बाबा शाहमल तौमर का जन्म दिनांक १७ फरवरी सन् १७९७ ईस्वी को एक साधारण किसान परिवार में हुआ| यह परिवार उत्तर प्रदेश के विश्व प्रसिध्द जिला बागपत के गाँव बिजरौल का निवासी था| जाट क्षत्रिय परिवार होने के कारण यह परिवार स्वाधीनता की प्राप्ति के लिए दीवाना था और क्रान्ति ही इस का साधन था| पिता चौधरी अमीचंद तोमर तथा माता धनवंती देवी मेरठ ही नहीं दिल्ली सहित संलग्न क्षेत्रों में अत्यधिक लोकप्रिय थे| उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र में बाबा शाहमल जी ने उस समय की अंग्रेज सरकार के लिए भारी भय पैदा कर रखा था| इस प्रकार के भयानक क्रांतिकारी विचार के थे बाबा शाहमल जी| इस कारण देश की स्वाधीनता के लिए कार्यशील शाहमल जी लम्बे समय तक अंग्रेज की आँख का काँटा बने रहे तथा कभी भी अंग्रेज को चैन की नींद नहीं सोने दिया|
इस क्षेत्र के लोग अंग्रेज के आने से पहले से ही वहां की बेगम से बेहद दु:खी थे| इस क्षेत्र की शासक अंग्रेज से पूर्व यहाँ पर बेगम संरू का राज्य था| इस बेगम के जो राजस्व मंत्री थे, उसने स्थानीय जनता विशेष रूप से किसानों के साथ सदा ही अन्याय ही नहीं, अत्यधिक अन्याय किया था| सन् १८३६ में यह क्षेत्र अंग्रेज के आधीन हो गया| यहाँ के अंग्रेज अधिकारी प्लॉड ने भूमि का पुन: बंदोबस्त किया और उस अधिकारी ने इस बंदोबस्त के समय किसानों को कुछ राहत भी दी किन्तु मालगुजारी के रूप में जो कर किसान देता था, उसे उसने पहले से बढ़ा दिया| इस क्षेत्र की उर्वरा भूमि तथा पुरुषार्थी किसानों के कारण फसल अच्छी होती थी, इस कारण बढी हुई मालगुजारी में भी उन्हें कुछ कठिनाई अनुभव नहीं हुई और निरंतर कृषि कार्यों में लगे रहे किन्तु बंदोबस्त और बढाई गई मालगुजारी के कारण किसानों में अन्दर ही अन्दर रोष की एक बयार सी बह रही थी| इन्हीं दिनों ही सन् १८५७ के भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम का शंखनाद हो गया और इस शंखनाद में यहाँ के किसानों के अन्दर जलती आग पर घी का काम किया| इस बड़े से गाँव में दो पतियां थीं, जिनमें से एक पर शाहमल का नेतृत्व कार्य कर रहा था|
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के शंखनाद को सुनकर शाहमल जी ने भी अपने क्षेत्र में देश की स्वाधीनता के लिए भीषण नाद निनादित कर दिया| शाहमल की क्रान्ति का आरम्भ जो स्थानीय स्तर पर हुआ था जो कुछ ही दिनों में आसपास के क्षेत्रों में भी फ़ैलने लगा और इनके साथ जाटों के बड़े गाँव बाबली और बडौत भी इनके साथ आ मिले| इस सब का यह परिणाम हुआ कि १० मई को मेरठ में मंगल पांडे ने स्वाधीनता की जो अलख जगाई थी, उसकी लपटें अब इस क्षेत्र में भी आ गईं| स्वाधीनता के दीवाने इस समूह ने जहानपुर के जाटों को भी अपने साथ लिया और बडौत तहसील पर आक्रमण कर दिया| उन्होंने तहसील के खजाने को लूट लिया| इस लूट से उन्होंने किसानों की खेती को जो हानि हुई थी, उसकी भरपाई की| इस प्रकार मात्र दो महीने मई और जून में ही संलग्न क्षेत्रों में उनके नाम की दुन्दुभी बोलने लगी| इस मध्य ही मेरठ से जिन कैदियों को क्रान्तिवीरों ने छुड़ाया था, वह भी इनके साथ आ मिले| इस प्रकार उनके उत्तम नेतृत्व शक्ति को देखते हुए दिल्ली दरबार में उन्हें सुबेदारी का पद दिया गया| राजा शाहमल ने अपने पुरुषार्थ और वीरता से यहाँ से अंग्रेज को खदेड़ दिया, इस कारण इनको इस पद पर उत्तम कार्य करने के कारण राजा की उपाधि से विभूषित किया गया|
