गिरीश जब 12वीं कक्षा में फेल हुआ तो रिश्तेदार उसे रिक्शा चालक कहकर बुलाने लगे। परंतु, गिरीश ने हार नहीं मानी और पढ़ते रहे। कड़ी मेहनत के बाद उन्हें आईटी कंपनी एचसीएल में पहली नौकरी मिली। बाद में वे भारत की बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी ज़ोहो में लीड इंजीनियर बने। आज गिरीश 80,000 करोड़ रुपये की कंपनी संभालते हैं। कंपनी का नाम है फ्रेशवर्क्स (Freshworks)। आपने बेशक इसका नाम न सुना हो, मगर SaaS (Software as a Service) इंडस्ट्री में इस कंपनी का नाम बहुत ऊंचा है। इतना ऊंचा कि यह कंपनी अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डैक में लिस्ट है। 9 फरवरी 2024 तक कंपनी की नेट वर्थ 6।41 बिलियन डॉलर है। गूगल (एल्फाबेट) ने भी फ्रेशवर्क्स में निवेश किया हुआ है।
49 वर्षीय गिरीश का पूरा नाम गिरीश मात्रुबूथम है। ज़ोहो (Zoho) में लीड इंजीनियर बनने के बाद वे 7 साल तक उसी कंपनी में रहे और 2007 में प्रोडक्ट मैनेजमेंट में वाइस प्रेजिडेंट तक पहुंचे। ज़ोहो भी एक बड़ी SaaS कंपनी है। ज़ोहो के विश्व प्रसिद्ध मैनेज्ड इंजिन को खड़ा करने में गिरीश मात्रुबूथम का बड़ा हाथ रहा। सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि उनके जीवन में एक मुसीबत आन पड़ी। उस मुसीबत के बाद उनकी लाइफ पूरी तरह बदल गई।
गिरीश ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें कैसे ये कंपनी बनाने का विचार आया। 2009 में जब वे ऑस्टन टेक्सॉस से काम कर रहे थे। वे अमेरिका से अपना सबकुछ समेटकर चेन्नई (भारत) में शिफ्ट हो रहे थे। गिरीश फ्लाइट पकड़कर चेन्नई पहुंच गए, लेकिन उनका सामान पहुंचने में 70 दिन लग गए। सामान में एक 40 ईंच का एलसीडी टीवी भी था। जब उन्होंने सामान देखा तो वह टीवी टूटा हुआ था। उनके पास टीवी का इंश्योरेंस था, तो उन्हें लगा कि पैसा मिल जाएगा। बीमा क्लेम पाने के लिए गिरीश ने ई-मेल लिखे और हर तरह से कंपनी से संपर्क किया, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
गिरीश मात्रुबूथम गुस्से में थे और बदला लेने की योजना बना रहे थे। उन्होंने अपनी समस्या एक ऐसी ऑनलाइन फोरम पर डाल दी, जहां दूसरे देश में शिफ्ट होने वाले लोग अपने अनुभव शेयर करते हैं। मुद्दा गर्म हुआ तो अगले ही दिन टीवी बनाने वाली कंपनी के प्रेसीडेंट आए और गिरीश से माफी मांगी। माफी के साथ ही गिरीश को क्लेम का पैसा भी दे दिया। यहीं गिरीश को लगा कि उनकी तरह बहुत सारे ग्राहक रोज परेशान होते होंगे। कंपनियों की परेशानी है कि उन तक हर ग्राहक की शिकायत नहीं पहुंचती। यदि कंपनी को सभी ग्राहकों की समस्या एक ही जगह पर मिल जाए तो स्थिति बेहतर हो सकती है। इसी को दिमाग में रखते हुए गिरीश ने एक कंपनी बना दी, जो इसी समस्या का हल करती थी।
इसी दौरान गिरीश ने नोटिस किया कि एक सॉफ्टवेयर कंपनी ज़ेनडेस्क ने अपनी सर्विस का प्राइस 60 से 300 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। गिरीश ने यहीं पर अवसर भांपते हुए ज़ोहो की नौकरी छोड़कर 700 स्क्वेयर फुट एरिया किराये पर लिया। यह एक वेयरहाउस था, जिसमें उनके साथ 6 लोगों की टीम भी शिफ्ट हुई। अक्टूबर 2010 में उन्होंने फ्रेशडेस्क (Freshdesk) की स्थापना की।