देश की हैदराबाद नामक मुस्लिम रियासत में हिन्दुओं पर, विशेष रूप से वहां की महिलाओं पर मुस्लिम रजाकारों के वीभत्स अत्याचारों की यह मुंह बोलती कथा है| मुचलंब गाँव, जहां महिलाओं की मर्यादा खुले आम लूटी गई| गर्भस्थ महिला का गर्भ चीर कर गर्भस्थ बालक को निकाल कर चीर डाला गया| ऐसी दिल को दहला देने वाली कथाओं का इतिहास है यह मुचलंब गाँव!
मुचलंब गाँव में एक शरणप्पा पटेल नामक हिन्दू रहता था| यह नौजवान् हिन्दुओं को संगठन का पाठ पढ़ाया करता था| इस कारण मुस्लिम रजाकारों की आँखों में यह नौजवान् सदा ही खटकता रहता था| अत: रजाकारों ने इस वीर नवयुवक को समाप्त करने की योजना बना ली| मुस्लिम और वह भी निरंकुश मुस्लिम राज्य में, उनके लिए किसी हिन्दू को मारना कठिन न था| फिर वह भी रजाकारों द्वारा, जिन्हें कुछ भी करने पर कोई पूछने वाला नहीं था| पुलिस भयंकर से भयंकर दोष करने पर भी इन्हें पकड़ती ही नहीं थी| इस कारण यह लोग बड़े बड़े अपराध यहाँ तक कि किसी जाते हुए हिन्दू व्यक्ति का वध तक भी करके न केवल खुले आम घूमते ही थे अपितु सबको धमकियां भी देते रहते थे, हिन्दुओं पर अत्याचार भी करते रहते थे, इस सब की कोई रोक टोक नहीं थी, जेल की तो बात ही क्या?, मुंह से उन्हें फटकारने वाला भी कोई नहीं था| इन सब कारणों से निर्भय होकर इस नौजवान हिन्दू को समाप्त करने का जो निर्णय उन्होंने लिया था, उस निर्णय को तत्काल कार्यान्वित भी करते हए पटेल का अंत कर दिया गया| उसे मारा भी बड़ी क्रूरता से, जिसे देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं|
इन रजाकारों का जन्म तो हैदराबाद रियासत में संभवतया अत्याचार करने के लिए ही हुआ था| अत: पटेल की ह्त्या के पश्चात् इन राजाकारों ने उनका घर भी लूट लिया तथा घर को लूटने के पश्चात् इस घर को आग भी लगा दी गई| शहीद पटेल की पत्नी जानती थी कि रजाकार उसे भी पकड़ कर उसकी मर्यादा भी लूटेंगे, उसे अपमानित करेंगे, इस कारण वह जीवित ही इस जल रहे घर में लगी आग में समाकर जौहर करना चाहती थी| अत: तत्काल आग में कूद कर इस वीर महिला ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली| परिणाम रजाकार अपनी कलुषित इच्छा की पूर्ति के लिए हाथ ही मलते रह गए| इस प्रकार चितौड के जौहर के समान इस गाँव की इस नारी ने भी अपने ही घर में जौहर कर अपनी जीवन लीला समाप्त करते हुए भारत की स्वाधीनता के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया|
ऐसा ही कुछ हैदराबाद रियासत के गोदी गाँव में भी दोहराया गया| यहाँ पर भी एक महिला गर्भावस्था में अपने भाई के पास आई थी| इस मध्य ही मुस्लिम रजाकारों ने गाँव में भीष्ण दंगा कर दिया| इन रजाकार मुस्लिम लोगों के हाथों हिन्दुओं का निर्दयता पूर्वक वध किया जा रहा था| इस मध्य ही रजाकारों से संघर्ष कर रहे इस बहिन का भाई भूमि पर गिर गया| भूमि पर गिरे उसके इस भाई पर मुसलमान लगातार लाठियां बरसा रहे थे| अपने भाई को बचाने के लिए यह गर्भवती महिला गर्भावास्था में होते हुए भी अपने भाई के ऊपर जा गिरी| रजाकार मुसलमान तो थे ही पिशाच| उनके लिए गर्भवती तथा साधारण महिला में कुछ भी अंतर नहीं था| अत: उन्होंने तत्काल उस गर्भवती हिन्दू महिला को एक तरफ खींचा तथा एक रजाकार ने उसके पेट पर जोर से लात दे मारी| इतना ही नहीं एक अन्य रजाकार मुसलमान ने तलवार से उसका पेट चीर कर उसके गर्भस्थ शिशु को जन्म से पूर्व ही उस महिला के गर्भ से निकाल लिया तथा इस अजन्मे गर्भ को तलवार की नोक पर रख कर अन्य हिन्दुओं को डराने के लिए घुमाने लगा| इस भयानक दृश्य को देखकर देखने वाले सब लोग काँप उठे किन्तु पापी रजाकार को कुछ भी कष्ट नहीं हो रहा था|
