Sunday, November 24, 2024
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गाहिरा गुरू ने बदल दी लाखों आदिवासियों की जिंदगी

-गाहिरा गुरु पुण्य तिथि 21 नवम्बर_
छत्तसीगढ़  के रायगढ़ और सरगुजा जिले में गोंड, कंवर, उरांव, कोरवा, नगेसिया, पंडो आदि वनवासी जातियां वर्षों से रहती हैं। ये स्वयं को घटोत्कच की संतान मानती हैं। मुगल आक्रमण के कारण उन्हें जंगलों में छिपना पड़ा। अतः वे मूल हिन्दू समाज से कट गये। गरीबी तथा अशिक्षा के चलते कई कुरीतियों और बुराइयों ने जड़ जमा ली।
इन्हें दूर करने में जिस महामानव ने अपना जीवन खपा दिया, वे थे रायगढ़ जिले के लैलूंगा विकास खंड के ग्राम गहिरा में जन्मे रामेश्वर कंवर, जो ‘गहिरा गुरु’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। गहिरा गुरु का जन्म 1905 में श्रावणी अमावस्या को हुआ था। उस क्षेत्र में कोई बच्चा पढ़ता नहीं था। यही स्थिति रामेश्वर की भी थी। घर में लाल कपड़े में लिपटी एक रामचरितमानस रखी थी। जब कोई साधु-संन्यासी आते, वही उसे पढ़कर सुनाते थे। इससे रामेश्वर के मन में धर्म भावना जाग्रत हुई।
वहां मद्यपान तथा मांसाहार का आम प्रचलन था। ऐसे माहौल में रामेश्वर का मन नहीं लगता था। वे जंगल में दूर एकांत में बैठकर चिंतन-मनन करते थे। उन्होंने लोगों को प्रतिदिन नहाने, घर में तुलसी लगाने, उसे पानी देने, श्वेत वस्त्र पहनने, गांजा, मासांहार एवं शराब छोड़ने, गोसेवा एवं खेती, रात में सामूहिक नृत्य के साथ रामचरितमानस की चौपाई गाने हेतु प्रेरित किया।
प्रारम्भ में अनेक कठिनाई आयीं; पर धीरे-धीरे लोग बात मानकर उन्हें ‘गाहिरा गुरुजी’ कहने लगे। वे प्रायः यह सूत्र वाक्य बोलते थे –
चोरी दारी हत्या मिथ्या त्यागें, सत्य अहिंसा दया क्षमा धारें।
अब उनके अनुयायियों की संख्या क्रमशः बढ़ने लगी। उनके द्वारा गांव में स्थापित ‘धान मेला’ से ग्रामीणों को आवश्यकता पढ़ने पर पैसा, अन्न तथा बीज मिलने लगा। इससे बाहरी सहायता के बिना सबकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। उन्होंने ‘सनातन संत समाज’ बनाकर लाखों लोगों को जोड़ा।
शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने कई विद्यालय एवं छात्रावास खोले। इनमें संस्कृत शिक्षा की विशेष व्यवस्था रहती थी। समाज को संगठित करने के लिए दशहरा, रामनवमी और शिवरात्रि के पर्व सामूहिक रूप से मनाये जाने लगे। लोग परस्पर मिलते समय ‘शरण’ कहकर अभिवादन करते थे।
उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से श्री बालासाहब देशपांडे ने ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ नामक संस्था बनाई थी। इसे जशपुर के राजा श्री विजयभूषण सिंह जूदेव का भी समर्थन था। इन सबके प्रति गहिरा गुरु के मन में बहुत प्रेम एवं आदर था। भीमसेन चोपड़ा तथा मोरूभाई केतकर से उनकी अति घनिष्ठता थी। वे प्रायः इनसे परामर्श करते रहते थे। इनके कारण उस क्षेत्र में चल रहे ईसाइयों के धर्मान्तरण के षड्यन्त्र विफल होने लगे।
गहिरा गुरु ने अपने कार्य के कुछ प्रमुख केन्द्र बनाये। इनमें से गहिरा ग्राम, सामरबार, कैलाश गुफा तथा श्रीकोट एक तीर्थ के रूप में विकसित हो गये। विद्वान एवं संन्यासी वहां आने लगे। एक बार स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर उन्हें शासन के विशेष विमान से दिल्ली लाकर हृदय की शल्य क्रिया की गयी। ठीक होकर वे फिर घूमने लगे; पर अब पहले जैसी बात नहीं रही।
कुछ समय बाद गहिरा गुरु प्रवास बंद कर अपने जन्म स्थान गहिरा ग्राम में ही रहने लगे। 92 वर्ष की आयु में 21 नवम्बर, 1996 (देवोत्थान एकादशी) के पावन दिन उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। उनके बड़े पुत्र श्री बभ्रुवाहन सिंह अब अपने पिता के कार्यों की देखरेख कर रहे हैं।

देश के सभी हिस्सों को भारतीय पैनोरमा में उचित प्रतिनिधित्व मिले यह सुनिश्चित करने का प्रयास

गोआ।  55वें भारतीय-अतंर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 के चल रहे आयोजन के बीच भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म संवर्ग के जूरी सदस्यों ने कहा कि 384 भारतीय फिल्मों में से 25 फिल्में चुनना काफी मुश्किल भरा फैसला था और महोत्सव में जिन फिल्मों का चयन नहीं हो सका, उनकी गुणवत्ता कमतर नहीं मानी जानी चहिए। फीचर फिल्म चयन समिति के सदस्य समारोह से इतर आज संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे।

भारतीय पैनोरमा की चयन प्रक्रिया पर अपना दृष्टिकोण बताते हुए जाने-माने फिल्मकार हिमांशु शेखर खटुआ ने कहा कि इस संवर्ग में फिल्मों का चयन जूरी सदस्यों के लिए काफी कठिन था क्योंकि इसमें देश के विभिन्न हिस्सों की फिल्में शामिल थी। चयन समिति सुनिश्चित करना चाहती थी कि इस संवर्ग में देश के सभी हिस्सों को योग्यतापूर्ण प्रतिनिधित्व मिले। 13 सदस्यीय इस संवर्ग की श्रेष्ठ फिल्में तय करने के लिए बयालीस दिनों तक विचार-विमर्श किया। श्री खटुआ ने कहा कि गोवा अब शूटिंग के लिए पसंदीदा स्थान बन गया है जो दर्शाता है कि  फिल्मकारों को गोवा में फिल्मांकन के लिए सभी आवश्यक सहायता मिल रही है।

 

इस अवसर पर जूरी सदस्य मनोज जोशी ने कहा कि फीचर फिल्म चयन समिति ने देश के सभी क्षेत्रों की प्रतिभा, फिल्मों और रचनात्मकता के साथ न्याय करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि “हम दुनिया के आदिम कथ्यकार हैं और कहानी सुनाना हमारे खून में है। श्री जोशी ने कहा कि भारत दुनिया में सबसे अच्छी फिल्म कथ्य सामग्री प्रस्तुत करने वाला देश हैं”।

 

जूरी सदस्या रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने कहा कि भारतीय-अतंर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में शामिल भारतीय पैनोरमा की फिल्में भारत की बहुविविधता और भारतीय सिनेमा की विविधता  दर्शाती हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह महोत्सव केवल 10 दिनों का होता है लेकिन इसके अंतर्गत कई खंड और संवर्गों में विविधतापूर्ण फिल्में प्रदर्शित होती हैं।

जूरी सदस्य आशु त्रिखा ने कहा कि सिनेमा अपने आप में एक धर्म है और महोत्सव में फिल्मों का चयन बेहद सावधानी और विचार पूर्वक किया गया है। उन्होंने कहा कि विशेष प्रभावों और डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से भारतीय सिनेमा अब नयी ऊंचाइयों को छू रहा है और विश्व मानक के बराबर पहुंच गया है।

जूरी सदस्या प्रिया कृष्णास्वामी ने भारतीय सिनेमा की मौजूदा विषयगत अंतर्धाराओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि नए फिल्मकार कला के नए रूप और नई सिनेमाई भाषा के साथ जो प्रयोग कर रहे हैं उसे देखकर खुशी हो रही है। उन्होंने कहा कि जूरी सदस्यों की कोशिश रही कि फिल्मों का सावधानीपूर्वक चयन किया जाए और फिल्म निर्माण के आगामी रुझानों तथा दुनिया के सामने भारतीय सिनेमा की विविधता को लाया जाए।

जूरी के अन्य सदस्य सुष्मिता मुखर्जी, ओइनम गौतम, एस.एम. पाटिल, नीलाभ कौल, सुशांत मिश्रा, अरुण कुमार बोस और समीर हंचते भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। सम्मेलन का संचालन रजिथ चंद्रन ने किया।

इंडियन पैनोरमा 55वें भारतीय-अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई)  का एक प्रमुख खंड है, जिसमें 25 फीचर फिल्में और 20 गैर-फीचर फिल्में दिखाई जाएंगी। मुख्यधारा सिनेमा की 5 फिल्मों सहित 25 फीचर फिल्मों को 384 समकालीन भारतीय फीचर फिल्मों में से चुना गया है। भारतीय पैनोरमा 2024 में दिखाए जाने के लिए निर्णायक मंडल (जूरी) की पहली पसंद श्री रणदीप हुड्डा द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म  स्वतंत्र वीर सावरकर है।

भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म के जूरी सदस्य:

  1. श्री मनोज जोशी, अभिनेता
  2. सुश्री सुष्मिता मुखर्जी, अभिनेत्री
  3. श्री हिमांशु शेखर खटुआ, फिल्म निर्देशक
  4. श्री ओइनम गौतम सिंह, फिल्म निर्देशक
  5. श्री आशु त्रिखा, फिल्म निर्देशक
  6. श्री एस.एम. पाटिल, फिल्म निर्देशक और कहानीकार
  7. श्री नीलाभ कौल, छायाकार और फिल्म निर्देशक
  8. श्री सुसांत मिश्रा, फिल्म निर्देशक
  9. श्री अरुण कुमार बोस, प्रसाद संस्थान के पूर्व विभागाध्यक्ष और ध्वनि इंजीनियर
  10. सुश्री रत्नोत्तमा सेनगुप्ता, लेखर और संपादक
  11. श्री समीर हंचते, फिल्म निर्देशक
  12. सुश्री प्रिया कृष्णस्वामी, फिल्म निर्देशक

