Thursday, March 13, 2025
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Homeपुस्तक चर्चा'यूँ गुज़री है अब तलक' के पन्नों से निकला यादों का समंदर

‘यूँ गुज़री है अब तलक’ के पन्नों से निकला यादों का समंदर

एक पुस्तक कई कहानियों, घटनाओं, दुख-दर्दों और रिश्तों की खट्टी मीठी यादों को ताजा कर देती है। जानी मानी फिल्म व टीवी धारावाहिक निर्माता अभिनेत्री सीमा कपूर की पुस्तक ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ के विमोचन समारोह में ऐसे ही कुछ जीवंत पलों ने इतना कुछ जीवंत कर दिया कि पुस्तक विमोचन समारोह किसी बावनात्मक पारिवारिक फिल्म की तरह सजीव होता गया। सीमा कपूर के प्रियजनों की यादों का कारवाँ ऐसा चला कि समारोह में आए आत्मीयजन भी तीन घंटे तक लगातार भावनाओं के समंदर में भीगते रहे।

मुंबई में ऐसे तो की आयोजन होते हैं लेकिन ऐसे ही कुछ आयोजन रिश्तों और भावनाओं की मिठास का एहसास छोड़ जाते हैं।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए फिल्म निर्माता-निर्देशक रूमी जाफरी और कलाकार खुशबू पांचाल ने जो माहौल बनाया वह कार्यक्रम के समापन तक उपस्थित श्रोताओं पर रस वर्षा करता रहा।

रुमी जाफरी ने इस शेर के साथ कार्यक्रम का प्रारंभ किया-
पानी में अक्स देखकर मैं इतरा रहा था, किसी ने पत्तर फेंककर मेरा वजूद हिला दिया।

जानी मानी नृत्यांगना और
खुशबू पांचाल ने एक श्लोक से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
“क्षीयन्ते क्षणतः काया यान्ति भस्मीं च भाजनम्।
कीर्तिस्तु स्थायिनी पुंसां गङ्गेवाक्षयिणी सदा॥”
शरीर नष्ट हो जाता है, भौतिक वस्तुएँ भी समय के साथ समाप्त हो जाती हैं, किंतु महान पुरुषों की कीर्ति गंगा की भाँति सदा अमर रहती हैकार्यक्रम के प्रारंभ में सीमा कपूर के जीवन से जुड़ी यादों को लेकर एक वृत्त चित्र का प्रदर्शन किया गया जिसमें कई जानी मानी हस्तियों और परिवारजनों ने अपनी यादों के पिटारे से सीमा कपूर से जुड़े संस्मरण प्रस्तुत किए।

इस अवसर पर अनुपम खेर न कहा कि कपूर परिवार संस्कृति, साहित्य, कला और संगीत की पूजा करने वाला एक ऐसा परिवार है जिसने फिल्मी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सीमा कपूर की पुस्तक जो भी पढ़ेगा उसे इसमें एक फिल्म दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि अपनी जीवनी पर पुस्तक लिखना यानी अंदर के सत को बाहर लाने जैसा है, लेकिन ये भी जरुरी है कि एक अगर सच कह सके तो दूसरा सच सुन सके।