यहाँ पर इन दिनों बंजारा व्यापारी अंग्रेज के सहायक के रूप में कार्य कर रहे थे| अत: दिनांक १२ तथा १३ मई को दो दिन तक यह इन व्यापारियों को लूटते रहे तथा फिर बड़ौत के तहसील कार्यालय तथा वहां की पुलिस चौकी पर आक्रमण कर इन्हें भी लूट लिया| आप तलवार चलाने में अत्यधिक निपुण थे तथा तलवार से अपने करतब भी दिखाया करते थे| यह सब क्रान्ति के समय आपके बहुत काम आया| लूट के इस धन से आपने दिल्ली के क्रान्तिकारियों को खुल कर सहयोग दिया| इस समर्पण की भावना के कारण क्रांतिकारी भी आपको अपना सूबेदार मानने लगे|
अब तक शाहमल जी अत्यंत शक्तिशाली के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे| आपने अंग्रेज के विरोध में लड़ी जा रही इस लड़ाई में शक्ति बढाने के लिए सहायता पाने हेतू एक व्यक्ति को अपने दूत स्वरूप दिल्ली भेजा| शाहमल ने बिलोचपुरा के एक व्यक्ति को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा| शाहमल जी को क्रांतिकारियों का भी पूरा साथ मिला, जिनके सहयोग से आपने अपने क्षेत्र को क्रांतिकारियों का सहायक बनकर आपने यमुना के पुल को तोड़ दिया| इस प्रकार अंग्रेज के संचार साधनों को समाप्त करके रख दिया| शाहमल जी की इस सफलता के कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें ८४ गाँवों का आधिपत्य दिया गया| आपने इस क्षेत्र की सब व्यवस्था को सुधार दिया तथा यमुना के इस किनारे के आप राजा बन गए| इस प्रकार दिल्ली की सेना को यहाँ से रसद पानी जाना बंद कर दिया गया तथा इस बचाई गई रसद से क्रांतिकारियों की सहायता होने लगी| ८४ गाँवों का अधिपति होने के कारण आज भी इस क्षेत्र को खाप चौरासी के नाम से ही जाना जाता है| इस प्रकार मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही तथा शाहमल जि एक छोटे किसान से बड़े क्षेत्र के अधिपति बन गए|
इस युद्ध काल में यहाँ के अंग्रेज भक्त फासू ने कुछ अंग्रेज लोगों के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए गाँव हरचंदपुर में अपने यहाँ शरण दे दी| शाहमल जी ने इस की खूब जोरदार पिटाई करने के तुरंत पश्चात् उसके घर को भी लूट लिया, उसे संभवतया मार ही दिया जाता किन्तु गाँव बनाली के एक व्यक्ति ने उसे अत्यधिक धनराशि देकर उसे बचा लिया| इस से अन्य भी बहुत से गाँव भी अंग्रेज के विरोध में झंडा उठाकर खड़े हो गए| इस प्रकार आसपास के अन्य बहुत से गाँव के लोग भी उनके नेतृत्व में आकर क्रान्ति का कार्य आगे बढाने लगे|
जब कुछ बेदखल जमींदार आपसे अलग होकर अंग्रेज के साथ चले गए तो आपने आक्रमण करके बासौद गाँव पर कब्जा कर लिया| अंग्रेज के आक्रमण से पूर्व ही आप यहाँ से निकल गए और अंग्रेज हाथ मलते ही रह गये| अंग्रेज ने यहां रह गए शाहमल के बचे हुए सैनिकों को मार डाला तथा भारी मात्रा में अनाज पर कब्जा कर लिया किन्तु अंग्रेज के लुटे गए इस अनाज को कोई भी खरीददार नहीं मिल सका| इस बीच राजा शाहमल जी ने यमुना नहर पार सिंचाई विभाग के बंगले को न केवल अपना मुख्यालय ही बना लिया अपितु अपनी गुप्तचर