भारतीय पैनोरमा

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के एक खंड के रूप में भारतीय पैनोरमा को सिनेमाई कला द्वारा भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत के संवर्धन के साथ भारतीय फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए 1978 में आरंभ किया गया था। स्थापना के बाद से भारतीय पैनोरमा वर्ष की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्में प्रदर्शित करने के लिए पूर्णतया से समर्पित रहा है। फिल्म कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय पैनोरमा खंड के लिए चयनित फिल्मों को भारत और विदेशों में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में गैर लाभकारी उद्देश्यों, द्विपक्षीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत आयोजित भारतीय फिल्म सप्ताह तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रोटोकॉल से अलग विशेष भारतीय फिल्म समारोहों और भारतीय पैनोरमा समारोहों में प्रदर्शित किया जाएगा।

अधिक जानकारी के लिए: https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2067711

“फिल्म निर्माण प्रक्रिया को रहस्य से मुक्त करना आवश्यक है:” प्रसून जोशी

गोआ। कई बार हमारी कहानी के विचार समय से पहले ही मर जाते हैं, क्योंकि व्यावहारिक और रचनात्मक प्रतिबंधों के कारण हम अपने विचारों में विश्वास खो देते हैं। गोवा में आज इफ्फी 2024 के दौरान ‘मास्टरक्लास द जर्नी फ्रॉम स्क्रिप्ट टू स्क्रीन: राइटिंग फॉर फिल्म एंड बियॉन्ड’ को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध लेखक और गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि इस तरह भारत वह जगह है जहाँ कहानी सामने आने से पहले ही उसकी भ्रूण हत्या हो जाती है।

श्री जोशी ने कहा कि किसी भी कला का निरंतर अभ्यास करने का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि जब अवसर हमारे दरवाजे पर दस्तक देता है, तब हम उसका अभ्यास शुरू नहीं कर सकते।

“सच्चा कंटेंट भाषा से बंधा नहीं होता और इस तरह से हम कह सकते हैं कि सबसे अच्छी कविता मौन में होती है, क्योंकि मौन एक ऐसी शाश्वत ध्वनि है जो हमें जोड़ती है। मौन ही सर्वोत्तम भाषा है।” श्री जोशी ने आगे कहा कि हमें फिल्म बनाने की प्रक्रिया को रहस्यमय नहीं बनाना चाहिए। फिल्मों में रहस्य हो सकता है लेकिन फिल्म निर्माण प्रक्रिया में नहीं।

विचारों से फिल्म तक के सफर पर बात करते हुए श्री जोशी ने अपने बचपन की घटनाओं का जिक्र किया, जो तारे ज़मीन पर फिल्म के उनके गीतों की प्रेरणा बनीं। प्रसून जोशी ने कहा, “जब आप कोई बहुत ही निजी बात कहते हैं तो वह सार्वभौमिक हो जाती है।”

“मेरी माँ कविता में कठिन शब्दों के मेरे प्रयोग पर टिप्पणी करती थीं, जिससे मेरी लेखन शैली में बदलाव आया और में ऐसा लिखने में सक्षम हुआ जो पाठकों को पसंद आए और जिससे सिर्फ मुझे ही संतुष्टि न मिले।”

रचनात्मक क्षेत्र पर एआई के प्रभाव के बारे में बोलते हुए, गीतकार ने कहा कि “मैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हल्के में नहीं लेता। यह रचनात्मक क्षेत्रों में सबसे पहले प्रभाव डाल रहा है, जबकि इसे इन क्षेत्रों में बाद में आना चाहिए था। हमें यह याद रखना होगा कि गणित पर केंद्रित जो कुछ भी है , उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  गणितीय प्रक्रियाओं को तो समझ सकता है, लेकिनअगर किसी की कविता या कहानी किसी सच्चाई से उत्पन्न होती है तो एआई उस अनुभव को नहीं पैदा कर सकता। सीबीएफसी के अध्यक्ष ने कहा कि एआई के हावी होने से रचनाकार प्रभावित हो रहा है, न कि सृजन।

प्रसून जोशी ने यह भी कहा कि हमें कहानी कहने की प्रक्रिया को कुछ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो (सीएमओटी) का उल्लेख किया करते हुए कहा कि अगर हमें भारत की असली कहानियां दिखानी हैं तो फिल्म निर्माण को देश के सबसे दूरदराज हिस्सों तक पहुंचाना होगा ताकि मुफ़स्सिल इलाकों से कहानीकार उभर सकें। श्री जोशी ने कहा कि हम छोटे शहरों और कस्बों की कहानियों को तब तक प्रभावी ढंग से नहीं बता सकते जब तक कि उन जगहों से फ़िल्म निर्माता नहीं निकलेंगे। अगर आप चाहते हैं कि भारत की सच्ची कहानियाँ सामने आएँ, तो आपको फ़िल्म निर्माण को देश के सबसे दूर के कोने में रहने वाले लोगों तक पहुँचाना होगा।

श्री अनंत विजय ने मास्टरक्लास का संचालन किया।

पहली बार एक लद्दाखी फिल्म “घर जैसा कुछ” ने 55वें आईएफएफआई में गैर-फीचर श्रेणी की शुरुआत की

गोआ। 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के गैर-फीचर फिल्म श्रेणी का उद्घाटन लद्दाख की फिल्म घर जैसा कुछ के साथ हुआ। गैर-फीचर फिल्म श्रेणी का उदेश्य वैश्विक मंच पर अनकही कहानियों को सबसे आगे लाना है। फिल्म निर्माता ने आईएफएफआई में कलाकारों और क्रू के साथ पीआईबी द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया के साथ बातचीत की।

घर जैसा कुछ एक लघु फिल्म है जिसका निर्देशन एक स्वतंत्र निर्देशक श्री हर्ष संगानी ने किया है। आईएफएफआई में नॉन-फिक्शन श्रेणी की शुरुआत करने वाली लद्दाख की पहली फिल्म के रूप में सभी का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही है।

फिल्म एक व्यक्ति की विरासत में मिली परंपराओं का पालन करने और उसकी भविष्य की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की इच्छा के बीच सतत संघर्ष की पड़ताल करती है। फिल्म में इस संघर्ष को एक अनोखे तरीके से दर्शाया गया है, जहां नायक के माता-पिता की आत्माएं कथा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कथानक ने लद्दाख से समुदाय की भाषा, परंपराओं और सार को अपने दर्शकों के लिए एक दृश्य और भावनात्मक रूप से आकर्षक तरीके से कैप्चर किया है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को संबोधित करते हुए, निर्देशक हर्ष संगानी ने कहा कि, “मेरे भीतर हमेशा कहानी थी, लेकिन यह अब तक वास्तविकता में नहीं आ पाई। मैं एक बार अस्तित्व में आने वाले घर को खोजने की कोशिश करने के मुख्य चरित्र के संघर्षों के साथ जुड़ा; जैसा कि मैंने भी अपने जीवन में इसी तरह की स्थितियों का अनुभव किया है।

फिल्म मार्मिक रूप से उन सभी के सार्वभौमिक संघर्षों को पकड़ती है, जो अपने गृहनगर की जानकारी को एक अज्ञात शहर की ओर छोड़ देते हैं, जो नई और उज्जवल संभावनाओं की तलाश में हैं, केवल अपने घर के लिए पुरानी यादों से जूझते हैं।

फिल्म के निर्देशक ने कहा की, “हम दर्शकों को एक ऐसी जगह के लिए तड़प महसूस कराना चाहते थे, जो कभी उनके लिए आराम और गर्मजोशी रखती थी, इसीलिए हमें लगा कि घर जैसा कुछ फिल्म के अनुरूप होगा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित फिल्म के फोटोग्राफी निदेशक श्री कबीर नाइक ने कहा कि, “एक छायाकार के रूप में लद्दाख जैसी जगहों पर शूटिंग करना एक सपना था। हालांकि यह काफी जबरदस्त भी हो जाता है क्योंकि पात्रों को इस तरह के सुंदर स्थान पर खड़ा करने के लिए हमेशा अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है।

लद्दाख के साथ-साथ देश के बाकी हिस्सों में भी दर्शकों की उम्मीद करते हुए निर्देशक ने कहा कि, “जैसा कि हमने आईएफएफआई के चयन में प्रवेश करने से पहले फिल्म बनाने का काम पूरा कर लिया था, हमें दर्शकों को फिल्म दिखाने का मौका नहीं मिला; लेकिन मुझे उम्मीद है कि ऐसे दर्शक मिलेंगे जो फिल्म की पहचान करेंगे और उसके साथ जुड़ेंगे।

55वे आईएफएफआई में गैर-फीचर फिल्म श्रेणी में 262 फिल्मों के लिए प्रविष्टियां थीं और 55 फिल्मों के लिए 20 फिल्मों का चयन किया गया था।

आईएफएफआई में गैर-फीचर फिल्म श्रेणी उभरते हुए और साथ ही स्थापित फिल्म निर्माताओं को समर्पित है जो वृत्तचित्रों और लघु फिल्मों के माध्यम से अपने कार्यों का प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं।

फिल्म का समावेश भारत में क्षेत्रीय सिनेमा की बढ़ती विशिष्ठता को उजागर करता है, विशेष रूप से लद्दाख जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों से।

रणदीप हुड्डा ने कहा, “मैंने गुमनाम नायक वीर सावरकर की असली गाथा बताने का बीड़ा उठाया”

इफ्फी 55 में ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के कलाकारों और क्रू ने मीडिया से बातचीत की

स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जीवनी पर आधारित फिल्म बनाने वाली टीम ने 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में मीडिया से बातचीत की । फिल्म को भारतीय पैनोरमा खंड की शुरुआती फीचर के रूप में प्रदर्शित किया गया। इस कार्यक्रम में फिल्म की रचनात्मक यात्रा और इसके ऐतिहासिक महत्व पर विचार करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया।

