Sunday, November 24, 2024
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काष्ठ कला से नक्सलियों का ह्रदय परिवर्तन कर दिया इस कलाकार ने

कला कोई भी हो, वह मनोरंजन के साथ ही समाज को नई दिशा भी देती है। कांकेर, छत्तीसगढ़ के काष्ठ शिल्पी अजय मंडावी ऐसे ही कलाकार हैं, जो अपनी कला के जरिए देश के लिए नासूर बनी नक्सलवादी विचारधारा रखने वाले लोगों के विचारों में परिवर्तन ला रहे हैं। जिला जेल के करीब दो सौ ऐसे बंदियों को उन्होंने काष्ठ शिल्प में पारंगत किया है, जो कभी नक्सली थे। कई नक्सली अपनी सजा खत्म होने के बाद उनकी सिखाई कला की बदौलत ही आज समाज में सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं।

अजय ने कई धार्मिक ग्रंथों के साथ ही हरिवंशराय बच्चन की अमर कृति मधुशाला को भी काष्ठ पर जीवंत किया है। कांकेर जिले से सटे ग्राम गोविंदपुर निवासी अजय का पूरा परिवार किसी न किसी कला से जुड़ा है। यूं कहें कि कला उन्हें विरासत में मिली। शिक्षक पिता आरपी मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं जबकि मां सरोज मंडावी की रुचि पेंटिंग में है। भाई विजय मंडावी अच्छे अभिनेता व मंच संचालक हैं।

अजय बताते हैं कि बचपन से ही वे अपने आसपास कला से जुड़ी कोई ना कोई कृति-हलचल देखते रहे हैं। इसी बीच पता नहीं कब उनका रुझान काष्ठ शिल्प की ओर हो गया। आज बाइबिल, भगवद् गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं आदि उनकी कृतियों की हिस्सा बन गई हैं। अजय बताते हैं कि कांकेर के तत्कालीन कलेक्टर निर्मल खाखा ने एक बार उनकी कृति देखी। उन्होंने सलाह दी कि यदि यह कला जेल में बंद नक्सलियों को सिखा दें तो संभवत: उनमें कुछ परिवर्तन आ जाए।

आज दो सौ से अधिक बंदी काष्ठ कला में काफी हद तक पारंगत होकर समाज के सामने, साथियों के बीच व पुलिस विभाग के समक्ष एक मिसाल पेश कर रहे हैं। बंदियों के बीच कैदी गुरुजी के नाम से चर्चित अजय बताते हैं कि हर कला एक तपस्या होती है। काष्ठ कला ने बंदी नक्सलियों के विचारों को पूरी तरह बदल दिया है। तभी तो कभी बंदूकों की भाषा बोलने वाले आज अपनी कला से हुई कमाई से ऐसे अनाथ व गरीब बच्चों की मदद कर रहे हैं, जो नक्सलवाद से प्रभावित हैं।

अजय बताते हैं कि वैसे तो उनके पास कई अमूल्य कृतियां हैं, लेकिन 40 फीट ऊंची व 24 फीट चौड़ी काष्ठ पट्टिका पर उन्होंने बंदियों के साथ मिलकर ‘वंदेमातरम’ की जो कृति तैयार की है, उसे रिकार्ड के लिए भेजा है। यदि यह उपलब्धि मिलती है तो यहां के बंदियों का नाम होगा। अजय बताते हैं कि लकड़ी पर कुरेदकर कृति तैयार करना या फिर लकड़ी से एक-एक अक्षर को आकार देकर उसे काष्ठ पट्टिका पर चस्पा करना उतना आसान नहीं है। अजय की कलाकृति पर राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में स्टेट अवार्ड प्रदान किया है। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों पद्मश्री से सम्मानित किए जा चुके हैं।

कभी खूंखार नक्सली था चैतू अब है ख्याति प्राप्त कलाकार

जिला जेल में बंद खूंखार नक्सली चैतू (परिवर्तित नाम) कभी दंडकारण्य के जंगलों में आतंक का पर्याय था। बेकसूर ग्रामीणों की हत्या करना उसके लिए आम बात थी। 2016 में कोयलीबेड़ा के जंगल से उसे गिरफ्तार किया गया। आज वहीं चैतू अपनी काष्ठ कला के जरिए देशभर में सम्मानित हो चुका है।

साभार- https://naidunia.jagran.com/ से

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