भारत में मैगी 1980 के दशक में आई। नेस्ले इंडिया ने मैगी ब्रांड के अंतर्गत नूडल्स बाजार में लाए। शुरुआत में मैगी केवल नाश्ते का विकल्प थी। वह उन लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद थी जो लोग शहरों में रहते थे। इसी दौर में देश इमरजेंसी से जूझ रहा था, ऐसे में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा अपना प्रॉडक्ट बाजार में उतारना किसी जोखिम से कम नहीं था लेकिन नेस्ले ने ये जोखिम मैगी के लिए उठाया। 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के दौर में बाजारों के दरवाजे पूरी दुनिया के लिए खुल गए इससे मैगी को भी लाभ हुआ।
2 मिनट में तैयार हो जाने वाली मैगी घर के किचन की जरुरत कब बन गई किसी को पता भी नहीं चला। नेस्ले ने बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 1997 में मैगी नूडल्स को बनाने वाले फार्मूले में बदलाव कर दिया लेकिन उपभोक्ताओं ने बदलाव नकार दिया। मैगी की सालाना बिक्री 1000 करोड़ रुपए के पार पहुंच चुकी है। मैगी के अंतर्गत कई और प्रॉडक्ट लांच किया जिनमें, सूप, मैगी कप्पा भुना मसाला, मैनिया इंस्टैंट शामिल हैं।
मैगी के 90 प्रतिशत उत्पाद भारत की संस्कृति को ध्यान में रखकर उत्पादित किए जाते हैं जो बाकी दुनिया में कहीं नहीं मिलते। भारत में नेस्ले के पूरे मुनाफे में मैगी करीब 25 प्रतिशत हिस्सेदार है। अगर इस आंकड़े को सालाना देखे तो ये 1000 करोड़ के पार है।
मैगी का इतिहास स्विटजरलैण्ड की औद्योगिक क्रांति से जुड़ा हुआ है। वहां की महिलाओं का ज्यादातर समय फैक्ट्रियों में काम करते ही बीत जाता था, जिस वजह से उन्हें खाने बनाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इस समस्या से उबरने के लिए स्विस पब्लिक वेलफेयर सोसायटी ने 1872 में जूलियस मैगी से संपर्क किया। उन्होंने जूलियस से ऐसा खाद्य पदार्थ बनाने का कहा जो कम समय में बन सके और और पौष्टिक भी हो। इसे ध्यान में रखकर जूलियस ने पहले प्रोटीनयुक्त लेग्यूम आहार को बाजार मे लाए और फिर आगे इसी कंपनी ने सूप और नूडल्स जैसे खाद्य पदार्थों की शुरुआत की। जूलियस ने 1863 में फार्मूला तैयार किया था जिससे खाने में टेस्ट लाया जा सके।