विनायक दामोदर सावरकर की मुख्य भूमिका निभाने वाले और फिल्म के निर्देशक रणदीप हुड्डा ने फिल्म निर्माण की चुनौतियों की तुलना भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वीर सावरकर द्वारा सामना किए गए संघर्षों से की। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें गुमनाम नायक वीर सावरकर की वास्तविक गाथा को सार्वजनिक चर्चा में लाने का बीड़ा उठाना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा, “सावरकर हमेशा भारत को सैन्य रूप से सशक्त देखना चाहते थे। आज, विश्व में हमारे प्रभाव में काफी सुधार हुआ है। यह फिल्म सशस्त्र संघर्ष के एक और पहलू को उजागर करती है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे इसने क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता के लिए हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया”।

फिल्म में भीकाजी कामा की भूमिका निभा रहीं अभिनेत्री अंजलि हुड्डा ने बताया कि फिल्म में उनकी भूमिका ने सावरकर के निजी जीवन के बारे में उनकी समझ को और बढ़ाया। उन्होंने कहा, “यह फिल्म मेरे लिए आंख खोलने वाली थी। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में हमारे भूले-बिसरे नायकों पर ऐसी और फिल्में बनाई जाएंगी।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में जय पटेल, मृणाल दत्त और अमित सियाल भी शामिल हुए। उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और भारतीय सिनेमा में ऐसी फिल्मों के महत्व पर प्रकाश डाला।

यह फिल्म भारत की स्वतंत्रता के कई अनकहे नायकों में से एक वीर सावरकर की गुमनाम गाथा को सामने लाती है यह मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके द्वारा झेले गए भयानक परिणामों को उजागर करती है।

 

फ़िल्म सारांश: स्वातंत्र्य वीर सावरकर

यह फिल्म क्रांतिकारी विचारक और कवि विनायक दामोदर सावरकर के जीवन को दर्शाती है, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। यह सशस्त्र प्रतिरोध के कट्टर समर्थक के रूप में उनके बदलाव, उनके वैचारिक संघर्षों और सेलुलर जेल में उनके कारावास के वर्षों को दर्शाती है। व्यक्तिगत बलिदानों और रणनीतिक नेतृत्व के माध्यम से, सावरकर एक जटिल व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जिनका एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का सपना आज भी गूंजता रहता है।

कलाकार समूह

निर्देशक: रणदीप हुड्डा

निर्माता : आनंद पंडित, सैम खान, संदीप सिंह, योगेश राहर

पटकथा: रणदीप हुड्डा

कलाकार:

  • रणदीप हुड्डा
  • अंकिता लोखंडे
  • अमित सियाल
  • मृनाल दत्त
  • जय पटेल
  • अंजली हुड्डा

प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं से नए-नए  कीर्तिमान रच रहे हैं और इसी क्रम में  जुड़ गई है उनकी ताजा गुयाना यात्रा। प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2024 में ब्राजील में आयोजित जी -20 शिखर  सम्मलेन में अपना लोहा मनवाने के बाद गुयाना की यात्रा की जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की विगत 56 वर्षो के पश्चात की गई गुयाना यात्रा थी । गुयाना में  प्रधानमंत्री का भव्य  स्वागत किया गया । गुयाना के दौरे में प्रधानमंत्री  ने वहां की संसद को संबोधित किया तथा  साथ ही गुयाना सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया। गुयाना दक्षिण अमेरिका में एक छोटा सा देश है किंतु उसके विकास की सभवनाएं अनंत है  क्योंकि वहां तेल व गैस के बड़े भंडार मिले हैं । प्रधानमंत्री की गुयाना यात्रा के दौरान भारत और गुयाना के मध्य कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। आर्थिक विकास के लिए भारत और गुयाना एक -दूसरे के लिए महत्वपूर्ण साझेदार हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का  गुयाना पहुँचने पर  भव्य स्वागत हुआ। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली तथा प्रधानमंत्री  मार्क एंथोनी फिलिप्स सहित उनकी कैबिनेट के 12 से अधिक मंत्रियों ने स्वयं एयरपोर्ट पहुंच कर उनका स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां  पर बसे प्रवासी भारतीयों  को भी संबोधित किया। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली साथ बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों का रणनीतिक दिशा देने पर चर्चा हुई।

वार्ता  के बाद दोनों देशों में बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं। इनमें  हाईड्रोकार्बन, डिजिटल पेमेंट सिस्टम, फार्मास्युटिकल, कृषि और रक्षा क्षेत्र शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुयाना भारत की ऊर्जा सुरक्षा  में अहम भूमिका निभाएगा और इस क्षेत्र में दीर्घ साझेदारी के लिए ब्लूप्रिंट तैयार किया जायेगा । प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि भारत गुयाना में जनऔषधि वितरण केंद्र भी खेलने जा रहा है। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह नेताओ के बीच चैंपिंयन हैं। उनका प्रभावशाली नेतृत्व और विकासशील देशॉन में योगदान उन्हें विशेष बनाता है। अली ने आगे कहा कि मोदी की शासन शैली कमाल की है। गुयाना व अन्य देशों में इसकी प्रासंगिकता है और इसे अपनाया जाता है।

गुयाना मात्र साढ़े आठ लाख की आबादी वाला देश है जिसकी विकास यात्रा में भारतीय मूल के लोगों का  महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जब भारत अंग्रेजों के आधीन था  था तब अंग्रेज भारत के लोगों को काम करवाने के लिए बंधक बनाकर विदेश ले जाते थे आज का गुयाना ऐसे ही लोगों के परिश्रम से निर्मित हुआ। इस कारण भारत ओैर गुयाना के बीच एक सांस्कृतिक समभाव भी है। इसी आधार पर भारत और गुयाना के बीच सांस्कृतिक सम्बंधों को बढ़ावा देने के लिए तथा दोनो देशों की जनता के मध्य पारस्परिक संपर्क बढ़ाने के लिए  भी एक बड़ा समझौता हुआ है।

गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली के साथ साथ वहां के कई कैबिनेट मंत्री भी भारतीय मूल के ही हैं। राष्ट्रपति इरफान अली के पूर्वज उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से गुयाना जाकर बस गये थे। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “एक वृक्ष मां के नाम“ अभियान के अंतर्गत पौधरोपण भी किया। घनिष्ठ संबंधों  के प्रमाण के रूप में प्रधानमंत्री मोदी को जार्जटाउन शहर की चाबी भी सौंपी गयी है।

ज्ञातव्य है कि गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली ने 2023 में  भारत की यात्रा की थी और तब ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी को गुयाना यात्रा के लिए आमंत्रित  किया था। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली अपने स्पष्ट विचारों के कारण वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण पहचान रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी उपस्थिति ने भारत और गुयाना के बढ़ते संबंधों  को उजागर किया है। इरफ़ान अली का सबसे चर्चित पक्ष यह है कि उन्होंने यूरोपीय प्रभुत्ववादी और वामपंथी एजेंडा के खिलाफ मुखर आवाज उठाई है। इरफान अली का यह रुख न केवल गुयाना  बल्कि अन्य विकासशील देशों के लिए  भी एक प्रेरणा है। उनका यह दृष्टिकोण उन्हें वैश्विक मंच पर एक विशेष स्थान दिलाता है और भारत जैसे देशों के साथ संबंधों को और प्रगाढ़ बनाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुयाना यात्रा के एक अन्य महत्वपूर्ण चरण में 14 छोटे केरैबियाई देशों के समूह कैरीकाम – 2024 को भी संबोधित किया तथा इस समूह में शामिल देशों के प्रमुखों के साथ भारत की द्विपक्षीय वार्ताए भी हुई हैं। यह सभी कैरेबियाई देश भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए इच्छुक हैं।इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी नेताओं के साथ आर्थिक सहयोग, कृषि और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य ओैर दवाओं और विज्ञान नवाचार जैसे क्षेत्रों में संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा की है।

प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना यात्रा कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है जिसमें सबसे बड़ा कारण दोनों देशों की सुरक्षा चिंताएं हैं । विगत दिनों गुयाना में गैस व तेल का बड़ा भंडार मिला है और गुयाना की इस संपदा पर चीन और अमेरिका की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है, वैसे भी चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण छोटे देशों को लालच देकर उन पर अपना नियंत्रण  स्थापित करता ओैर उनकी प्राकृतिक संपदा को लूटता है । वहीं भारत के  प्रधानमंत्री मोदी वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से इन देशों को अपना बनाने का प्रयास करते हैं  यही कारण हैं कि भारत और प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान पूरे विश्व में बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि गुयाना के एयरपोर्ट पर भारत के प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित पूरी कैबिनेट ही आ गयी और इरफान अली बहुत ही भावुक होकर प्रधनमंत्री मोदी से गले मिले। आज उनके स्वागत का वीडिओ चर्चा का विषय बना हुआ  है। भारत की सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा के कारण  ही गुयाना औेर बारबाडोस ने भारतीय प्रधानमन्त्री को अपने -अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जो क्रमश: “द आर्डर ऑफ  एक्सीलेंस“ और “आनरेरी आर्डर ऑफ फ्रीडम ऑफ बारबाडोस“ कहे जाते हैं ।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