इससे पहले कि कोई रंग बगावत कर दे, जिंदगी आ तेरी तस्वीर मुकम्मल कर दूँ।

सीमा कपूर ने अपनी बात कुछ शेरों में यू कही…
नहीं मिला जो बंदूक का लायसेंस, मैने तो इस खयाल को ही गोली मार दी।
उन्होंने अपने परिवार की और अपनी संघर्ष यात्रा को लेकर कई संस्मरण साझा किए। उन्होंने कहा कि मेरे नानाजी बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी थे और अंग्रजों से बचकर वे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ आ गए। टीकमगढ़ के राजा ने उनको शरण दी और अपने राज्य में दीवान का पद दे दिया। मेरे दादाजी फौज में कर्नल थे और पूरा परिवार सेना में था मेरे पिताजी डीएवी कॉलेज लाहौर में पढ़े थे। उन्होंने दिल्ली आकर अपनी नाटक कंपनी प्रारंभ की। उस नाटक कंपनी में 250 लोग थे। लेकिन जब देश में सिनेमा आ गया तो नाटक कंपनी को चलाना मुश्किल हो गया और घर -परिवार के साथ ही नाटक कंपनी के 250 लोगों का पेट भरना मुश्किल हो गया। उसी समय कय थिएटर बंद हो गए और उन थिएटरों के कलाकार मेरे पिताजी के पास काम मांगने आ गए। हमारी हालत और खराब होती गई। पिताजी ने थिएटरों में जो कलाकार रखे थे वे ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं होते थे, ऐसे में इन कलाकारों को कहीं दूसरी जगह भी काम मिलना मुश्किल होता था। मेरे पिता पढ़ाई करवाने की बजाय जीवन में कुछ सीखने पर जोर देते थे, लेकिन मेरी माताजी ने हम सब को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने अपने बचपन और स्कूल के दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि तब नाटक नौटंकी में काम करने वालों को सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता था और मैं स्कूल जाती थी तो मेरी सहेलियाँ मेरी उपेक्षा करती थी। दूसरी और घर में इतनी गरीबी थी कि आधी रोटी और अचार लेकर स्कूल जाती थी, जबकि सभी सहेलियाँ पराठे पूडी और मिठाई लेकर स्कूल आती थी।

अपनी माताजी को याद करते हुए सीमा जी ने कहा कि वो जानी मानी शायरा और गायिका थी और तब बसंत देसाई जैसे संगीतकार ने उन्हें अपनी फिल्म के लिए 6 गाने गाने का प्रस्ताव रखा था मगर मेरी दादीजी को ये बात पसंद नहीं थी कि उनकी बहू फिल्म के लिए गाने गाए तो उन्होंने मना कर दिया और मेरी माताजी ने भी चुपचाप इस बात को स्वीकार कर लिया।

सीमा कपूर ने कहा कि हमारे माता-पिता का और हमारा जीवन घोर गरीबी में बीता मगर हमने कभी झूठ बोलकर या किसी का नुक्सान कर अपना हित साधने की कोशिश नहीं की। लेकिन आज सब-कुछ होते हुए भी हमको कई बार झूठ बोलकर काम निकलवाना पड़ता है।

अपने स्वर्गीय पति ओम पुरी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि
मैने करवट बदलकर देखा है, याद तो तुम उस तरफ भी आते हो।
जो न मिल सके वो बेवफा थे, अजीब सी बात है
जो चला गया  छोड़कर वो अभी तक याद है
अपना परिचय उन्होंने परवीन शाकिर के इस शेर से दिया…
फुरसत अगर मिले तो पढ़ना मुझे जरुर
मैं नायाबा उलझनों की मुकम्मल किताब हूँ
उन्होंने अपनी स्वर्गीय माताजी के शेर से उनको याद किया
कुछ ऐसे मुकाम पर लाई है नाकामी मुझे
मेरे हौसले अब जवान होने लगे हैं

जाने माने अभिनेता रघुवीर यादव ने कहा कि मैने अपनी जिंदगी कपूर साहब की थिएटर कंपनी से ही शुरु की। मैं ग्यारहवीं में फैल होने के डर से घर से भाग गया था, और उत्तर प्रदेश के ललितपुर में सीमा जी पिता की कंपनी में काम मांगने पहुँच गया। पिताजी ने मुझे चांद ये चांदनी ये सितारे बदल गए। जब पिताजी ने कहा कि मेरे तफल्लुस ठीक नहीं है तो मैं समझा कि इसे तपले पर गाकर सुनाना है। उन्होंने मुझे समझाया कि तफल्लुस का मतलब तबले से नहीं बल्कि उच्चारण से है। पिताजी ने मुझे  ढाई रुपये रोज पर काम पर रख लिया इस तरह मेरी जिंदगी का पहला अध्याय उनके सॆथ शुरु हुआ।

