मुंबई। ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन के 27 वर्ष पूर्ण! 27 वर्ष पहले यानी 12 अगस्त 1992 को ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन का सूत्रपात हुआ था.उस समय भूमंडलीकरण का अजगर प्राकृतिक संसाधनों को लीलने के लिए अपना फन विश्व में फैला चुका था. पूंजीवादियों ने दुनिया को ‘खरीदने और बेचने’ तक सीमित कर दिया. भूमंडलीकरण पूंजीवादी सत्ता का ‘विचार’ को कुंद, खंडित और मिटाने का षड्यंत्र है. तकनीक के रथ पर सवार होकर विज्ञान की मूल संकल्पनाओं के विनाश की साज़िश है. मानव विकास के लिए पृथ्वी और पर्यावरण का विनाश, प्रगतिशीलता को केवल सुविधा और भोग में बदलने का खेल है. फासीवादी ताकतों का बोलबाला है भूमंडलीकरण ! लोकतंत्र, लोकतंत्रीकरण की वैधानिक परम्पराओं का मज़ाक है “भूमंडलीकरण”! ऐसे भयावह दौर में इंसान बने रहना एक चुनौती है… इस चुनौती के सामने खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन.
विगत 27 वर्षों से साम्प्रदायिकता पर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’,बाल मजदूरी पर ‘मेरा बचपन’,घरेलु हिंसा पर ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी आबादी की आवाज़ ‘मैं औरत हूँ’ ,‘लिंग चयन’ के विषय पर ‘लाडली’ ,जैविक और भौगोलिक विविधता पर “बी-७” ,मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनो के निजीकरण के खिलाफ “ड्राप बाय ड्राप :वाटर”,मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के लिए “गर्भ” ,किसानो की आत्महत्या और खेती के विनाश पर ‘किसानो का संघर्ष’ , कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स” , शोषण और दमनकारी पितृसत्ता के खिलाफ़ न्याय, समता और समानता की हुंकार “न्याय के भंवर में भंवरी” , समाज में राजनैतिक चेतना जगाने के लिए ‘राजगति’ नाटक के माध्यम से फासीवादी ताकतों से जूझ रहा है!
विगत 27 वर्षों से सतत बिना किसी सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के अपनी प्रासंगिकता और अपने मूल्य के बल पर यह रंग विचार देश विदेश में अपना दमख़म दिखा रहा है, और देखने वालों को अपने होने का औचित्य बतला रहा है. सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन मुंबई से लेकर मणिपुर तक.
भूमंडलीकरण और फासीवादी ताकतें ‘स्वराज और समता’ के विचार को ध्वस्त कर समाज में विकार पैदा करती हैं जिससे पूरा समाज ‘आत्महीनता’ से ग्रसित होकर हिंसा से लैस हो जाता है. और आज तो विकारवादी पूरे बहुमत से सता पर काबिज़ है. हिंसा मानवता को नष्ट करती है और मनुष्य में ‘इंसानियत’ का भाव जगाती है कला. कला जो मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराए…कला जो मनुष्य को इंसान बनाए!
पूरे विश्व में मनहूसियत छाई है. भूमंडलीकरण की अफ़ीम ने तर्क को खत्म कर मनुष्य को आस्था की गोद में लिटा दिया है. निर्मम और निर्लज्ज पूंजी की सत्ता मानवता को रौंद रही है. विकास पृथ्वी को लील रहा है. विज्ञान तकनीक के बाज़ार में किसी जिस्मफरोश की तरह बिक रही है. भारत में इसके नमूने चरम पर हैं और समझ के बाहर हैं.चमकी बुखार से बच्चों की मौत की सुनामी और चंद्रयान की उड़ान. दस लाख का सूट और वस्त्रहीन समाज. लोकतंत्र की सुन्दरता को बदसूरत करते भीड़तन्त्र और धनतंत्र. न्याय के लिए दर दर भटकता हाशिए का मनुष्य और अपने वजूद के लिए लड़ता सुप्रीमकोर्ट. संविधान की रोटी खाने के लिए नियुक्त नौकरशाह आज अपने कर्मों से राजनेताओं की लात खाने को अभिशप्त. चौथी आर्थिक महासत्ता और बेरोजगारों की भीड़. जब जब मानव का तन्त्र असफ़ल होता है तब तब अंधविश्वास आस्था का चोला ओढ़कर विकराल हो समाज को ढक लेता है. लम्पट भेड़ों के दम पर सत्ताधीश बनते हैं और मीडिया पीआरओ. समाज एक ‘फ्रोजन स्टेट’ में चला जाता है. जिसे तोड़ने के लिए मनुष्य को अपने विकार से मुक्ति के लिए ‘विचार और विवेक’ को जगाना पड़ता है. विचार का पेटंट रखने वाले वामपंथी जड़ता और प्रतिबद्धता के फर्क को नहीं समझ पा रहे. आलोचना के नाम पर सांड की तरह बिदक जाते है गांधी के विवेक की राजनैतिक विरासत मिटटी में मिली हुई है. संवैधानिक और मानवीय मूल्यों को बचने के लिए देश के राजनैतिक को परिदृश्य को बदलने की जरूरत है.
इसी क्रम में सुप्रसिद्ध रंगचिन्तक मंजुल भारद्वाज लिखित और निर्देशित नाटक “राजगति” समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है. “ नाटक ‘राजगति’, : “नाटक राजगति ‘सत्ता, व्यवस्था, राजनैतिक चरित्र और राजनीति’ की गति है. राजनीति को पवित्र नीति मानता है.राजनीति गंदी नहीं है के भ्रम को तोड़कर राजनीति में जन सहभागिता की अपील करता है. ‘मेरा राजनीति से क्या लेना देना’ आम जन की इस अवधारणा को दिशा देता. आम जन लोकतन्त्र का प्रहरी है. प्रहरी है तो आम जन का सीधे सीधे राजनीति से सम्बन्ध है.समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है,जिससे आत्महीनता के भाव को ध्वस्त कर ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ का निर्माण हो।“
ऐसे समय में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकार समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए विवेक की मिटटी में विचार का पौधा लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं .
‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन के 28वें सूत्रपात दिवस पर “विचार,विविधता,विज्ञान,विवेक और संविधान सम्मत” राजनैतिक कौम तैयार करने का संकल्प लेते हुए शिवाजी नाट्य मन्दिर,मुम्बई में 12 अगस्त को होगा नाटक राजगति का मंचन!
नाटक : राजगति का मंचन
कब : 12 अगस्त,2019, सोमवार,सुबह 11 बजे
अवधि :120 मिनट
कहाँ : श्री शिवाजी मंदिर,दादर (पश्चिम), मुंबई
लेखक –निर्देशक : मंजुल भारद्वाज
कलाकार:अश्विनी नांदेडकर, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के ,स्वाति वाघ, सचिन गाडेकर, मनीष घाग,सुरेखा साळुंखे, सिद्धांत साळवी, प्रियांका कांबळे।
Manjul Bhardwaj
Founder – The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
www.mbtor.blogspot.com
Initiator & practitioner of the philosophy ” Theatre of Relevance” since 12
August, 1992.
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