सेना भी यहीं तैयार कर ली| अंग्रेज शाहमल जी से अत्यधिक भयभीत और तंग थे| वह जानते थे कि जब तक शाहमल को नहीं कुचला जाता, तब तक मुग़ल सत्ता को नष्ट कर पाना असंभव है किन्तु शाहमल जी किसी भी प्रकार उनके काबू में नहीं आ रहे थे| परिणाम स्वरूप शाहमल जी को ज़िंदा अथवा मुर्दा पकड़ने वाले के लिए १०००० रुपये के पुरस्कार की घोषणा कर दी गई| अंग्रेज इतिहासकार तो यहाँ तक लिखते हैं कि दिल्ली के घेरे के समय दिल्ली तथा वहां की जनता इसी शाहमल के कारण ही बच पाई|
अब वह समय आ गया था जब अंग्रेज के लिए शाहमल को दबाना आवश्यक हो गया था| यह जुलाई सन् १८५७ का समय था, जब अंग्रेज ने शाहमल को दबाने तथा पकड़ने के लिए कमर कस ली| शाहमल पर अंग्रेज ने आक्रमण किया किन्तु क्षेत्र के जाट और जिमींदारों ने अपनी सेना की सहायता से डटकर प्रतिरोध किया| इस मध्य ही शाहमल जी के भतीजे भगत जी के आक्रमण से उस अंग्रेज सेना के संचालक डनलप बड़ी कठिनाई से बच पाए और युद्ध क्षेत्र से भाग खड़े हुए| शाहमल जी के सैनिक गोरिल्ला युद्ध कला का अच्छा अनुभव रखते थे| बडौत के एक बाग़ में इनका एक बार फिर अंग्रेज सेना से युद्ध हुआ| इस में जब डनलप इस युद्ध में भी भागता जी से बचकर भागने में सफल हुआ किन्तु इस मध्य शाहमल अंग्रेजी सेना के घेरे में आ गए| इस मध्य शाहमल जी ने जिस प्रकार अपनी तलवार चलाई, उसे देख कर तो अंग्रेज दंग थे| अकस्मात् तलवार हाथ से छूट गई, अब उन्होंने अपने भाले से काम लिया| इस मध्य ही शाहमल जी की पगड़ी ने भी धोखा दिया, पगड़ी खुलकर शाहमल जी के घोड़े के पैरों से उलझ गई| इस अवसर का लाभ उठाते हुए एक अंग्रेज सैनिक ने उन्हें घोड़े से गिरा दिया| पास ही खड़े एक अन्य अंग्रेज ने उन्हें पहचान लिया और उनके शरीर के टुकडे टुकडे करवा दिए|
यह घटना १८ जुलाई की थी, शरीर के टुकड़े होने के पश्चात् भी राजा शाहमल जी अभी जीवित थे, अत: २१ जुलाई को शाहमल जी का सर काट कर भाले पर टंगवा दिया गया और इसे केवल भाले पर लटकाया ही नहीं गया बल्कि इसे लेकर पूरे के पूरे चौरासी गाँवों में घुमाया भी गया| ताकि इससे क्षेत्र के लोगों में भय पैदा किया जा सके| भय से भरे इस प्रदर्शन को देखकर भी शाहमल जी की सेना के चौरासी गावों की सेना ने फिर भी पराजय स्वीकार नहीं की तथा अपने राजा के सर को पाने के लिए अंग्रेजों के इस प्रदर्शन के कार्यक्रम पर अनेक स्थानों पर हमले भी किये गए|
शाहमल जी के बलिदान ने बलिदानी वीरों में एक नया जोश भर दिया| अत: दिनांक २३ अगस्त १८५७ ईस्वी को शाहमल जी के पौत्र लिज्जामल जी ने बडौत के क्षेत्र में एक बार फिर से इस युद्ध का आरम्भ कर दिया| इसे दबाने के लिए अंग्रेज सेना ने एक बार फिर से लौटकर इनका मुकाबला किया और इस युद्ध में इन क्रांतिकारी वीरों को फिर से दबाया गया| लिज्जामल जी को बंदी बना लिया गया| लिज्जामल सहित उनके बत्तीस साथियों को फांसी दे दी गई|
शाहमल जी की याद को स्थाई बनाने के लिए गाँव बिजरौल में उनका एक छोटा सा स्मारक बनाया गया| आज भी आवश्यकता है कि देश पर बुरी नजर जमाए बैठे कुचक्र चलाने वालों को कुचलने के लिए देश को अनेक शाहमल मिलें और इन की कुचालों को नष्ट करें|
डा. अशोक आर्य
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