Monday, November 25, 2024
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Homeअध्यात्म गंगाअब तो लौट आओ अपनी जड़ों की ओर....

अब तो लौट आओ अपनी जड़ों की ओर….

मध्य युग में पुरे यूरोप पे राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे आ गया , मध्य पूर्व को अपने कदमो से रोंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनो पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिस बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं , जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे , उस रूस के बॉर्डर सील हैं , जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं , जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं , उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे , वो चीन , आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियां खा रहा है।

एक जरा से परजीवी ने विश्व को घुटनो पर ला दिया ? न एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनरी ? मानव का सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ?? क्या हुआ , निकल गयी हेकड़ी ?? बस इतना ही कमाया था आपने इतने वर्षों में ,की एक छोटे से जीव ने घरो में कैद कर दिया ???

और ये सब देश आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे देश की तरफ , उस भारत की ओर जिसका सदियों अपमान करते रहे , रोंदते रहे , लूटते रहे । एक मामूली से जीव ने आपको आपकी औकात बता दी।

भारत जानता है कि युद्ध अभी शुरू हुआ है जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी , ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी , और आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु , जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तयारी , ये कोरोना तो झांकी है , चेतावनी है , उस आने वाली विपदा की , जिसे आपने जन्म दिया है।मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पे ले आयी ।।।

क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ? तक्षशिला के खंडहरो में , नालंदा की राख में , शारदा पीठ के अवशेषों में , मार्तण्ड के पत्थरो में ।।

सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है , ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है , और सदैव चलता रहेगा , इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हर हथियार खोज भी लिया था , मगर आपके अहंकार, आपके लालच , स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया ।

क्या चाहिए था आपको???? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार ? यूँ ही मांग लेते , राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते ।सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्य हीन ही थे , ले जाते ।मगर आपने ये क्या किया , विश्व बंधुत्व की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया ? जिस बर्बर का मन आया वही भारत चला आया , रोदने ,लूटने , मारने , जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने ।

*कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्षशिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया , तो कोई खुद को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबो को जला गया , किसी ने बर्बरता को जिताने के लिए शारदा पीठ टुकड़े टुकड़े कर दिये , तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया ।और आज करुण निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित , पद दलित , भारत भूमि की ओर , जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है ।*

किन्तु , हम फिर भी निराश नहीं करेंगे , फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घडी में छाँव देगा , श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे ,

किन्तु…

*किन्तु, मार्ग उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा , जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोडा था ।आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा , जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था ।आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा , जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया। उन्ही मंदिरो में जाके घंटा नाद करना होगा , जिनको कभी आपने तोडा था। उन्ही वेदो को पढ़ना होगा ,, जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था।उसी चन्दन तुलसी को मस्तक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मस्तक धड़ से अलग किये गए थे ।*

ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना होगा।

*फिर कहता हूँ , इस दुनिया को अगर जीना है , तो सोमनाथ में सर झुकाने आना ही होगा , तक्षशिला के खंडहरो से माफ़ी मांगनी ही होगी , नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी । मंदिरों के घंटानाद से तीव्र साउंड फ्रिकवेंसी से कई वायरस मर जाते हैं यह आपने स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है । हाथ जोड़कर अभिवादन करना आपने शुरू कर दिया है ।बहुत जल्दी भारत की छांव में पूरी तरह आपको आना पड़ेगा*।

सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया ,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्।

एक निवेदन

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