उन्होंने बताया कि उस समय सीमा का और मेरा बचपन का दौर था। हम दोनों ही काले थे, किसी ने कह दिया कि साबुन से नहाने पर गोरे हो जाएंगे तो हम हँसिया छाप साबुन लेकर आए और उससे रगड़ रगड़ कर नहाने लगे। मगर गोरे होन  की बजाय हमारी चमड़ी ही छिल गई। हम आधे साबुन से नहाते थे और आधे से कपड़े धोते थे।

सीमा कपूर ने कहा कि हम लोग चंबन नदी पर नहाने जाते थे तो वहाँ हमको नारियल मिल जाते थे और हम वही नारियल खाकर पेट भर लिया करते थे। एक बार वहाँ लाल कपड़ा मिल गया तो मैने जिद की कि मैं तो इसकी चड्डी सिलवाउँगी। लेकिन इसको लेकर रङुवीर यादव और हमारे साथी के बीच झगड़ा हो गया कि इस कपड़े की चड्डी कौन सिलवाएगा। झगड़ा जब माँ तक पहुँचा तो माँ ने तीनों की पिटाई की और कहा कि ये नारियल और लाल कपड़े नदी किनारे बने श्मशान में मुर्दों के साथ आते हैं।

इस अवसर पर जानी मानी अभेनत्री दिव्या दत्ता ने कहा कि सीमा दीदी से मेरा मौन का रिश्ता रहा। इनकी बनाई फिल्म हाट – द वीकली बाजार मे मैने इनके साथ काम किया और ये अनुभव किया कि इनकी डॉंट में भी सीख और आत्मीयता छुपी होती  थी।

फिल्म अभिनेता परेश रावल ने कहा कि सीमा कपूर से मेरा ज्यादा परिचय नहीं है लेकिन इनके भाई अन्नू कपूर के साथ काम करते हुए मैने ये जाना है कि ये परिवार कितना सुसंस्कृत, और शालीन है। उन्होंने कहा कि जीवनी लिखना ऐसा ही है कि झूठ बोलो तो पाप लगे और सच बोलो तो आग लगे।

रुमी जाफरी ने कहा कि जब मैं भोपाल से मुंबई आया तो  अपना परिवार छोड़कर आया था और यहाँ आकर जब अन्नू कपूर और सीमा कपूर से मिला तो ऐसा लगा जैसे मुझे अपना परिवार ही मिल गया।

अन्नू कपूर ने सीमा कपूर के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि वह जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष और यातना से गुजरी है लेकिन किसी वीरांगना की तरह सब पीती गई और उसने हमारे माता-पिता की जिस तरह सेवा की और उनकी भावनाओँ को सम्मान दिया उसका मैं साक्षी रहा हूँ। अन्नू कपूर ने सीमा कपूर द्वारा अपनी माताजी के लिए लिखी गई ये पंक्तियाँ भी सुनाई-
तुम अपने आँचल पर घनेरी छाँव काढ़ लो, ताकि मैं जब मई जून की चिलचिलाती धूप में आकर उसके नीचे सुकून से बैठूँ तो मुझे लगे कि थके हुए मुसाफिरों का पड़ाव यहाँ तक है।

सीमा कपूर के छोटे भाई निखिल कपूर ने कहा कि मेरी माँ ने कहा था कि तेरी असली माँ तो ये हैं और मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मेरे बचपन से लेकर आज तक दीदी ने मुझे माँ से ज्यादा प्यार दिया। मुझे साइकिल पर घुमाने से लेकर कंधे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने तक एक एक दृश्य मुझे याद है।

बोनी कपूर ने कहा कि कपूर परिवार के अनुनू कपूर के साथ ही इनके भाई , भतीजों भतीजियों सबसे मेरा संपर्क रहा। मेरी दोनों बेटियों को अच्छी हिंदी सीमा जी ने सिखाई।

इस आयोजन में फिल्म, टीवी और थिएटर जगत से लेकर समाज के अलग-अलग वर्गों की कई प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित थी। पुस्तक विमोचन का ये आयोजन एक तरह से एक पारिवारिक मिलन और रिश्तों की मिठास और आत्मीय अहसासों का यादगार आयोजन हो गया।

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