संस्कृति, साहित्य और अपने परिवेश से जुड़ाव का अभिनव प्रयोग : बाल साहित्य मेला

समकालीन परिवेश में अपने सांस्कृतिक और साहित्यिक सन्दर्भों से नई पीढ़ी को उनके रचनात्मक रुझान के अनुरूप जोड़ते हुए यदि कोई आयोजन उनके कौशल विकास में प्रेरणात्मक पहल करे तो यह बच्चों के सर्वांगीण विकास में एक दिशाबोधक सृजनात्मक पड़ाव के रूप में उभरता है।
सांस्कृतिक, साहित्यिक और शैक्षिक नगरी में यह सन्दर्भ उजागर हुआ जब सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में आयोजित साहित्यिक सम्मान संगोष्ठी में यह विचार उभर कर आया कि – “इस बार बाल दिवस को एक नवाचार के क्रम में बाल साहित्य मेले के रूप में आयोजित कर बच्चों को साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयाम से जोड़ते हुए उनकी रचनात्मक सहभागिता की जाये।”
 इस विचार के जनक वरिष्ठ पर्यटक लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने जब अपना मंतव्य स्पष्ट किया तो उपस्थित साहित्यकारों, समाज सेवियों और शिक्षकों ने इसे अच्छी पहल बताया और अपेक्षित सहयोग करने की बात कहकर इस विचार के क्रियान्वयन के लिए सुझाव देकर इसे वैचारिक रूप से आरम्भ किया।
विचार की सकारात्मकता और उसकी क्रियान्विति में समर्पण का भाव जब समन्वित हो जाता है तो उसकी यात्रा सहज हो जाती है और कारवाँ बनता चला जाता है। इस वर्ष से आरम्भ यह बाल साहित्य मेला इन्हीं सन्दर्भों में आपसी सहयोग और समर्पण के साथ सम्पन्न होकर आने वाले वर्षों में और अधिक क्रियात्मक स्वरूप में उभारने की प्रेरणात्मक ऊर्जा का संचार कर गया। इसी ऊर्जा का संचार अनुभूत हुआ आयोजन के आरम्भ और समापन के मध्य साकार हुए रचनात्मक परिवेश से…।
अवसर रहा संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम और केसर काव्य मंच द्वारा ‘आश्रय भवन ‘ श्री करनी नगर विकास समिति के तत्वावधान में रविवार 17 नवम्बर 2024 को आयोजित बाल साहित्य मेले का समापन समारोह…। विचार का अभियान बनना और उसका सफलता पूर्वक स्थापित होकर व्यवहारिक और सकारात्मक रूप से उभरना उसकी संचित एवं अर्जित ऊर्जा का
प्रमाण होता है जो अभिभूत कर देता है।
 इन्हीं सन्दर्भों को आत्मसात् करते हुए बाल साहित्य मेले के विचारक- आयोजक और संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम के संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने समारोह का संचालन करते हुए बाल साहित्य मेले के विचार उत्पत्ति, उसकी क्रियान्विति और उसके सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के सन्दर्भ में कहा कि – “साहित्यकारों और शिक्षकों के सहयोग से विगत 26 सितम्बर 2024 से  कोटा एवं बारां जिलों में विद्यालय से कॉलेज स्तर की अठारह शैक्षणिक संस्थाओं में आयोजित कहानी – पाठ,  काव्य – पाठ, निबंध, बाल कवि सम्मेलन , चित्रकला, संस्कृति, साहित्य और पर्यटन सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी इत्यादि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया जिसमें  प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर विजेता रहे पैंसठ बालक – बालिकाओं को आज पुरस्कृत किया जा रहा है। इस आयोजन में पाँच हजार से अधिक बच्चे प्रत्यक्ष रूप से साहित्यिक और रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े हैं।
यही नहीं बाल कविता लेखन प्रोत्साहन प्रतियोगिता में सहभागी रहे साहित्यकारों ने इस रचनात्मक पहल को गति प्रदान कर अनुकरणीय कार्य किया है।” उन्होंने आगे कहा कि – “बच्चों में साहित्य के प्रति रुझान जागृत करने के लिए छोटी सी पहल कर एक कदम चलने का प्रयास किया है। बाल दिवस पर साहित्य के क्षेत्र में सम्पूर्ण राजस्थान में कदाचित् यह पहला ऐसा सामूहिक प्रयास हो जिसे कुछ साहित्यकारों ने मिल कर अपनी सकारात्मक सहभागिता से बच्चों में साहित्य के प्रति आशा और विश्वास का एक दीप प्रज्वलित किया।  बाल साहित्य मेले के इस पावन यज्ञ में इन्होंने अपने मार्गदर्शन और सहयोग की आहुति दी है वहीं केसर काव्य मंच और ‘ आश्रय’ श्री करनी नगर विकास समिति की सहभागिता ने इस पहल को आधार प्रदान किया है।”
उन्होंने अपने उद्बोधन में अभिभूत होते हुए बताया कि – विचार को साकार करने में इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले ग्यारह साहित्यकार और शिक्षकों का सम्मान मेरे लिए उत्साह वर्धक है।”
 पश्चात् इस बाल साहित्य मेले के अन्तर्गत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर विजेता रहे पैंसठ बालक- बालिकाओं में से उपस्थित बच्चों को प्रमाण – पत्र एवं साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया तथा शेष बच्चों के आयोजक प्रतिनिधि शिक्षक एवं अभिभावक को प्रमाण – पत्र प्रदान किये। साथ ही बाल कविता लेखन प्रोत्साहन प्रतियोगिता में पहले चार स्थान पर रहने वाले साहित्यकार योगीराज योगी, अर्चना शर्मा, अल्पना गर्ग एवं सन्जू श्रृंगी को सम्मानित किया गया।
बाल साहित्य मेला आयोजन में पहल कर सक्रिय योगदान और कार्यक्रम आयोजित करवाने वाले  सहयोगी साहित्यकार  डॉ. हिमानी भाटिया, डॉ. अपर्णा पाण्डे, डॉ. इंदु बाला शर्मा, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. प्रीति मीणा, विजय शर्मा, स्नेहलता शर्मा, मंजु कुमारी, महेश पंचोली, विजय जोशी एवं रेखा पंचोली को सम्मानित किया गया।
 इसके पश्चात् मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भईया ‘ ने कहा कि हाड़ोती में किया गया यह प्रथम प्रयास एक अच्छी पहल है। इसकी विशेष उपलब्धि यह रही कि यह ऐसा आयोजन रहा जिसमें न केवल साहित्यकारों, शिक्षकों, बच्चों की भागीदारी रही वरन् अभिभावक भी जुड़े और सभी को उत्साहित भी किया।  विशिष्ट अतिथि राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संभागीय अधीक्षक डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने सभी का स्वागत किया। विशिष्ट अतिथि केसर काव्य मंच की डॉ. प्रीति मीणा ने कहा कि – “बच्चों के विकास में सहायक यह आयोजन बच्चों की प्रतिभा निखारने पथ बना।”
इस अवसर पर पुरस्कृत कक्षा बारहवीं के छात्र कमल मेहता ने माँ पर अपनी स्वरचित कविता –
माँ, ऐसी ही होती है,
जब अकेला रहा तो इसकी याद आई,
अंधेरे में था तो उसकी याद आई,
जब भूख लगी तो उसकी याद माई,
सोचने में कितनी आसान
लगती थी ज़िंदगी
जब खुद से जीना सीखा
तो उसकी याद आई,
ऐसी होती है माँ …
जो हमारा पेट भर कर भी
खुद भूखी सोती है,
माँ…ऐसी होती है …
सुनाकर सभी श्रोताओं को भाव – विभोर कर दिया। इसके पश्चात् विशिष्ट अतिथि विजय जोशी ने आयोजन के प्रेरक पलों को साझा करने के पश्चात् जब अपना चर्चित गीत ” रे बंधु तेरा कहाँ मुकाम, भोर हुई जब सूरज निकला, छूटा तेरा धाम। रे बंधु तेरा…”सुनाया तो श्रोता तालियाँ बजाते हुए झूम उठे।
समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र ‘ निर्मोही ‘ ने कहा कि – “बच्चों को साहित्य से जोड़ने और रुचि उत्पन्न करने के साथ – साथ उनमें  रचनात्मक साहित्य के प्रति रुझान पैदा करने के लिए ऐसे आयोजन निरन्तर होने चाहिए।”
 फोरम के वरिष्ठ सदस्य किशन रत्नानी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि – “विगत लगभग डेढ़ माह से अलग – अलग दिवसों में आयोजित यह बाल साहित्य मेला अपने अभिनव पहल से हाड़ौती सम्भाग में एक प्रकार से विद्यार्थी, शिक्षक ,अभिभावक की त्रिवेणी का चर्चित समारोह रहा। अगले वर्ष इसे और अधिक सहभागिता के साथ सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध करने और बच्चों के कौशल को विकसित करने का प्रयास होगा।”
समारोह में उपस्थित और सम्मानित रंगीतिका संस्था की संयोजक स्नेहलता शर्मा ने अपने उद्बोधन में बच्चों के रचनात्मक उन्नयन हेतु आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों में फोरम को सभी प्रकार से सहयोग देने और सहभागिता करने का आश्वासन देकर अनुकरणीय कार्य किया।इससे पूर्व श्री करनी नगर विकास समिति के संयोजक प्रवीण भंडारी की उपस्थिति में मंचासीन अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया।
 अन्ततः यही कि बच्चों में संस्कृति, साहित्य और अपने परिवेश से जुड़ाव के प्रति रुझान को सम्पोषित करने वाला यह बाल साहित्य मेला अपने अलग स्वरूप में उभर कर रचनात्मक वातावरण को निर्मित करने का हेतु तो बना ही वहीं अपने साथ हर वय के जन को जोड़ने का आधार भी बना।

