Tuesday, March 18, 2025
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हमारा प्राचीन ज्ञान, जिस पर अंग्रेज वैज्ञानिकों ने अपना नाम लिख दिया

रॉबर्ट ओपनहायमर और भारतीय दर्शन

गत वर्ष, अर्थात 2023 के 21 जुलाई को, क्रिस्टोफर नोलन का ‘ओपनहायमर’ यह चलचित्र भारतीय सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुआ। जे रॉबर्ट ओपनहायमर को सारा विश्व ‘अणुबम’ के जनक के रूप में जानता है। इसलिए, इस सिनेमा के बारे में लोगों के मन में उत्सुकता थी। भारत में यह सिनेमा चर्चित हुआ, वह अलग ही कारणों से। रॉबर्ट ओपनहायमर की भूमिका करने वाला किलीयन मर्फी, फ्लोरेंस बंग के साथ एक अंतरंग दृश्य में, ‘भगवद् गीता’ की कुछ पंक्तियां बोलते हैं, ऐसा एक दृश्य सिनेमा में दिखाया गया था। इस दृश्य के कारण यह सिनेमा भारत में विवादित हुआ, और विवादित होने के कारण हिट भी हुआ। इस दृश्य को छोड़ दे, तो भी सामान्य व्यक्ति के मन में एक बात पक्की बैठ गई कि रॉबर्ट ओपनहायमर भारतीय दर्शन के प्रशंसक थे, अनुगामी थे, और भगवद् गीता का उन्हें गहरा अभ्यास था।

रॉबर्ट ओपनहायमर का जीवन परिचय

रॉबर्ट ओपनहायमर मूलतः अमेरिकी भौतिक शास्त्रज्ञ थे। धर्म से वे ज्यू थे। उनका जन्म न्यूयॉर्क में हुआ था, लेकिन उन्होंने भौतिक विज्ञान में डॉक्टरेट की डिग्री जर्मनी के गोटिंगन विश्वविद्यालय से की थी, वर्ष 1927 में। इसी समय उनका परिचय भारतीय दर्शन से हुआ। जर्मन विश्वविद्यालयों में उन दिनों में भी संस्कृत का अध्ययन करने वाले और पढ़ाने वाले अनेक थे, जिससे ओपनहायमर को भारतीय दर्शन, तत्वज्ञान और प्राचीन ग्रंथों में रुचि उत्पन्न हुई।

आगे चलकर ओपनहायमर जब अमेरिका में बर्कले के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे, तब उन्होंने आर्थर राइडर, एक संस्कृत प्राध्यापक की मदद से अनेक प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया। उनकी विशेष रुचि भगवद् गीता में थी। उनकी राय थी कि, “भगवद् गीता, विश्व के किसी भी भाषा के सबसे सुरीले दर्शन का गीत है”

उनके अध्ययन टेबल पर भगवद् गीता रखी रहती थी। अपने परिचितों को वह भगवद् गीता का अंग्रेज़ी अनुवाद भेंट के रूप में देते थे। आगे चलकर उन्होंने न्यू मैक्सिको के लॉस अलामोस के निकट, अलामोगार्दो में विश्व के पहले परमाणु बम का परीक्षण किया। लॉस अलामोस के ब्रेडबरी साइंस म्यूजियम में, जो ‘यू एस नेशनल सिक्योरिटी रिसर्च सेंटर’ है, ओपनहायमर की दो व्यक्तिगत वस्तुएं रखी हैं: एक है कुर्सी, जिस पर बैठकर ओपनहायमर ने परमाणु विखंडन पर काम किया था, और दूसरी है भगवद् गीता की वह प्रतिलिपि (कॉपी), जिसके पहले पृष्ठ पर ओपनहायमर ने अपने आद्याक्षर (initials) लिखे थे।

परमाणु परीक्षण और भगवद् गीता

दूसरे विश्व युद्ध के समय अमेरिका को परमाणु बम तैयार करने की जल्दी थी। इसलिए, लॉस अलामोस में 1943 के अप्रैल माह में एक प्रयोगशाला (लैब) प्रारंभ की गई, जिसके प्रमुख के रूप में ओपनहायमर की नियुक्ति हुई थी। इस प्रयोगशाला के पास ही, अलामोगार्दो यह परमाणु परीक्षण का स्थान था। विश्व युद्ध के अंतिम चरण में, रॉबर्ट ओपनहायमर ने 16 जुलाई 1945 को, स्थानीय समय अनुसार, प्रात: 5:29 पर अलामोगार्दो में परमाणु का छोटा सा परीक्षण किया। इस परीक्षण को उन्होंने ‘ट्रिनिटी टेस्ट’ नाम दिया।

