दो टूक : जो लोग उम्र को सुख और रिश्तों की सीमा मानते हैं या सोचते हैं कि सिर्फ गम उनके हिस्से हैं तो उनके लिए संजय त्रिपाठी की सतीश शाह, टीनू आनंद, रघुवीर यादव और फारुख शेख के वाली फ़िल्म कल्ब सिक्सटी एक देखने लायक फ़िल्म है जो कहती हैं कि हंसी जो दिखती है कई बार वो हंसी तो है पर उसके अंदर का दर्द किसी को नहीं दीखता क्योंकि उसकी कोई शकल नहीं होती .
कहानी : फ़िल्म की कहानी एक टेनिस कोर्ट में मिलने वाले रघुवीर यादव , सतीश शाह, तीनूं आनंद , शरत सक्सेना , और विनीत कुमार की है जो एक खुशाल जोड़े तारिक और सायरा [ फारुख शेख और सारिक असारिका ] से बहुत प्रभावित हैं .लेकिन वो नहीं जानते कि उनके जीवन में एक बहुत बड़ा खालीपन हैं धीरे-धीरे पता चलता है कि सभी की जिंदगी में गम हैं और वे अपने-अपने गमों को धकेल कर खुश रहने की कोशिश करते हैं।
गीत संगीत : फ़िल्म में प्रणीत गेडाम गेडाम का संगीत है और गीत नजीर अकबरा बादी के हैं लकिन वो ऐसे नहीं कि याद रखे जा सके.
अभिनय : फ़िल्म में फारुख शेख और सारिका फिल्म के आधार हैं तो रघुवीर यादव सभी को जोड़ने की महत्वपूर्ण कड़ी। हालांकि उन्होंने गुजराती मनुभाई की भूमिका को अतिरिक्त लाउड रखा है। शरत सक्सेना, टीनू आनंद, सतीश शाह और विनीत कुमार ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। लेकिन हिमानी शिवपुरी और दुसरे कई छोटे बड़े चरित्र भी फ़िल्म में हैं जिन्हे कुछ और नया विस्तार दिया जा सकता था.
निर्देशन : फ़िल्म बुजुर्गो के जीवन में आने वाली एकरसता और अकेलेपन को संवेदन शीलता से छूती है . संजय त्रिपाठी ने खबरों से बाहर कर दिए गए बुजुर्गो की स्थिति को गहराई से बुना है हाँ उसकी पटकथा में कुछ चूक हो गयी हैं .लेकिन फ़िल्म को छोड़ियेगा नहीं.
फ़िल्म क्यों देखें : बुजुर्गों की एकांतता को दिखाने की कोशिश है.
फ़िल्म क्यों न देखें : मैं ऐसा नहीं कहूंगा .