भारतीय जल-प्रलय की कथाएँ शतपथ ब्राह्मण, महाभारत और पुराणों में मिलती हैं। प्राचीनतम कथा 800 ई.पू. में शतपथ ब्राह्मण में प्रस्तुत की गयी। यों इसके घटित होने का समय निश्चय ही इससे बहुत पुरातन है।
प्रातःकालीन आचमन करते मनु के हाथ में जल के साथ एक छोटी-सी मछली आ गयी। मछली बोली – ‘‘देखो! मुझे फेंको नहीं। मेरी रक्षा करो। जो विपत्ति आने वाली है, उससे मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी। जल-प्रलय होने वाली है। उसमें सब प्राणी नष्ट हो जाएँगे, पर मैं तुम्हें बचाऊँगी। तुम मुझे घड़े में डालो। मैं जब आकार में बढ़ जाऊँ, तो सरोवर में डाल देना। मैं फिर आकार में बढ़ जाऊँगी, तब मुझे सागर में डालना। जब प्रलय आ जाए, तब मुझे याद करना। मैं तब आकर तुम्हारी रक्षा करूँगी।’’
सात दिन बाद जलप्लावन हुआ। आकाश से धारासार जल गिरने लगा। पृथ्वी नष्ट हो चली। मनु मछली के कहे अनुसार करते गये। मछली का आकार बढ़ता गया और वह सागर में पहुँच गयी। मछली ने मनु से एक नाव बनाने के लिए कहा था। मनु ने नाव बना ली थी। जब जलप्लावन बढ़ता ही गया, तो मनु ने जीवों के जोड़े इकट्ठे किये और नाव में आ गये। जब जल बढ़ता ही गया, तो मनु ने मछली का स्मरण किया। स्मरण करते ही विशालकाय मछली सहसा तैरती आ पहुँची।
मछली बोली – ‘‘जलयान को एक रस्सी से मेरे सींग से बाँध दो!’’
मनु ने ऐसा ही किया। मछली जलयान को लेकर जल का सन्तरण कर चली। अन्त में वह जलयान को लेकर उत्तरवर्ती पर्वत से जा लगी। वहाँ पहुँचकर मछली बोली – ‘‘जलयान को गिरिशिखर के तरु से बाँध दो। जल के घटने की प्रतीक्षा करो। जल छीज जाने पर सूखी धरती पर यज्ञ का अनुष्ठान करो!’’
जब जल छीज गया, तो मनु ने सूखी धरती पर यज्ञ का अनुष्ठान किया। मनु ने अनुष्ठान क्रिया सम्पन्न करने के लिए किलात और आकुली नाम के असुर ब्राह्मणों को आमन्त्रित किया। उस यज्ञ से श्रद्धा का जन्म हुआ। और तब मनु और श्रद्धा के संयोग से नयी सृष्टि का आविर्भाव हुआ।
भागवत पुराण की कथा 8, 24 के सातवें श्लोक से शुरू होती है और शतपथ ब्राह्मण की कथा को महाभारत की कथा के संयोग से ऋद्ध कर अपना विस्तार प्राप्त करती है।
कहते हैं कि ब्रह्मा निद्रा में मग्न थे, तभी सहसा जल-प्रलय हुई और दैत्य हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया। वेदों की रक्षा के लिए हरि (विष्णु) ने मछली का रूप धारण किया। यह छोटी-सी मछली बाद में बढ़कर लाखों योजन की हो जाती है। हरि (शृंगी मछली) ने अपना भेद जल पर ही रहने वाले तथा जल का ही आहार करने वाले राजा सत्यव्रत को बता दिया। एक निर्मित सन्दूक राजा सत्यव्रत के पास स्वयं ही तिरता हुआ आ गया। राजा ने ब्राह्मणों के साथ उसमें प्रवेश किया। उसमें बैठकर राजा और ब्राह्मण हरि की स्तुति में ऋचाओं का पाठ करते रहे। अन्त में हरि ने हयग्रीव का वध करके वेदों का उद्धार किया। फिर विष्णु ने सत्यव्रत को दैवी और मानवी ज्ञान में दक्ष किया और उसे सातवाँ मनु घोषित किया। तब एक नया मन्वन्तर बना और नयी सृष्टि ने जन्म लिया।
(स्व. डॉ. भगवतशरण उपाध्याय संस्कृत, प्राचीन इतिहास के प्रकांड विद्वान थे, उन्होंने ही दुनिया के पहले विज्ञापन की खोज की थी, ये विज्ञापन म.प्र. के मंंदसौर में एक पत्तर पर लिखा पाया गया था जिस पर मंदसौर में बिकने वाली साडी के बारे में कहा गया था कि ये साड़ी पहनने के बाद महिलाएँ कितनी सुंदर दिखाई देती है। वे मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त भी रहे। )
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