पेंशनर समाज कोटा के वार्षिक अधिवेशन में 135 पेंशनरों को मिलेगा शिरोमणि सम्मान

कोटा । राजस्थान पेंशनर समाज जिला कोटा के दिनांक 29 दिसंबर को वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया जाएगा। इसमें 80 साल से अधिक उम्र के 135 पेंशनरों को  शिरोमणि सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही अन्य समाजसेवी और और पेंशनर्स हित में काम करने वालों का भी भी सम्मानित किया जाएगा। यह निर्णय बुधवार को जिला अध्यक्ष रमेश गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित जिला कार्यकारिणी की बैठक बैठक में लिया गया। यह भी निर्णय लिया गया कि कार्यक्रम शिव ज्योति कॉन्वेंट स्कूल श्रीनाथपुरम, डी में आयोजित होगा।
उन्होंने बताया कि वार्षिक अधिवेशन के मुख्य अतिथि के रूप में ओम कृष्ण बिरला, लोकसभा अध्यक्ष की स्वीकृति प्राप्त हो गई है। विशिष्ट अतिथियों में मदन दिलावर शिक्षा मंत्री, हीरालाल नागर, ऊर्जा मंत्री एवं कोटा क्षेत्र विधायक होंगे। कार्यक्रम को व्यवस्थित संचालित करने के लिए 15 समितियां का गठन किया गया है।  सम्मान किया जाएगा। अधिवेशन में  करीब 5000 लोगों के आने की संभावना है।  बैठक में आरपी गुप्ता, चंद्र सिंह, नरेंद्र नंदवाना,  विमल जैन,  हंसा त्यागी, गिरीश कांत भटनागर, फरीद कुरैशी,  रामचरण तंवर, आदि ने भी संबोधित किया।

कैट भुवनेश्वर चैप्टर अशोक अग्रवाल संस्थापक अध्यक्ष

भुवनेश्वर। हाल ही में  कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के भुवनेश्वर चैप्टर का गठन किया गया जिसके आधार पर अशोक अग्रवाल संस्थापक अध्यक्ष बने जबकि वीरेंद्र बेताला और किशन बालोदिया बने उपाध्यक्ष बनाए गए।आयोजित कार्यक्रम में आर.के. शुक्ला, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (पूर्व), हीरालाल लोकचंदानी, राष्ट्रीय सलाहकार, गोविंद अग्रवाल,  ओडिशा प्रदेश के चेयरमैन, जितेंद्र कुमार गुप्ता, ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष, सीए अमित दारूका, ओडिशा प्रदेश महासचिव, सीए राजेश अग्रवाल, ओडिशा प्रदेश संयुक्त सचिव, सुशील अग्रवाल, ओडिशा प्रदेश कोषाध्यक्ष आदि ने हिस्सा लिया। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्र सरकार से टेंडरधारकों के लिए टेंडर की प्रक्रियाओं के अनुसार जीएसटी के प्रावधानों को भी निर्धारित करने की मांग की है।

यह मांग उन परिपेक्ष्य में उठी है, जहां टेंडर की राशि मिलने से पहले टेंडरधारकों को एक मोटी रकम जीएसटी के रूप में जमा करनी पड़ती है।
 समारोह को संबोधित करते हुए गोविंद अग्रवाल ने बताया कि सरकारी नियमों के बावजूद कई बार ऐसी परिस्थितियां बनती है कि टेंडर की शर्तों के पूरा होने में पेमेंट के भुगतान में देरी होती है। चूंकी टेंडर की राशि बड़ी होती है, ऐसी स्थिति में जीएसटी की राशि काफी बड़ी होती है। इसके लिए उन्होंने उदाहरण भी पेश किया कि टेंडर की प्रक्रिया प्रतिस्पर्धी होने के कारण 5-10 फीसदी का लाभ बड़ी मुश्किल से होता है। इसमें अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं, लेकिन टेंडर धारक को 18 फीसदी जीएसटी भरनी पड़ती है। यदि तीन महीने के बाद पेमेंट टेंडरधारक को मिलता है, तो जीएसटी 54 फीसदी हो जाती है। ऐसी स्थिति में टेंडरधारकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।गौरतलब है कि धनतेरस के दिन कोरापुट जिले के जयपुर में पूरे व्यापारी समाज को झकझोर देने वाली घटना को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने गंभीरता से लिया है और जीएसटी विभाग से पीड़ित परिवार के लिए 100 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। मीटिंग में इसपर भी चर्चा हुई। ओडिशा प्रदेश के चेयरमैन, जितेंद्र कुमार गुप्ता के अनुसार मीटिंग की कार्यवाही और नये पदाधिकारियों का चयन सर्वसम्मति से हुआ।

भारत के 43 विश्व धरोहर स्मारक

विश्व धरोहर सप्ताह हर साल 19 नवंबर से 25 नवंबर तक पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व विरासत स्थल ऐसे विशेष स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं; और यही समिति इन स्थलों की देखरेख युनेस्को के तत्वाधान में करती है।इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

 

ये मुख्यतः स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा लोगों को सांस्कृतिक विरासत के महत्व और इसके संरक्षण के बारे में जागरुक करने के लिये मनाया जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से ऐतिहासिक भारत के ढांचे, भ्रमण स्थलों से और भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का पूरे भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के लिये आयोजित किये जाते हैं।

 

भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के प्रतीक:-

ऐसे कई भारतीय ऐतिहासिक धरोहर और भ्रमण स्थल हैं जो प्राचीन भारतीय लोगों की संस्कृति और परंपरा के प्रतीक है। भारत की ये विरासत और स्मारक प्राचीन सम्पति हैं इस संस्कृति और परंपरा की विरासत को आने वाली पीढ़ीयों को देने के लिये हमें सुरक्षित और संरक्षित करना चाहिये। भारत में लोग विश्व धरोहर सप्ताह के उत्सव के हिस्से के रूप में इन धरोहरों और स्मारकों के प्रतीकों द्वारा मनाते हैं विश्व धरोहर सप्ताह को मनाने के लिये स्कूलों और कॉलेजों के छात्र बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। स्कूल से छात्र संस्कार केन्द्र और शहर के संग्रहालय के निर्देशित पर्यटन में भाग लेते हैं।

 

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का प्रयोजन:-

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य देश की सांस्कृतिक धरोहरों और स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा के बारे में लोगों को प्रोत्साहित करनाऔरजागरूकता बढ़ाना है। प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा को जानने के लिए ये बहुत आवश्यक है कि अमूल्य विविधसांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा की जाये और उन्हें संरक्षित किया जाये।

 

भारत में 43 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

भारत, एक ऐसा देश है जिसमें कई रंग हैं, इसकी पहचान इसकी विविध संस्कृति, धर्म, कला और वास्तुकला से है। इसके अलावा, भारत के विशाल प्रायद्वीप में वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला है। इन स्मारकों के मूलतः दो श्रेणी हैं।एक सांस्कृतिक धरोहरों की श्रेणी जिसमें इस समय 35 स्मारक पंजीकृत हैं।दूसरा प्राकृतिक स्मारकों की श्रेणी जिसमें सात स्मारक पंजीकृत हैं। एक स्मारक कंचन जंघा राष्ट्रीय उद्यान को सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों श्रेणी में रखा जा सकता है।

 

भारत में सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित सभी सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल शामिल किए जाने के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध हैं:

  1. ताज महल (1983)

यह एक सफ़ेद संगमरमर का स्मारक है जिसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था। ताजमहल की बेमिसाल खूबसूरती ने इसे दुनिया के सात अजूबों में से एक बना दिया है।

यह मकबरा मुगल, फारसी, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का एक अद्भुत मिश्रण है। इसमें ऊंची मीनारें, बड़े मेहराब के आकार के द्वार, सुंदर उद्यान, रत्न जड़ित दीवारें और देखने लायक कई अन्य अद्भुत चीजें हैं।

स्थान : धर्मपुरी, ताजगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:30 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 1,100/ व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 540/व्यक्ति।

 

 

  1. आगरा किला (1983)

आगरा का किला, जिसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है, वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है। मुगल बादशाह अकबर ने 1573 में यमुना नदी के दाहिने किनारे पर इस किले का निर्माण करवाया था। बलुआ पत्थर से बना यह किला 1638 तक शाही निवास स्थान था।

किला परिसर में कई शानदार संरचनात्मक उत्कृष्ट कृतियाँ भी हैं जैसे जहाँगीर महल, खास महल, दीवान-ए-खास, दीवान-ए- आम, शीश महल, नगीना मस्जिद, मोती मस्जिद, आदि।

स्थान: आगरा किला, रकाबगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ प्रति व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/ प्रति व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 90/व्यक्ति।

 

 

  1. अजंता गुफाएँ (1983)

प्राचीन बौद्ध अजंता गुफाएँ भी भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल कुछ पहले स्थानों में से एक है। यह सुंदर नक्काशीदार स्मारकों, मूर्तियों, भित्तिचित्रों और चित्रों द्वारा चिह्नित है। यहाँ 31 गुफाएँ हैं जिनमें कई प्रतिष्ठित चैपल और मठ हैं। आप यहाँ चट्टानों पर बने आश्चर्यजनक डिज़ाइन, मूर्तियाँ और आकृतियाँ भी देख सकते हैं, साथ ही दीवारों पर भगवान बुद्ध के पिछले जन्मों और पुनर्जन्मों को दर्शाने वाली कई पेंटिंग भी हैं।

स्थान : जलगांव, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; सोमवार को बंद रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 10/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

 

 

  1. एलोरा गुफाएँ (1983)

एलोरा की गुफाओं में 600-700 ई. में निर्मित ऐतिहासिक स्मारकों की एक श्रृंखला है। परिसर में 100 से ज़्यादा गुफाएँ हैं, और इनमें से 34 तक पहुँचा जा सकता है।

इन 34 गुफाओं में से 17 हिंदू धर्म, 12 बौद्ध धर्म और शेष 5 जैन धर्म से संबंधित हैं। ये सभी भारत की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाते हैं। आपको इस परिसर के अंदर बड़ी-बड़ी विजय मीनारें, हाथियों की मूर्तियाँ, मंदिर, मूर्तियां, पेंटिंग आदि देखने को मिलेंगी।

स्थान : एलोरा, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय:जून से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; प्रत्येक मंगलवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

 

 

  1. सूर्य मंदिर (1984)

सूर्य मंदिर, जिसे ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, एक शानदार कलिंग वास्तुकला और भारत में एक विश्व धरोहर स्थल है, जो पुरी से 35 किमी दूर स्थित है। इसे भगवान सूर्य के पत्थर से बने रथ के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसे सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। इसमें भगवान सूर्य की तीन मूर्तियाँ हैं, जिन्हें इस तरह से रखा गया है कि सुबह, दोपहर और शाम को सूर्य की किरणें सबसे पहले उन पर पड़ती हैं।

