कश्मीर में चल रही हिंसा के चलते करीब 600 कश्मीरी पंडित परिवार सहित घाटी छोड़कर जम्मू आ गए हैं। ये लोग राज्य और केंद्र सरकार में कर्मचारी थे। श्रीनगर में ट्रांजिट कैंप में रह रहे 24 कर्मचारी और उनका परिवार रविवार को जम्मू पहुंचा। श्रीनगर से आई सुषमा भट्ट जम्मू कश्मीर शिक्षा विभाग में काम करती हैं। उन्होंने बताया कि कैंप में करीब 100 कश्मीरी पंडित परिवार रह रहे थे लेकिन अब वहां कोई नहीं है। गौरतलब है कि हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर में तनाव है और कर्फ्यू लागू है।
राज्य सरकार के अधिकारियों ने पिछले सप्ताह घाटी छोड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या की पुष्टि करने से इनकार कर दिया। लेकिन सूत्रों का कहना है कि 1673 में से करीब 600 कर्मचारी श्रीनगर से आए हैं। इन लोगों को प्रधानमंत्री के कश्मीरी पंडितों के लिए घोषित किए गए पैकेज के तहत नौकरी दी गई थी। सुषमा और उनके पति 1990 में उनके परिजनों के बड़गांव और त्राल छोड़ जाने के बाद पहले बार साल 2010 में घाटी गए थे।
सुषमा ने बताया, ”जब से हम लौटे थे जब भी पाकिस्तान क्रिकेट मैच जीतता या हारता या दिवाली जैसे त्योहारों पर हम पर पत्थर फेंके जाते। इस बार हमने घाटी छोड़ने का फैसला कर लिया। भीड़ ने कई बार हमारे कैंप में घुसने का प्रयास किया। उन्होंने पेट्रोल बम भी फेंका, इसमें मेरा दो साल का बेटा घायल हो गया।” अधिकारियों ने बताया कि कश्मीरी पंडितों का आखिरी बार विस्थापन 1996-97 में दर्ज किया गया था। उस समय आठ साल के बाद विधानसभा चुनाव कराए गए थे। विस्थापन दिवस पर 13 साल पहले मारे गए 24 हिंदुओं के गांव नादीमर्ग गया कश्मीरी पंडितों का दल पहलगाम में अध्यापक संजय पंडित ने बताया कि उन्होंने मट्टन स्थित ट्रांजिट कैंप नौ जुलाई की रात को छोड़ा था। उन्होंने कहा, ”वानी के मारे जाने के बाद पांच मिनट में स्थिति बिगड़ गई। मस्जिदों के लाउड स्पीकर्स से एलान किए गए।” लाउड स्पीकर्स से क्या एलान हुआ, इस सवाल पर संजय ने बताया, ”किसी को सुनने की जरूरत नहीं थी, आप पर फेंका गया पहला पत्थर खुद मैसेज दे देता था।” घाटी से वापस आए कश्मीरी पंडित रिलीफ ऑफिस के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें जम्मू इलाके में ही नौकरी दी जाए।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से