यह परीक्षण एक जबरदस्त अनुभव था। लॉस अलामोस और आलामोगार्दो यह पूरा रेगिस्तान का प्रदेश है। इस प्रदेश में परीक्षण के समय अत्यंत प्रखर, अत्यंत तेजस्वी प्रकाश और जबरदस्त ऊर्जा का निर्माण हुआ। यह दृश्य देखते ही रॉबर्ट ओपनहायमर को भगवद् गीता के ग्यारहवे अध्याय का 12वां श्लोक याद आया। अर्थात ओपनहायमर को संपूर्ण गीता कंठस्थ थी, और उनका अर्थ भी जानते थे।

ओपनहायमर को जिस श्लोक का स्मरण आया, वह था:

“दिवी सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता, यदि भाः सद्रृशी सा स्याद्धासस्तस्य महात्मा।”

बालमोहन लिमये ने इस श्लोक का अर्थ देते हुए अर्जुनवाडकर जी के ‘गीतार्थ दर्शन’ की पंक्तियाँ दी हैं:

“हजारों सूरज की रोशनी होगी यदि प्रकट आकाश में एक ही समय। तो वह होगी शायद उस रोशनी जैसी जो है उस परमात्मा की।”

ओपनहायमर का भारतीय दर्शन के प्रति आकर्षण

कौरव पांडव युद्ध में अर्जुन को उपदेश करते समय भगवान श्रीकृष्ण जिस प्रकार अपने प्रखर और तेजस्वी रूप में प्रकट होते हैं, ओपनहायमर को परमाणु परीक्षण के समय बिल्कुल वैसा ही अनुभव हुआ। ओपनहायमर भावनाओं में बहकर, कुछ भी बोलने वाले व्यक्ति नहीं थे। वह विश्व के पदार्थ विज्ञान के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक थे। उन्होंने जो देखा, वही गीता के श्लोक से जुड़ा हुआ था।

आध्यात्मिक दृष्टि से ओपनहायमर का ज्ञान

ओपनहायमर केवल भगवद् गीता ही नहीं, भृतहरि के ‘शतकत्रय’ जैसे ग्रंथों का भी अध्ययन करते थे। भृतहरि ने सौ – सौ श्लोकों के ‘नीति शतक’, ‘श्रृंगार शतक’, और ‘वैराग्य शतक’ लिखे हैं। ये ग्रंथ जीवन से संबंधित तत्वज्ञान का, दर्शन का, सर्वांगीण विचार करने वाले हैं, और ओपनहायमर ने इन्हें संस्कृत में पढ़ा था।

प्राचीन भारतीय ज्ञान का योगदान

आधुनिक पदार्थ विज्ञान के कई सिद्धांतों के बारे में हमें यह समझना चाहिए कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में पहले से ही उल्लेखित थे। उदाहरण के तौर पर, ‘इलास्टिसिटी’ (Elasticity) का आविष्कार सबसे पहले रॉबर्ट हुक ने 1660 में किया था, लेकिन 600-700 साल पहले ‘श्रीधराचार्य’ ने अपनी रचनाओं में इसे स्पष्ट रूप से बताया था। इसी तरह, गुरुत्वाकर्षण और चुंबकत्व के बारे में भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पहले से जानकारी थी, जो बाद में पाश्चात्य वैज्ञानिकों द्वारा उद्धृत की गई।

निष्कर्ष

हमारे जैसे दुर्भाग्यशाली हम ही हैं, जो इन प्राचीन भारतीय सिद्धांतों को सही तरीके से पहचान नहीं पाते। ओपनहायमर जैसे वैज्ञानिकों का भारतीय ज्ञान पर विश्वास इस बात का प्रतीक है कि हमारे पूर्वजों ने वह ज्ञान प्रदान किया था, जो आज भी आधुनिक विज्ञान में प्रासंगिक है।

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