स्थान : कोणार्क, पुरी, ओडिशा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति । तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. महाबलीपुरम में स्मारक (1984)

पल्लव शासकों ने 7वीं-8वीं शताब्दी में कोरोमंडल तट के पास इन स्मारकों का निर्माण करवाया था। यहाँ लगभग 40 छोटे से लेकर बड़े स्मारक हैं, जिनमें मंडप, रॉक रिलीफ़, हिंदू मंदिर और रथ शामिल हैं। कई रॉक-कट स्मारकों में से, गंगा का अवतरण प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह एक खुली हवा में बना स्मारक है जो भारत की समृद्ध स्थापत्य शैली को दर्शाता है।

स्थान : मछुआरा कॉलोनी, महाबलीपुरम, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह के 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. गोवा के चर्च और कॉन्वेंट (1986)

आप इस साइट पर कई स्मारक देख सकते हैं जो भव्य पुर्तगाली मैनरिस्ट और बारोक वास्तुकला शैलियों को प्रदर्शित करते हैं। बेसिलिका डो बॉम जीसस, सेंट फ्रांसिस का चर्च और कॉन्वेंट, इग्रेजा डी साओ फ्रांसिस्को डी असिस, चर्च ऑफ अवर लेडी ऑफ द रोज़री और सेंट ऑगस्टीन का चर्च पुर्तगाली उपनिवेशों की इन भव्य राजसी कृतियों में से कुछ हैं।

स्थान : पुराना गोवा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

परिचालन समय : सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : कोई शुल्क नहीं।

 

 

  1. हम्पी में स्मारकों का समूह (1986)

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शक्ति- शाली विजयनगर साम्राज्य के अवशेष के रूप में 1,600 से अधिक संरचनाएं शामिल हैं। हम्पी में स्थित मंदिर, किले, हॉल, प्रवेश द्वार, संग्रहालय आदि आपको भारत की भव्य स्थापत्य शैली के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगे।

इन प्रभावशाली स्मारकों में विट्ठल मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, हरिहर महल, हजारा राम मंदिर, रानी का स्नानघर, हम्पी बाज़ार, लोटस महल और संग्रहालय शामिल हैं।

स्थान : विजयनगर जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

परिचालन समय : मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुले रहते हैं; तथापि, संग्रहालय सुबह 10 बजे से खुलते हैं।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. फतेहपुर सीकरी (1986)

सम्राट अकबर द्वारा निर्मित फतेहपुर सीकरी सबसे खूबसूरत इंडो-इस्लामिक कृतियों में से एक है और भारत में सबसे प्रमुख यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। सम्राट ने इस वास्तुकला को शेख सलीम चिश्ती, एक सूफी संत को श्रद्धांजलि के रूप में बनाने का आदेश दिया था। फतेहपुर सीकरी की लंबी दीवारों के भीतर, आपको पंच महल, सलीम चिश्ती का मकबरा, जामा मस्जिद, जोधाबाई का महल और बुलंद दरवाज़ा सहित अन्य उल्लेखनीय संरचनाएँ मिलेंगी।

स्थान : आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम ।6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 20/व्यक्ति।

 

 

  1. खजुराहो स्मारक समूह (1986)

खजुराहो स्मारक समूह भारत की समृद्ध नागर शैली की वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियों को प्रदर्शित करता है। इसमें चंदेल वंश के शासनकाल के दौरान निर्मित कई प्राचीन

हिंदू और जैन मंदिर हैं। वर्तमान में, आप 85 मंदिरों में से केवल 20 को ही देख सकते हैं, और बाकी समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं। इन मंदिरों और स्मारकों की पहचान दीवारों पर उकेरी गई कामुक मूर्तियों और मूर्तियों से भी है।

स्थान : छतरपुर, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति और बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति। संग्रहालयों का भ्रमण करने और शो देखने के लिए आपको अतिरिक्त भुगतान करना होगा।

 

 

  1. पत्तदकल में स्मारकों का समूह (1987)

पट्टाडकल में आप नौ खूबसूरती से डिजाइन किए गए हिंदू मंदिर देख सकते हैं, जिनमें मल्लिकार्जुन मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, संगमेश्वर मंदिर, गलगनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, पापनाथ मंदिर आदि शामिल हैं। इस स्थल पर जैन नारायण मंदिर भी है। लगभग 7-8वीं शताब्दी में चालुक्य शासन के दौरान निर्मित, इन स्मारकों में द्रविड़, प्रसाद, विमान, नागर और रेखा शैलियों का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता है।

स्थान : बागलकोट जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. एलीफेंटा गुफाएं (1987)

प्राचीन एलीफेंटा गुफाएँ, जिन्हें घारापुरीची लेनी भी कहा जाता है, में गुफाओं की दो श्रृंखलाएँ हैं। इनमें से पाँच गुफाओं में चट्टानों को काटकर बनाई गई हिंदू मूर्तियाँ और मूर्तियाँ हैं, जबकि दो में 5वीं-8वीं शताब्दी में बनी बौद्ध वास्तुकला की झलक मिलती है। ये संरचनाएँ भारत में धार्मिक सहिष्णुता के गौरवशाली इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं।

स्थान : घारापुरी, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक, प्रत्येक सोमवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. महान जीवित चोल मंदिर (1987, 2004)

यह दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में फैले भगवान शिव को समर्पित तीन मंदिरों का संग्रह है। ये हैं दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर, गंगईकोंडा चोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर और तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर।

चोल शासनकाल के दौरान भारत की शानदार वास्तुकला और कलात्मक उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए इन मंदिरों को 1987 में भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।

स्थान : तीनों मंदिरों के स्थान इस प्रकार हैं: 1.ऐरावतेश्वर मंदिर : दारासुरम, कुंभकोणम, तमिलनाडु ।

2.गंगईकोंडा चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर : जयनकोंडाम, तमिलनाडु ।

और 3.तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर : बालागणपति नगर, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:30 बजे से रात 9:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. कुतुब मीनार और उसके स्मारक (1993)

कुतुब मीनार और इसके स्मारक 13वीं शताब्दी में निर्मित इस्लामी वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण हैं। यह लाल बलुआ पत्थर से बना एक टॉवर है, जिसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है। इस ऊंचे टॉवर के अलावा, पूरे परिसर में अन्य शानदार ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं, जिनमें अलाई-दरवाज़ा, कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई मीनार, लौह स्तंभ, अंत्येष्टि भवन आदि शामिल हैं।

स्थान : महरौली, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. हुमायूं का मकबरा (1993)

मुगल बादशाह हुमायूं की विधवा पत्नी बिगा बेगम ने अपने प्रिय पति की याद में प्रतिष्ठित फ़ारसी शैली का मकबरा बनवाया था। भारत में यह यूनेस्को विरासत स्थल सबसे

अच्छी तरह से संरक्षित मुगल मकबरों में से एक है।

इसके अलावा, मकबरे के परिसर में चार आकर्षक फ़ारसी शैली के बगीचे हैं। परिसर में अन्य शाही वंशजों की कब्रें भी हैं, जिनमें महारानी बीगा बेगम, दारा शिकोह, हमीदा बेगम और अन्य शामिल हैं।

स्थान : मथुरा रोड, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. साँची में बौद्ध स्मारक (1989)

सांची के बौद्ध स्मारक सबसे पुराने पत्थर से बने स्थापत्यों में से एक हैं, जिनका निर्माण 200-100 ईसा पूर्व में हुआ था। वास्तव में, इस स्थल का केंद्र बिंदु, महान सांची स्तूप, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की एक संरचना है। इसमें 36 मीटर व्यास और 16 मीटर की ऊँचाई वाला एक बड़ा गुंबद है।इसके अलावा, आप इस परिसर में कई चट्टान-नक्काशीदार महल, मठ, मंदिर और अखंड स्तंभ देख सकते हैं। अपने उच्च धार्मिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को विरासत स्थलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

स्थान : सांची टाउन, रायसेन, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40 /व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. भारत के पर्वतीय रेलवे (1999, 2005, 2008)

पर्वतीय रेलवे शानदार इंजीनियरिंग समाधान हैं जो भारत के पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्याओं को आसान बनाते हैं। इसके लिए, दार्जिलिंग रेलवे 1999 में भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला पहला पर्वतीय रेलवे बन गया। बाद में, यूनेस्को ने भी क्रमशः 2005 और 2008 में नीलगिरि और कालका-शिमला रेलवे को विरासत पर्वतीय रेलवे की सूची में मान्यता दी।

स्थान : यह दार्जिलिंग, नीलगिरि और कालका-शिमला रेलमार्ग पर उपलब्ध है।

अन्वेषण के लिए आदर्श समय :

परिचालन के घंटे : स्टेशन हर समय खुले रहते हैं।

प्रवेश शुल्क : ट्रेन की सवारी करने के लिए आपको टिकट की बुकिंग कीमत चुकानी होगी और कीमत आपकी यात्रा की दूरी पर निर्भर करती है।

 

 

  1. महाबोधि मंदिर परिसर (2002)

सम्राट अशोक ने बोधगया में इस बौद्ध मंदिर परिसर का निर्माण करवाया था, जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह बौद्धों के लिए पवित्र मंदिरों में से एक है। मंदिर परिसर में 5 हेक्टेयर क्षेत्र में कई धार्मिक संरचनाएँ हैं, जिनमें 50 मीटर ऊँचा वज्रासन, पूजनीय बोधि वृक्ष, कमल का तालाब और कई स्तूप शामिल हैं।

स्थान : बोधगया, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अप्रैल से मई और नवंबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 5:00 बजे से शाम 9:00 बजे तक; सप्ताह के हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. भीमबेटका के शैलाश्रय (2003)

भीमबेटका के शैलाश्रय भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस स्थल पर मेसोलिथिक युग के पाँच प्राकृतिक शैलाश्रय हैं। इन शैलाश्रयों की दीवारों पर, आप एशियाई पाषाण युग की कलाकृतियाँ और नक्काशी देख सकते हैं, जो उस काल के लोगों की जीवनशैली और गतिविधियों का एक मोटा चित्र प्रस्तुत करती हैं।

