुछ कर सकती है। फिर मंत्री जी से मिली। वो बोले अतिक्रमण तो पिछली सरकार की देन है। इस वक़्त नयी सड़कें बनाने में फोकस कर रहे हैं। बोले आवेदन दे दो। कुछ दिन बाद नयी सड़क का उद्घाटन करने प्रधान मंत्री आये, मैंने कोशिश भी की उन तक पहुँचने की पर इतनी भीड़ थी। मैं ज़ोर से चिल्लाई भी पर इतना शोर था की मेरी आवाज़ उसमें खो गई। अब उससे आगे कहाँ जाती।
“उस जीप के ख़िलाफ़ रिपोर्ट की या नहीं?”
गई थी पुलिस स्टेशन, TI ने कहा वो तो मंत्री जी की ही पेट्रोलिंग जीप थी उसके ख़िलाफ़ FIR कैसे लिख सकते हैं। मेरी मौसी का बेटा भी पुलिस में है उसनें बताया कि हफ़्ते का सारा पैसा ऊपर तक जाता है। उसी पैसे से तो होती हैं यह सब रैलियाँ और इलेक्शंस। अब आप ही बताओ भैया, हम जायें तो जायें कहाँ?
भारत की सड़कों पे चलने वाला आम आदमी शायद कभी नहीं जान पाएगा कि वो वो आख़िर जाये तो जाये कहाँ।
डिस्क्लेमर: यह सब असली क़िस्से हैं जो मेरे दोस्तों, परिवारजनों और सहभागियों के साथ हुए हैं। आप भी कमेंट्स में अपने क़िस्से साझा करें। कहीं जा नहीं सकते, कम से कम अपनी पीड़ा तो व्यक्त कर सकते हैं।
Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri)
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