Tuesday, November 26, 2024
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शिवजी की पार्थिवलिंग पूजा

 

” अप मृत्युहरं कालमृत्योश्चापि विनाशनम।
सध:कलत्र-पुत्रादि-धन-धान्य प्रदं द्विजा:।।”

पार्थिव पूजा से तत्क्षण कलत्र पुत्रादि धन धान्य को प्रदान करती है । और इस लोक में सभी मनोरथ को भी पूर्ण करती है तथा अकाल मृत्यु को टालती है । इस पूजा को स्त्री पुरुष सभी कर सकते है। शिवपुराण के अनुसार पार्थिवलिंग पूजन से धन-धान्य, आरोग्य के साथ ही पुत्र की प्राप्ति होती है। जो दम्पति पुत्र प्राप्ति के लिए कई वर्षों से तड़प रहे हैं, उन्हें पार्थिव लिंग का पूजन अवश्य करना चाहिए। पार्थिव लिंग के पूजन से अकाल मृत्यु का भय भी ख़त्म हो जाता है। शिवजी की आराधना के लिए पार्थिव पूजन सभी लोग कर सकते हैं। शिबलिंग बनाते समय पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठे । स्नानादि शुद्धिकरण करके जब शिबलिंग निर्माण करने बैठे तबसे मनोमन ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहे । पार्थिवलिंग पूजा किसी नदी , तलाव , शिवमंदिर या घरके आँगन मे कर सकते है ।

लकड़ी के चौरंग या पाट के ऊपर शिबलिंग बनायें । पार्थिव शिवलिंग बनाने छानी हुई शुद्ध मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़, मक्खन , शहद ,चन्दन और भस्म मिलाकर शिवलिंग का निर्माण करें। शिवलिंग की ऊँचाई 12 अंगुल से ज़्यादा नही होनी चाहिए ।

षोडशोपचार पूजा का सारी पूजा सामग्री एकत्र करें । आसन शुद्धि ओर देहशुद्धि आचमन करें और शिव पूजा का संकल्प करें । प्रथम गुरु , कुलदेवी , गणपति , भगवान विष्णु , पार्वतीजी का आह्वाहन करे और ध्यान करे । शिबलिंग पर हाथ से स्पर्श करें और शिवजी का आह्वाहन करें । भगवान शिव से विनती करे की वे इस शिवलिंग में अपना वास बनाये जिससे की आपकी विनती उन तक पहुँच सकें |

अब क्रमसे भगवान् का षोडशोपचार पूजन करे । ध्यान , आवाहन , आसन , चरण-हस्त-मुख प्रक्षाल , पंचामृत सहित विविध सुगंधित ओर पवीत्र जलसे अभिषेक , वस्त्र , जनेऊ , टिल्लक , पुष्प , धूप , दीप , प्रसाद , मुखवास , दक्षिणा , आरती , स्तुतिगान ओर क्षमापना । पूजा के बाद ” ॐ ह्रीं नमः शिवाय ” मंत्र की 5 माला जाप करे । आरोग्य केलिए महामृत्युंजय मंत्र भी कर सकते है । शिवगायत्री या रुदृपाठ भी कर सकते है । पूजा जाप पूरा होने के बाद हाथमे जल लेकर पूजा जाप मंत्र फल शिव प्रसंनार्थे शिवार्पण करे । अब भगवान शिवजी ओर आवाहित तमाम देवी देवताओं को ( गुरु गणपति ओर कुलदेवी के सिवाय बाकी सब देव ) यथा स्थान बिदा करे और शिवलिंग ओर सारा पूजा समान नदी या तलावमे विसर्जित कर । प्रति सोमवार या फिर प्रतिमास अमावस्या के दिन पार्थिव लिंग पूजा करे । 21 पूजा का ये व्रत है । व्रत के दिन एक समय भोजन करे और गाय , ब्राह्मण , भिक्षु को भोजन करवाये । पूर्वजन्मों के संचित कर्मो का भी नाश कर श्रेष्ठ फल देनेवाला ये यजन है ।

ऊपर दिए विधान में अगर कुछ समज न आये तो आप आपके सद्गुरु या कुलगोत्र के ब्राह्मण या फिर विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मण देव से विधान समज लीजिये । पार्थिवलिंग निर्माण और पूजा के बाद ऊर्जामय विसर्जन की ये प्रक्रिया अति गोपनीय रहस्य है इसे यहा नही लिख सकते पर शिवपूजा का ये सर्वोत्तम प्रकार है , इस यजन के बाद जीवनमे कभी किसी भी प्रकार का कष्ट – समस्या नही आती । कभी कुछ मांगने की जरूरत ही नही रहती । भगवान शिव स्वयं अपनी प्रसन्नता से अकल्पत फल देते है । यथाशक्ति ओर मति अनुसार श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पदार्थो से पूजा करे । पूर्ण श्रद्धा और भाव ही शिवकृपा के अधिकारी बनाता है ।

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