इन्दौर। तीन साल से पूर्वोत्तर के त्रिपुरा व मिजोरम के गांवों के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के बच्चों को शिक्षित कर उनका भविष्य संवारने का काम शहर के युवाओं द्वारा किया जा रहा है। इसकी शुरुआत शहर की निखिल दवे और उनके दोस्त प्रतीक ठक्कर ने कुछ साल पहले की थी। धीरे-धीरे लोग इस प्रयास से जुड़ते गए और बच्चों की संख्या भी बढ़ती गई। इस साल पूर्वोत्तर के 8 से 15 साल तक के 10 बच्चे शहर के एक निजी स्कूल में कक्षा 3 से 8 तक की पढ़ाई कर रहे हैं। बच्चों को यहां लाकर रखने, उनके खाने-पीने से लेकर स्कूल में एडमिशन और कॉपी-किताबों तक हर इंतजाम ये युवा करते हैं। दो साल में एक बार ये बच्चे छुट्टियों में अपने घर भी जाते हैं।
हमारे गांवों में माहौल खराब : त्रिपुरा के आसापारा गांव के 14 साल के ओजित कुमार मेस्का कहते हैं, हमारे यहां स्कूल हैं, लेकिन माहौल बहुत खराब है। छोटे बच्चे भी सिगरेट, शराब यहां तक कि ड्रग्स का सेवन करते मिल जाएंगे। इसीलिए जब हमें यहां आने का मौका मिला तो हमारे माता-पिता ने तुरंत मंजूरी दे दी। ओजित का कहना है कि हमारा घर जाने का मन होता है, लेकिन पढ़ाई करके अच्छी नौकरी मिल जाए, इसलिए मन को मना लेते हैं।
ओजित कक्षा 6 में पढ़ रहा है। आठवीं में पढ़ रहा सोमलुहा जो अब धाराप्रवाह हिंदी बोल पा रहा है, तीन साल पहले हिंदी का एक शब्द भी समझना मुश्किल था। सोमलुहा और उसके साथियों के लिए शुरुआत में भाषा के अलावा दूसरी कई कठिनाइयां थीं, जैसे यहां के मौसम में एडजस्ट करना, यहां का खानपान सब कुछ अलग था लेकिन शिक्षा की दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से हर मुश्किल का सामना किया।
राशन-दूध का इंतजाम महिलाएं कर रहीं : इन बच्चों के लिए हर महीने राशन का इंतजाम शहर की अपर्णा साबू द्वारा किया जाता है। वे अपने दोस्तों के साथ हर महीने बच्चों के लिए 10 हजार रुपए का राशन उपलब्ध कराती हैं। वहीं हर महीने 99 लीटर दूध उपलब्ध कराने का काम गुंजन डागा और उनकी पांच महिला मित्रों द्वारा किया जाता है। गुंजन कहती हैं जब मुझे दो साल पहले पता चला बच्चों को पूर्वोत्तर से लाकर शिक्षित किया जा रहा है तो पहले मैंने स्वयं इस काम को जाकर देखा। इसके बाद इन बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था शुरू करवाई।
छोटे बच्चों के अलावा कुछ बड़े लड़के भी शहर आकर कॉलेज के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। यहीं रहकर शिरोंदो रियान ने बैंक की तैयारी की और लिखित परीक्षा में सिलेक्शन हो गया है और अभी साक्षात्कार की तैयारी कर रहा है। इसके अलावा डेनियल यहीं से एमकॉम कर रहा है। निखिल दवे कहते हैं शुरुआत 2013 में मालवा-निमाड़ के बच्चों के साथ की, फिर 2016 में 6 बच्चे पूर्वोत्तर के आए जिनमें दो कॉलेज के थे। पिछले साल कुछ बच्चे और आए। इस बार 8 छोटे बच्चे जो स्कूलों और 2 बड़े बच्चे आए जो कॉलेज में पढ़ रहे हैं। इनके पैरेंट्स के साथ इनका बराबर संपर्क कराया जाता है। इनके परिवारों की स्थिति इतनी खराब है कि वे इन्हें बर्डन समझते हैं। यहां तक की छुट्टियों में भी बुलाना नहीं चाहते।
साभार- https://naidunia.jagran.com से