Tuesday, November 26, 2024
spot_img
Homeभारत गौरववीर देवी विद्यावती शारदा

वीर देवी विद्यावती शारदा

भारत के स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए जिन लोगों ने ऋषि दयानंद सरस्वति तथा उनकी संस्था आर्य समाज से प्रेरणा प्राप्त कर यह मार्ग चुना, देवी विद्यावती शारदा जी उनमें से एक थी| आपके माता पिता दृढव्रती आर्य समाजी थे| उन्होंने अपनी बेटी पर भी इस प्रकार का ही रंग चढा दिया| अत: बलिदानी परम्परा आपको धरोहर में मिली|

उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले के गाँव टोपरी निवासी तथा प्रमुख जिमींदार चौधरी न्यामत सिंह जी के यहां आप का जन्म सन् १९०१ ईस्वी में हुआ| माता आनंदी देवी सहित आपके माता-पिता पर ऋषि दयानंद तथा उनकी संस्था आर्य समाज का पूरा प्रभाव था तथा वह उनके कठोर अनुगामियों में से एक थे| आप अपने क्षेत्र में वेद प्रचार के कार्यों का आयोजन सदा ही बढ़ चढ़ कर किया करते थे| आपने अपने क्षेत्र में अनेक पाठशालाएं भी आरम्भ कीं| इस काल में स्त्री शिक्षा का विरोध तथा स्त्रियों की आजादी का अत्यधिक अभाव था किन्तु ऐसे श्रेष्ठ परिवार में पली बढ़ी विद्यावती जी की शिक्षा में भला कमीं कैसे रह सकती थी? अत: शारदा निकेतन ज्वालापुर में उनकी शिक्षा हुई| विद्यार्थी काल में ही शारदा जी स्वजाति तथा देश की समस्याओं से भली प्रकार परीचित थीं| वह इन समस्याओं का निदान करने का निर्णय भी अपने मन में इस काल में ही ले चुकीं थीं| इस सब का ही यह परिणाम था कि उन्होंने राजनीति के मार्ग का अवलंबन किया| आप में जो कर्मठता थी तथा जो धारा प्रवाह बोलने की कला थी, इसके कारण आप जल्दी ही अपने क्षेत्र में एक आधिकारिक स्थान पाने में सफल हुईं|

जब मनुष्य सेवा के क्षेत्र में उतरा है तो उसे साधन भी स्वयं ही मिलते जाते हैं| यदि साधन समान रूप से न मिलें तो जीवन नरक हो जाता है| यही कारण है कि आपको अपना जीवन साथी भी ऐसा व्यक्ति मिला, जो भारत की स्वाधीनता के लिए क्रान्ति पथ का पथिक था| उस समय के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी पंडित गया प्रसाद शुक्ल जी से आपने जाति बंधन से ऊपर उठकर विवाह किया| इस प्रकार आपकी समाज सेवा तथा राजनीतिक गतिविधियां, वैवाहिक जीवन में और भी तेजी से बढीं| ऐसा लगता है कि आपको अपने इस पति के साथ का विधान ईश्वर ने आपके लिए बहुत समय के लिए न लिखा था| यह ही कारण है कि सन् १९३२ ईस्वी को जब आप मात्र ३१ वर्ष की आयु में थीं तो आप के पति पंडित गया प्रसाद जी अंग्रेज सरकार के अत्याचारों का शिकार हो गए तथा इस नश्वर शरीर को यहीं छोड़कर विदा हुए|

महिलाओं के लिए पति की मृत्यु से बड़ा कोई वज्रपात नहीं होता किन्तु विद्यावती जी शारदा ने इस संकट का बड़ी दृढ़ता से सामना करते हुए एक नई दिशा की और अपने कदमों को बढाया| अब उन्होंने देश सेवा के साथ ही साथ नारी शिक्षा के कार्यों को भी अपने हाथों में ले लिया| इस निमित्त शारदा जी ने सन् १९३५ इस्वी में हिमाचल के नगर नाहन में शारादा निकेतन की स्थापना कर उस क्षेत्र की भोली-भाली बच्चियों को शिक्षा देने के साथ ही साथ उनमें कर्तव्य बोध का भी भाव जगाने लगीं| यहाँ पर आपने मात्र एक वर्ष कार्य किया किन्तु आत्मिक संतुष्टि न मिलने से अगले ही वर्ष सन् १९३६ ईस्वी में भारत के सुप्रसिद्ध महिला शिक्षा संस्थान “ कन्या महाविद्यालय, बडौदा” में प्राध्यापिका स्वरूप कार्यभार सम्भाला तथा अब सक्रिय रूप से नारी शिक्षा को आगे बढाने लगीं|