स्थान : रायसेन जिला, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुलता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 25/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

 

 

  1. चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क (2004)

भारत में स्थित इस यूनेस्को स्थल में पावागढ़ पहाड़ी से लेकर चंपानेर शहर तक फैले लम्बे क्षेत्र में फैले किलों और अन्य वास्तुकला की एक श्रृंखला मौजूद है।किलों के अलावा, इस स्थल पर किले, बावड़ियाँ, महल, मंदिर, मकबरे, मस्जिद, आवासीय परिसर और कृषि क्षेत्र जैसी वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। इसके अलावा, पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित कालिका माता मंदिर देश के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।

स्थान : पंचमहल जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (2004)

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एक ऐतिहासिक और व्यस्त रेलवे स्टेशन है जिसे इसकी बेजोड़ वास्तुकला सुंदरता के लिए भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। यह ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम द्वारा डिजाइन की गई शानदार विक्टोरियन गोथिक वास्तुकला में से एक है। बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से निर्मित इस इमारत का बाहरी हिस्सा आकर्षक है। अंदर भी बेहतरीन इतालवी संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है।

स्थान: फोर्ट, मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : 24×7 खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. लाल किला परिसर दिल्ली (2007)

लाल किला या लाल किला, जिसे बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था, मुगल शाही परिवार के लिए प्रमुख आवासीय स्थान के रूप में कार्य करता था। यह एक राजसी लाल बलुआ पत्थर का किला महल है जो भारतीय, फ़ारसी और तैमूरिद वास्तुकला शैलियों का एक आदर्श मिश्रण प्रदर्शित करता है। आप इस परिसर के भीतर दीवान-ए-ख़ास, दीवान-ए-आम, लाहौरी गेट, दिल्ली गेट आदि जैसी अन्य ऐतिहासिक संरचनाएँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नेताजी सुभाष मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक।

प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. जंतर मंतर जयपुर (2010)

जंतर-मंतर विश्व की सबसे बड़ी खगोलीय वेधशालाओं में से एक है, जिसमें स्मार्ट उपकरण और संरचनाएं हैं। सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित यह वेधशाला इस तरह से बनाई गई है कि आप नंगी आँखों से आकाशीय पिंडों का अवलोकन कर सकते हैं। 19 बड़े खगोलीयउपकरणों के अलावा, इसमें दुनिया की सबसे बड़ी धूपघड़ी भी है। इस वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में स्थान मिला है।

स्थान : गंगोरी बाज़ार, जयपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 4:30 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 50/व्यक्ति।

 

 

  1. राजस्थान के पहाड़ी किले (2013)

2013 में, यूनेस्को ने अरावली पर्वतमाला में छह राजसी पहाड़ी किलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। इनमें आमेर किला, चित्तौड़गढ़ किला, गागरोन किला, रणथंभौर किला, जैसलमेर किला और कुंभलगढ़ किला शामिल हैं। विभिन्न राजपूत शासकों ने अपनी सुरक्षा बढ़ाने और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए 5वीं-18वीं शताब्दी के दौरान इन किलों का निर्माण किया था।

स्थान : इन छह पहाड़ी किलों का स्थान निम्नलिखित है-

1.आमेर किला : देवीसिंहपुरा, आमेर, जयपुर।

2.चित्तौड़गढ़ किला : चित्तौड़गढ़, राजस्थान।

3.गागरोन किला : झालावाड़, राजस्थान।

4.रणथंभौर किला : सवाई माधोपुर, राजस्थान।

5.जैसलमेर किला : गोपा चोक, किला कोठरी पारा रोड, जैसलमेर, राजस्थान।

6.कुम्भलगढ़ किला : राजसमंद जिला, कुम्भलगढ़, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय: अक्टूबर से मार्च।

परिचालन समय: इन छह पहाड़ी किलों के खुलने/बंद होने का समय इस प्रकार है-

आमेर किला : सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक।

चित्तौड़गढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

गागरोन किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

रणथंभौर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

जैसलमेर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक।

कुंभलगढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

प्रवेश शुल्क : इन छह पहाड़ी किलों के लिए प्रवेश शुल्क निम्नलिखित हैं-

आमेर किला : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹500/ व्यक्ति।

चित्तौड़गढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹ 10/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹100/ व्यक्ति।

गागरोन किला : निःशुल्क।

रणथंभौर किला : वयस्कों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति और बच्चों के लिए ₹ 10/व्यक्ति।

जैसलमेर किला : भारतीयों के लिए

₹50/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹250/व्यक्ति।

कुंभलगढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹10/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति।

 

 

  1. रानी-की-वाव (2014)

रानी की बावड़ी या रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर बनी एक मनमोहक भूमिगत वास्तुकला है। यह जल भंडारण प्रणाली के रूप में काम करती थी। यह एक बड़ी संरचना है जिसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई क्रमशः 64 मीटर, 20 मीटर और 27 मीटर है। इस उल्टे मंदिर जैसी बावड़ी की दीवारों पर भगवान विष्णु, अप्सराओं और योगिनियों सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।

स्थान : पाटन, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. नालंदा महाविहार (2016)

नालंदा महाविहार एक विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय था जो चीन, कोरिया, तिब्बत, मध्य एशिया आदि से विद्वानों को आकर्षित करता था। नालंदा महावीर के पुरातात्विक अवशेषों से पता चला है कि इसने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से शुरू होकर 800 से अधिक वर्षों तक शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन किया। वर्तमान में, आप यहां विहारों, स्तूपों, मंदिरों आदि के खंडहर देख सकते हैं जो इस प्राचीन शिक्षा केंद्र की शोभा बढ़ाते थे।

स्थान : नालंदा जिला, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 15/व्यक्ति।

 

 

  1. कैपिटल कॉम्प्लेक्स (ली कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य) चंडीगढ़ (2016)

ले कोर्बुसिए, एक कुशल वास्तुकार, ने दुनिया भर में कई शानदार आधुनिक भवन परिसरों का निर्माण किया है। यूनेस्को ने इन सभी को सामूहिक रूप से विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है।

100 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर बना कैपिटल कॉम्प्लेक्स भारत में ऐसी ही एक ऐतिहासिक वास्तुकला रचना है। इस पूरे कॉम्प्लेक्स में 3 बड़ी इमारतें, एक शहीद स्मारक, एक ओपन-हैंड स्मारक, एक ज्यामितीय पहाड़ी, एक छाया का टॉवर और एक रॉक गार्डन है।

स्थान : सेक्टर 1, चंडीगढ़।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

  1. ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद (2017)

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद, भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने वाला पहला भारतीय शहर है। इसकी सल्तनत वास्तुकला, मस्जिदें, हिंदू/जैन मंदिर, द्वार और दीवारें इसे सांस्कृतिक रूप से संपन्न शहर बनाती हैं। विभिन्न धर्मों की मस्जिदें और मंदिर भी इस शहर में धार्मिक सह-अस्तित्व के इतिहास को दर्शाते हैं।

स्थान : अहमदाबाद, गुजरात

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

 

 

  1. मुंबई के गॉथिक-विक्टोरियन और आर्ट-डेको एनसेंबल्स (2018)

इन इमारतों में कई आर्ट-डेको और नव-गॉथिक शैली में डिज़ाइन की गई सार्वजनिक इमारतें शामिल हैं। ये सभी इमारतें मुंबई के फोर्ट एरिया में ओवल मैदान के आसपास स्थित हैं।

इस मैदान के पूर्वी हिस्से में आपको गोथिक वास्तुकला देखने को मिलेगी, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय, एलफिंस्टन कॉलेज और डेविड सैसून लाइब्रेरी शामिल हैं। दूसरी तरफ आर्ट-डेको वास्तुकला है, जिसमें विभिन्न आवासीय इमारतें शामिल हैं।

स्थान : मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

 

 

  1. जयपुर सिटी (2019)

जयपुर या गुलाबी शहर, अपने सांस्कृतिक महत्व और शाही विरासत के कारण भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल हो गया है। इस शहर का सार मुख्य रूप से इसकी राजसी वास्तुकला से भरा हुआ है जिसमें उल्लेखनीय हवेलियाँ, शाही स्थान और अम्बर किला, सिटी पैलेस, जंतर मंतर आदि जैसे किले शामिल हैं।

स्थान : राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

 

 

  1. धोलावीरा (2021)

धोलावीरा प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का 5वां सबसे बड़ा हड़प्पा शहर है। धोलावीरा का विशाल 22 हेक्टेयर क्षेत्र शहरी बस्तियों के खंडहर ढांचों से घिरा हुआ है।

धोलावीरा में मौजूद अवशेषों, जिनमें सड़कें, कुएं, प्रवेशद्वार आदि शामिल हैं, से आपको यह अंदाजा लग सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग किस तरह अपना जीवन व्यतीत करते थे।

स्थान : खादिरबेट, कच्छ जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : ₹ 5/व्यक्ति

 

 

  1. काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर (2021)

यह एक मनमोहक बलुआ पत्थर का मंदिर है जिसका निर्माण 1273 में काकतीय राजवंश के शासन के दौरान हुआ था। रुद्रेश्वर मंदिर वेसर स्थापत्य शैली में निर्मित एक अनुकरणीय संरचना है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर, आप 6 फीट लंबे आसन पर 9 फीट लंबा शिवलिंग रख सकते हैं।

स्थान : रामप्पा, मुलुगु, तेलंगाना।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

33.शान्ति निकेतन 2023

शान्तिनिकेतन 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में देवेन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित एक आश्रम है। बाद में इसे विश्व-भारती विश्वविद्यालय के लिए विश्वविद्यालय कस्बे के रूप में विकसित किया गया। शांति निकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। शांति निकेतन में ही कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती की स्थापना की थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले 12 वर्षों में इसे विकासित किया है और अब यह यूनेस्को की सूची में है।

 

 

34.होयसल मंदिर समूह कर्नाटक 2023

होसयल के पवित्र मंदिर समूह बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा में स्थित है। इस राजवंश को कला और साहित्य के संरक्षक माना जाता है। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI करता है। भगवान शिव को समर्पित होयसल मंदिर का निर्माण 1150 ईस्वी में होयसल राजा द्वारा काले शिष्ट पत्थर से बनवाया गया था।ये मंदिर न केवल वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं, बल्कि होयसल राजवंश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के भंडार भी हैं। होयसल पेंटिंग को कभी-कभी हाइब्रिड या वेसर भी कहा जाता है क्योंकि उनकी असाधारण शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ और न ही नागा है, बल्कि कहीं भी बीच की दिखती है। होयसल वास्तुकला मध्य भारत में प्रचलित भूमिजा शैली, उत्तरी एवं पश्चिमी भारत की साझी और कल्याणीचालुक्यों द्वारा चुनी गई कर्नाटक द्रविड़ शैली के विशिष्ट मिश्रण के लिए जानी जाती है। इसमें कई मंदिर हैं जो एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में हैं और एक जटिल डिजाइन वाले तार के आकार में बनाए गए हैं। ये सोपस्टोन से बने हैं जो परम प्राकृतिक पत्थर हैं, कलाकारों को कलाकृतियों से तराशने में निपुण थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिरों की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

 

 

35.असम का चराईदेव मोईदाम’ 2024

असम के मोइदम्स को सांस्कृतिक श्रेणी का यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ है। लगभग सात सौ साल पुराने मोइदाम ईंट, पत्थर के खोखले तहखाना हैं और इनमें राजाओं और राजघरानों के अवशेष हैं। चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ई. तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की। उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव था, जहाँ ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी। यह पवित्र स्थल, जिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता है, ऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किये गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे।

 

सदियों से, चराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा है, जहाँ ताई-अहोम राज- घरानों की दिवंगत आत्माएँ परलोक में चली जाती थीं। ताई-अहोम के राजा दिव्य थे, जिसके कारण एक अनूठी अंत्येष्टि परंपरा की स्थापना हुई।राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने के लिए मोईदाम या गुंबददार टीलों का निर्माण की परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया गया और समय के साथ वास्तुकला की तकनीकें विकसित होती रही। शाही दाह संस्कार से जुड़ी रस्में बहुत भव्यता के साथ आयोजित की जाती थीं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती थीं। प्रत्येक गुंबददार कक्ष के बीचों बीच एक उठा हुआ भाग है, जहाँ शव को रखा जाता था। मृतक द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुएं, जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी, हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार, वस्त्र (केवल लुक-खा-खुन कबीले से) को उनके राजा के साथ दफनाया दिया जाता था।

 

मोईदाम में विशेष गुंबददार कक्ष होता है, जो प्रायः दो मंजिला होते हैं, जिन तक मेहराबदार मार्गों से पहुंचा जा सकता है। कक्षों में बीच में उभरे स्थान बने हुए थे, जहाँ मृतकों को उनके शाही चिह्नों, हथियारों और निजी सामानों के साथ दफनाया जाता था। इन टीलों के निर्माण में ईंटों, मिट्टी और वनस्पतियों की परतों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यहां का परिदृश्य सुन्दर पहाड़ियों में बदल गया।

 

भारत में प्राकृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित स्थल भारत के यूनेस्को विरासत स्थलों में उनकी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरणीय महत्व के आधार पर सूचीबद्ध हैं, जिन्हें समावेशन के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध किया गया है:-

 

 

  1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (1985)

ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक समृद्ध प्राकृतिक स्थल है जो 430 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस राष्ट्रीय उद्यान में विविध वनस्पतियाँ, जीव-जंतु, जंगल, नदियाँ, झीलें आदि हैं।यहाँ का एक सींग वाला गैंडा यहाँ का एक विशेष आकर्षण है जो दुनिया भर से पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा, आप यहाँ बाघ, दलदली हिरण, हाथी, भैंस, ऊदबिलाव, गंगा डॉल्फ़िन आदि के साथ-साथ पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नागांव और गोलाघाट जिले, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य के घंटे : 24 घंटे।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 100/व्यक्ति।

 

 

 

 

  1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (1985)

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान एक पक्षी-दर्शन स्थल है जिसने भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में अपना स्थान बनाया है। आप यहाँ 350 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 380 विभिन्न प्रकार के पौधे और विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और स्तनधारी देख सकते हैं। सर्दियों के दौरान, यह क्षेत्र अफ़गानिस्तान, सर्बिया, चीन और अन्य पड़ोसी देशों से प्रवासी पक्षियों का स्वागत करता है।

स्थान : भरतपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अगस्त से फरवरी।

परिचालन समय : गर्मियों में यह सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है, और सर्दियों में यह क्रमशः सुबह 6:30 बजे और शाम 5:00 बजे खुलता और बंद होता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

 

 

  1. मानस वन्यजीव अभयारण्य (1985)

यह हिमालय की तलहटी में स्थित भारत का एक प्रतिष्ठित वन्यजीव अभयारण्य और बायोस्फीयर रिजर्व है। हरे-भरे जंगल के बीच, आप एक सींग वाले गैंडे, भौंकने वाले हिरण, छत वाले कछुए, तेंदुए आदि जैसे जानवर पा सकते हैं। यहाँ पिग्मी हॉग, असम छत वाला कछुआ, गोल्डन लंगूर, हिस्पिड हरे और लाल पांडा जैसे कई स्थानिक जानवर भी हैं।

स्थान : बरंगाबारी ग्याति, बक्सा जिला, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : आधे दिन की यात्रा के लिए, भारतीयों और विदेशियों को क्रमशः ₹ 50/व्यक्ति और ₹ 500/व्यक्ति का भुगतान करना होगा; और पूरे दिन की यात्रा के लिए, टिकट की कीमतें क्रमशः ₹ 200/व्यक्ति और ₹ 2000/व्यक्ति हैं।

 

 

  1. सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (1987)

सुंदरबन में बड़े मैंग्रोव वन और दलदली भूमि शामिल हैं, जहाँ कई जानवर और 170 से ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के प्रमुख आकर्षणों में से एक प्रतिष्ठित रॉयल बंगाल टाइगर है, जो भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसके अलावा, आप यहां खारे पानी के मगरमच्छ, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, गंगा डॉल्फिन, राजा केकड़े और उड़ने वाली लोमड़ियों जैसे जानवर देख सकते हैं।

स्थान : दक्षिण 24 परगना जिला, पश्चिम बंगाल।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

परिचालन के घंटे : इस राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के लिए परिचालन के घंटे निम्नानुसार हैं:

सोमवार से शुक्रवार : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

शनिवार : सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक।

रविवार : बंद रहेगा।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 60/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/ व्यक्ति।

 

 

  1. नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1988, 2005)

630 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने मनमोहक जंगल और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। आप यहाँ रंग-बिरंगी तितलियाँ, पेड़-पौधे और फूल सहित कुछ अनोखे वनस्पति और जीव-जंतु देख सकते हैं।

इसके अलावा, 87 वर्ग किलोमीटर चौड़ी फूलों की घाटी आपको डेज़ी, ऑर्किड आदि जैसे खिलते अल्पाइन फूलों के मनोरम दृश्य दिखा सकती है।

स्थान : चमोली जिला, उत्तराखंड।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मई से अक्टूबर।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : इन पार्कों के लिए प्रवेश शुल्क इस प्रकार हैं:

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 150/व्यक्ति।

फूलों की घाटी : भारतीयों के लिए ₹ 150/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति।

 

 

  1. पश्चिमी घाट (2012)

पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में कई आरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं। लगभग 1,60,000 वर्ग किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में, पश्चिमी घाट एक जैव विविधता हॉटस्पॉट भी है, जिसमें स्तनधारियों, उभयचरों, पक्षियों, कीड़ों, मछलियों, फूल और गैर-फूल वाले पौधों आदि की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसमें वनस्पतियों और जीवों की 320 से अधिक लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी हैं।

स्थान : केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

 

 

  1. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (2014)

लगभग 1171 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के अल्पाइन घास के मैदानों में आपको 30 से ज़्यादा विभिन्न प्रजाति के जानवर, 375 तरह की वनस्पतियाँ और 180 तरह के पक्षी देखने को मिलेंगे।

दुर्लभ जानवरों में कस्तूरी मृग, हिमालयी भूरा भालू, नीली भेड़, हिम तेंदुआ और हिमालयी ताहर आदि कुछ ही हैं।

स्थान : शमशी, हिमाचल प्रदेश,।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मार्च से नवंबर तक।

कार्य समय : सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति; भारतीय और विदेशी छात्र क्रमशः ₹ 30/व्यक्ति और ₹ 100/व्यक्ति की दर से प्रवेश टिकट ले सकते हैं।

 

 

भारत में मिश्रित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का एकमात्र मिश्रित यूनेस्को विरासत स्थल है। इस जगह के बारे में आपको जो कुछ भी जानना चाहिए, वह यहाँ है:

 

 

  1. 43कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (2016)

यह भारत का एक उच्च ऊंचाई वाला राष्ट्रीय उद्यान है, जो हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के ऊबड़-खाबड़ भूभाग में स्थित है। इसके अलावा, कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के निवास स्थान के रूप में लोकप्रिय है। इस पार्क में पाए जाने वाले विभिन्न जानवरों में सुस्त भालू, तेंदुआ, लाल पांडा, कस्तूरी मृग, हिमालयी नीली भेड़, रसेल वाइपर, हरा कबूतर, हिम कबूतर आदि बहुत लोकप्रिय हैं। लगभग 550 पक्षी प्रजातियों के साथ, यह पक्षी-दर्शन के लिए एक स्वर्ग के रूप में भी कार्य करता है।

स्थान : साक्योंग, उत्तरी सिक्किम।

 

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मध्य अक्टूबर; मार्च से मई।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; रविवार को छोड़कर हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 350/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 560/ व्यक्ति; भारतीय छात्र ₹ 80/व्यक्ति पर टिकट बुक कर सकते हैं।

 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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