किसानों के एक प्रमुख संगठन, भारतीय कृषि समाज ने सोमवार को कहा कि बाजार में बिक रहे कीटनाशकों के लगभग एक-चौथाई कीटनाशकों के नमूने जांच में घटिया किस्म के पाए गए हैं. संगठन का कहना है कि घटिया कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के चलते कृषक समुदाय को सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपये की फसल का नुकसान हो रहा है. संगठन ने दावा किया है कि उसने खुले बाजार से एकत्रित कीटनाशकों के कुल 50 नमूनों की जांच गुरुग्राम में स्थित सरकारी प्रयोगशाला- कीटनाशक सूत्रीकरण प्रौद्योगिकी संस्थान(आईपीएफटी) में करायी है. इनमें से 13 नमूने गुणवत्ता में निम्न कोटि के पाए गए हैं.
भारतीय कृषि समाज के अध्यक्ष कृष्णा बीर चौधरी ने इस जांच रपट को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में जारी किया. इसके अनुसार जैविक कीटनाशकों के नाम पर बेचे जाने वाले कीटनाशकों में से नौ में रासायनिक कीटनाशक की मिलावट पाई गई है. डा चौधरी ने कहा, ‘ किसानों को कीटनाशकों की जो क्वालिटी बतायी जाती है वह है नहीं.. बायो पेस्टिसाइड्स (जैव कीटनाशक) के नाम पर मकड़जाल फैला है और इसके लिए बहुत कुछ जिला स्तर पर काम सेंपल भरने वाले पेस्टिसाइड इंसपेक्टर और राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं के प्रभारी जिम्मेदार है. ’’
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यों में कीटनाशक निरीक्षक और प्रयोगशाला विश्लेषकों की मिली भगत से घटिया कृषि औषधियों का यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है. संगठन ने कहा कि राज्य स्तरीय कीटनाशक जांच प्रयोगशालाओं के लिए राष्टीय जांच एवं मापांकन प्रयोगशाला मान्यता परिषद (एनएबीएल) से मान्यता अनिवार्य की जाए.
चौधरी ने कहा कि नकली (रिपीट नकली) कीटनाशकों का बाजार चार से पांच हजार करोड़ रुपये का है, जबकि नकली कीटनाशकों का उपयोग करने के कारण किसानों को नुकसान 30,000 करोड़ रुपये से भी अधिक का होने का अनुमान है. डा चौधरी ने कहा, ‘‘ भारत कीटनाशकों का बड़ा निर्यातक है और निर्यात माल की गुणवत्ता में कोई शिकायत नहीं दिखती है.
गड़बड़ी घरेलू बाजार में बेचे जा रहे माल की है. ’’ उन्होंने कहा, “परीक्षण में 50 कीटनाशकों में से 23 जैविक कीटनाशक थे. रासायनिक कीटनाशकों के चार नमूने मानक स्तर के अनुरूप नहीं पाया गए जबकि बायो-कीटनाशकों के नौ नमूने परीक्षण में विफल रहे क्योंकि उनमें रसायन शामिल थे. ’’