आप अपने पति गयाप्रसाद जी की याद में निरंतर व्याकुल रहतीं थीं| अत: उनकी याद को स्थाई बनाने के लिए ससुराल के नगर में उनके नाम से कुछ करने की अभिलाषा भी अपने अन्दर संजोये ही थीं| इस कारण आप बहुत समय तक बडौदा में भी न टिक सकीं और यहाँ की सेवा से विदाई लेकर अपने ससुराल के नगर बीघापुर जिला उन्नाव में आकर कन्याओं की शिक्षा के विस्तार के लिए कन्या विद्यालयों की स्थापना करने लगीं| इससे बहुत अल्प समय में ही आपको जिला के सामाजिक कार्यकर्ताओं में पमुख स्थान मिल गया| इतना ही नहीं आपकी सामाजिक सेवा को देखते हुए आपको जिले का आनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिया गया किन्तु आप यह पद को बहुत देर तक न संभाल सकीं क्योंकि मात्र तीन वर्ष पश्चात् सन् १९४० इस्वी में आपको मातृशक्ति संस्थान के संचालार्थ कनखल जाना पडा| आप जहाँ भी गईं तथा जहाँ भी अपने अपनी सेवायें दीं. सब स्थानों पर अपनी साधारण गतिविधियों के साथ ही साथ आपने अपने आप को अपने उद्देश्य से कभी भटकने नहीं दिया तथा नारी की स्वतंत्रता के लिए, उसके नवजागरण के प्रयास में सदा लगीं रहीं|

आपके नारी जागृति के प्रयासों तथा देश की स्वाधीनता के लिए आप द्वारा किये जा रहे नारी नवजागरण के कार्यों के कारण आपकी ख्याति सर्वविदित हो चुकी थी| इस कारण कोई भी राष्ट्रीय कार्य आपकी उपस्थिति के बिना अधूरा ही माना जाता था| अत: आपकी सेवाओं को पाने का लोभ कांग्रेस में निरंतर बढ़ता ही जा रहा था, इस कारण सन् १९४२ ईस्वी में भारत की स्वाधीनता के लिए कांग्रेस द्वारा लादे जा रहे महान् आन्दोलन के अवसर पर आपको अलीगढ प्रदेश कांग्रेस के महिला सम्मेलन की अध्यक्षता देकर आपकी तथा सम्मलेन की शोभा बढाई गई|

आप निर्भीक व निडर सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्त्री थीं| देश सेवामें बड़े बड़े संकटो का सामना बड़ी निर्भीकता से करती थीं| इस कारण बड़े बड़े पद आपके पीछे भागते रहे| आपके स्वाधीनता संग्राम में किये गए कार्यों के कारण आपको अनेक बार जेल के दर्शन करने का भी सौभागय मिला| जेल यात्रा को भी आपने तीर्थ यात्रा के समान ही समझा| आपकी एक ही अभिलाषा थी कि आप का पुत्र भी सुपुत्र बने तथा आप ही के मार्ग का अवलंबन करते हुए पैसे के पीछे न भागे| आत: आपने अपने एक मात्र सुपुत्र से भी दीक्षांत समारोह के अवसर पर सार्वजनिक रूप से व्रत लिया कि वह अपनी गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् अपने जीवन में कोई भी कार्य धन प्राप्ति के लिए नहीं करेगा तथा अपना पूरा जीवन देश व धर्म को समर्पित कर देगा|

यहाँ यह भी बता दें कि आपकी सुपुत्री भी अत्यंत विदुषी रही| अभी विगत जुलाई महीने में ही उनका देहांत हुआ है| वह आर्य जगत् के उच्च कोटि के विद्वान् तथा उच्चकोटि के वैदिक सहित्य के प्रकाशक और जनज्ञान मासिक पत्रिका के स्व. संपादक म. भारतेन्द्र नाथ जी से विवाहित थीं| इनकी कन्यायें आज भी आर्य समाज की सेवा में लगीं हैं| इन की बड़ी बेटी श्रीमती ज्योत्सना आर्य के पति आर्य परोपकारिणी सभा अजमेर के सुविख्यात प्रधान स्व. धर्मवीर जी की पत्नी थीं और वर्त्तमान में वह भी परोपकारिणी सभा की पत्रिका तथा पुस्तकालय को संभाल रही है और सभा की सदस्या भी है|

अब शारदा जी के जीवन के अंतिम भाग की और आते हैं| सन् १९४४ ईस्वी में देश की दीवानी विद्यावती शारदा जी ने पंजाब में आर्य समाज की सेवा का निर्णय लिया तथा यहाँ आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के अंतर्गत महोपदेशिका स्वरूप कार्य करने लगीं| आपकी उत्कट अभिलाषा थी कि भारत की स्वाधीनता के दर्शन करके ही यह शरीर छोड़ा जावे किन्तु अपनी इस अभिलाषा को अपने जीवन में पूर्ण न कर सकीं| स्वाधीनता के इस स्वप्न को अपने साथ ही ले कर माता शारदा जी ने ८ अगस्त सन् १९४६ ईस्वी को अपनी आत्मा के वस्त्र उतार कर इन्हें बदलने का निर्णय लिया तथा इस संसार में ही अपने शरीर को छोड़कर मात्र ४६ वर्ष की आयु में ही महायात्रा की और चल दीं|

डॉ.अशोक आर्य
पाकेट १/६१ रामप्रस्थ ग्रीन स.७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ.प्र.भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६ E Mail ashokarya1944@rediffmail.com
Attachments area

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार