योगी आदित्यनाथ भारतीय राजनीति में अब तीसरे नंबर के सबसे ताकतवर नेता बन गए हैं। पहले नंबर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उनके बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह। और अब योगी। उत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को कट्टर हिंदुत्व एवं प्रखर राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता हैं। मोदी व अमित शाह को और खासकर उनकी बीजेपी व संघ परिवार को ऐसे ही नेता की तलाश थी। गुजरात के सीएम के रूप में मोदी ने भी अपनी कुछ कुछ इसी तरह की छवि के जरिए खुद को और बीजेपी को अधिक मजबूत किया था। राजनीति में मोदी के एजेंडे क आगे बढ़ाने ते लिए इसी तरह के सीएम की जरूरत भी होती है। वैसे भी, यूपी वह प्रदेश हैं, जहां किसी राष्ट्रीय पार्टी के मजबूत सीएम होने का देश भर में इसलिए भी बहुत मजबूत संदेश जाता है, क्योंकि केंद्र में भी उन्हीं की सरकार है। राजनीति बदल रही है और दमदार नेता देश का दारोमदार संभालें, यह पहली दरकार है। क्योंकि अब आगे बदलाव का यह रास्ता सिर्फ विकास या फिर धर्म निरपेक्षता के लबादे को ओढ़कर तय नहीं किया जा सकता।
जीवन भर मुसलमानों के खिलाफ आग उगलनेवाले योगी आदित्यनाथ मुखिया ने शपथ ले ली है और अब वे यूपी के मुखिया हैं। उत्तर प्रदेश के 325 विधायकों ने नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उनका चयन किया। उन्होंने चयन इसलिए किया, क्योंकि उनको उन्हीं के मुताबिक मुख्यमंत्री की तलाश थी। यूपी में 18 फीसदी मुसलमान हैं और हमारे हिंदुस्तान के इस सबसे बड़े प्रदेश की सरकार चलाने के लिए योगी के इस चयन से संकेत साफ हैं कि मोदी और शाह राजनीति को उसके परंपरागत और सहज स्वरूप में आजमाने के मुरीद नहीं हैं। वे प्रयोगधर्मी हैं और बदलाव की बिसात और आक्रामक अंदाज में राजनीति की राहें तय करने के शौकीन होने की वजह से यह सीख गए हैं कि सियासत के परंपरागत तरीकों को पलटकर आगे का रास्ता कैसे आसान बनाया जा सकता है।
संकेत बहुत साफ है कि बचकर राजनीति करने का कोई बहुत मतलब नहीं रह गया है। और, राजनीतिक तौर पर खुद को निरपेक्ष और निष्पक्ष साबित करने का तो और भी कोई मतलब नहीं है। अब हिचक और झिझक के परंपरागत मिजाज को मसलकर निस्संकोच तरीकों से बहुत आगे के फैसले जरूरी हैं। सो, योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री इसलिए बनाया गया क्योंकि गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने गए योगी ध्रुवीकरण करने में ‘पारंगत’ है। यूपी का इस बार चुनाव भी ध्रुवीकरण के जरिए ही जीता गया और इसी ध्रुवीकरण को साधकर 2019 का लोकसभा चुनाव भी बहुत आसानी से जीता जा सकेगा।
वैसे, आज की राजनीति में ताकत की ताजा तस्वीर देखें, तो प्रखर सत्य यही है कि अब भाजपा में मोदी और शाह के बाद योगी आदित्यनाथ तीसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं। मोदी और शाह की तरह वे भी जमीनी स्तर पर बहुत कर्मठ हैं, जनाधार के मामले में सबल भी हैं और लोकप्रियता के मामले में भी वे बहुत सक्षम भी। कार्यकर्ताओं के बीच वे अपने प्रदेश की सीमाओं के पार भी खासे लोकप्रिय हैं। ताकत की इस ताजा तस्वीर में योगी के आने से पहले मोदी और शाह के बाद देश में सबसे ताकतवर नेता के रूप में राजनाथ सिंह और अरुण जेटली को देखा जाता रहा है। लेकिन आपको भी लगता होगा कि इस पूरे परिदृश्य में योगी के आते ही राजनाथ और जेटली पीछे खिसक जाते हैं।