रजाकारों द्वारा महिलाओं से बलात्कार की कथाएं वहां पर साधारण चर्चा में ही रहतीं थीं| यह भी दैनिक घटनाओं का एक भाग मात्र ही था कि नारी अपनी लज्जा को बचाने के लिए कुओं, तालाबों तथा नदियों में कूद जाया करतीं थीं| अनेक बार अग्नि में भी कूद कर अपने सतीत्व की रक्षा करतीं थीं| हैदराबाद के इस देहाती क्षेत्र में आज भी इन वीरों व वीरांगणाओं की कथाएं लोक कथाओं के रूप में गा गा कर अपने बच्चों को देश के लिए मरना सिखाया जाता है|
मुचलंब क्षेत्र की देहाती महिलाओं ने रजाकारों तथा निजाम से संघर्ष कर रहे आन्दोलनकारी वीरों की सहायता में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी| जहां स्वाधीनता के लिए आन्दोलन करने वाले वीर शिविर बना कार रहते थे, वहां यह महिलायें इन वीरों के भोजन के लिए प्राय: अनाज पीस कर , भोजन बनाकर उनकी सहायता किया करतीं थीं, साथ ही विभिन्न प्रकार से देश के इन वीरों का उत्साह बढाने का कार्य भी करतीं थीं|
उमरगा गाँव के श्री निवास जी की वृद्ध मां तथा हणमंतरी माँ ऐसी माताएं थीं, जिनकी गोद रजाकारों के कारण सुनी हो गई थी| ऐसी अन्य भी अनेक माताओं की चर्चा मिलती हैं, जिन्होंने हैदराबाद के मुक्ति संग्राम में सहयोग देने के बदले अपने परिवारों को उजाड़ दिया, अपनों को खो कर निराश्रित हो गईं, जिन की गृह्स्थी इस मुक्ति संग्राम में भाग लेने के कारण उजड़ गई किन्तु उनके माथे पर एक शिकन तक नहीं आई, उनका उत्साह कम नहीन हुआ| उन्हें गर्व था कि उन्होंने अपने परिवार को देश, धर्म, जाति की रक्षा के लिए बलिदान किया है| इन महिलाओं में से अधिकाँश महिलाओं का तो आज नाम तक भी उपलब्ध नहीं है, जिन बलिदानी माताओं का नाम मिलता है तो उनके जीवन तथा परिवार की कोई पहचान आज नहीं मिलती| तो भी उनकी गौरव गाथा हम सब के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत है|
हैदराबाद स्वाधीनता आन्दोलन में जिन महिलाओं का विस्तृत वर्णन तो नहीं मिलता किन्तु जो भी कुछ जानकारी उपलब्ध होती है, वह इस प्रकार है:-
शहजनी औराद की हुतात्मा नागव्वाबाई को गोली मार कार बलिदान के मार्ग में डाला गया| किणी तालुका बोकर की वीरांगणा पोसानीबाई की वीरगति का कारण रजाकारों द्वारा लगाईं गई आग से जलने के कारण हुई| बलिदानी लक्ष्मीबाई रजाकारों की गोली के कारण बलिदान हुई| हुतात्मा बालुबाई पनसरे स्मृति मेले के अवसर पर बलिदान हुई| पालोद तालुका सिळ्ळकोड की रुक्मिणीबाई ने सत्याग्रह किया, जिसे गिरफ्तार कर छ: महीने के लिए जेल भेज दिया गया| जेल से छूटने पर इस वीरांगणा ने फिर व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और पुन: इसको आठ महीने सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई| वाई तालुका जिन्दुर की गीताबाई विनायकराव चारढानकर ने भूमिगत होकर स्वाधीनता के लिए कार्य किया|
इनके अतिरिक्त जिन महिलाओं को जेल जाना पडा उनमें उषा पंगरिकर, यशोदाबाई, कु. हेडा, बृजरानी, वनालाबाई मेलकोटे आदि को संचार बंदी तोड़ने के आरोप में जेल जाना पड़ा| यह तो सब जानते हैं कि हैदाराबाद के मुस्लिम निजाम के अत्याचारों के कारण निजाम की जेलें हिन्दुओं से सदा ही खचाखच भरी रहतीं थीं| प्राय: रियासत के सब हिन्दू तथा आर्य समाजी पुरुष साधारणतया निजाम की जेलों में ही रहते थे| ऐसी अवस्था में वहां की महिलाओं ने किस प्रकार परिवार का पालन पौषण तथा भरण किया होगा, किस प्रकार प्रतिदिन हैदराबाद की पुलिस तथा मुस्लिम गुंडों और रजाकारों का सामना करतीं होंगी तथा किस प्रकार अपने पतियों तथा बाप बेटों के बचाव तथा देश के उत्थान के लिए कार्य करती होंगी, इस सम्बन्ध में तो सोचकर ही आज भी हम सब के रोंगटे खड़े हो जाते हैं|
वहां की हिन्दू तथा आर्य समाजी महिलाओं को संगठित कर तथा इस संगठन को सुदृढ़ करने, जनमानस में स्वतंत्रता की ज्योति जगाने तथा उनका नवनिर्माण करने की भावना पैदा करने के लिए अहिल्याबाई महिला संगठन खड़ा किया गया| बासव कल्याण की माता श्रीमती शांता गोगे तथा केशरबाई बाबुराम शिंदे के नाम ऐसी संगठन कर्त्रियों में आते हैं|
डॉ. अशोक आर्य
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