दो टूक : कहते हैं इश्क की एक अलग बोली होती जो दुनिया को सुनाई देती है। लेकिन अगर इश्क बेजुबान ही रह जाये तो उसकी आवाज़ सुनने के लिए हमें निर्देशक जशवंत गंगानी की मुग्धा गोडसे, स्नेहा उल्लाल, निशांत जरीवाला, फरीदा जलाल, सचिन खेडेकर और स्मिता जयकर के अभिनय वाली फिल्म बेजुबान इश्क देखनी होगी।
कहानी : बेजुबान इश्क की कहानी सुहानी, स्वागत और रुमझुम (मुग्धा गोडसे, स्नेहा उल्लाल और निशांत जरीवाला) के प्रेम की है। लेकिन दो बहनों के बीच त्याग और खुद को एक दुसरे के प्रेम पर कुर्बान करने की होड में नायक बने स्वागत की ज़िंदगी में उठापटक शुरू हो जाती है जिसे पारंपरिक मूल्यों, इन्टर्मिटेन्ट एक्स्प्लोजिव डिसॉर्डर और रिश्तों बीच जोड़कर कहानी कहानी का ताना बना बुन दिया गया है.
गीत संगीत : फिल्म में जशवंत गांगाणी और प्रशांत इंगोले के लिखे गीत हैं। संगीत बबली हक और रेपेश वर्मा का है लेकिन वो ऐसे नहीं कि याद रखे जा सकें।
अभिनय : फिल्म में अगर नायक को छोड़ दूँ तो स्नेहा और मुग्धा ही रह गए हैं। बेचारेपन की सीमा होती है तो निशांत को बहुत मेहनत करनी होगी और फरीदा जलाल, सचिन खेडेकर के साथ स्मिता जयकर, दर्शन जरीवाला, मुनि झा, सोन्या मेहतास बस।
निर्देशन : एक धीमी गति की उबाऊ फिल्म के बारे में अब क्या कहूँ। लगा जैसे अब खत्म होगी पर फिर कुछ नया सामने आता है और निर्देशक ने जैसे अंत में सहनायिका को मार दिया उफ्फ्फ।
फिल्म क्यों देखें: बेजुबान ही रहूँ तो बेहतर।
फिल्म क्यों ना देखें: जब बेजुबान ही हो गया तो क्या कहूँ भाई।