इन दोनों का जनाधार और लोकप्रियता योगी आदित्यनाथ जितनी नहीं है और तेवर तो खैर बिल्कुल भी योगी जितने तीखे तीखे नहीं है। फिर राजनीति में सबसे ज्यादा मजबूत वहीं होता है, जो वोट दिला सकता है। तो, जेटली और राजनाथ के मुकाबले योगी आदित्यनाथ वोटों की तासीर बदलने की ताकत भी बहुत ज्यादा रखते हैं। बीते कुछेक सालों में यूपी में कई ऐसे भी दौर आए जब पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ मजबूत माहौल बना, लेकिन योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से हर जबरदस्त जीत हासिल करते रहे। योगी के चयन में संघ परिवार की भी अहम भूमिका रही। इसका साफ मतलब है कि योगी संघ की भी पसंद हैं। मजबूत तो वे वैसी भी कोई कम नहीं हैं। लेकिन यह और स्पष्ट हो गया है कि संघ परिवार का चहेता होना आने वाले दिनों में योगी को पार्टी में और देश में भी बहुत मजबूत बनाएगा।
बहुत पुराना इतिहास न भी टटोलों और बीते कुछेक महीनों के दायरे में ही देखें, तो नरेंद्र मोदी सरकार और उनकी बीजेपी के फैसलों का गहन अध्ययन करें, तो पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के बाद योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाना तीसरा सबसे बड़ा दांव है। दरअसल, बीजेपी अब हिंदुत्व के इर्द-गिर्द बुनी गई लोकप्रिय विचारधारा और राष्ट्रवाद को केंद्र में रखकर अपनी आगे की राजनीतिक यात्रा पर आगे बढ़ना चाहती है। योगी राम जन्मभूमि से जुड़े दिग्गज नेताओं में से एक रहे हैं और राजनैतिक विचारधारा के तौर पर देखें, तो वह कट्टर दक्षिणपंथी हैं। संकेत साफ हैं योगी को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी की सामाजिक ध्रुवीकरण के जरिए राजनीतिक सफलता पाने की चाह की चाबी है। आगे की देखें, तो सन 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना बीजेपी के लिए जरूरी है। हिंदुत्व वैसे भी बीजेपी की सफल चुनावी रणनीति का प्रमुख आधार रहा है। शमशान और क्रबिस्तान की तुलना, रमजान और दिवाली में बिजली को बांटने जैसे बयानों के जरिए बीते यूपी के चुनाव में धार्मिक और जातीय आधार पर जनता के बीच स्पष्ट रूप से भेद को विभाजित करते बीजेपी को हम सबने देखा ही है।
इस सबके बावजूद जो लोग योगी को सीएम बनाने को बहुत गहन मंथन के बाद लिया गया फैसला मानते हैं उनको अपनी सलाह है कि वे जरा पिछले साल मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक को याद कर लें, जिसमें संघ परिवार के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया। इस बैठक में संतों ने साफ साफ कहा था कि यूपी में हमारी ताकत के लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे देश में छा जाने के पीछे बड़ी वजह उनकी हिंदुत्ववादी और विकास करने वाले नेता की छवि ही थी। अब योगी के यूपी का सीएम बनने के बाद कहा जा सकता है कि फिलहाल बीजेपी के किसी दूसरे मुख्यमंत्री की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की नहीं है। आबादी के अनुपात में भी देखें, तो देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री के बाद देश के किसी संवैधानिक पद पर बैठने वाले दूसरे सबसे ताकतवर राजनेता भी बन गए हैं। फिर उनका मोदी जैसा ही आक्रामक अंदाज उन्हें और भी ताकतवर बनाता है। अपना मानना है कि देश में मोदी और शाह की अब तक जबरदस्त जोड़ी थी। इसमें योगी के जुड़ने के बाद अब यह ताकतवर तिकड़ी हो गई है। क्या आपको नहीं लगता कि मोदी और अमित शाह के बाद योगी आदित्यनाथ देश के तीसरे ताकतवर नेता के रूप में अब हमारे सामने हैं ?
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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