सिटिज़न जर्नलिज़्म शब्द जिसे हम नागरिक पत्रकारिता भी कहते है आज आम आदमी की आवाज़ बन गया है। यह समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए, संबंधित विषय को कंटेंट के माध्यम से तकनीक का सहारा लेते हुए अपने लक्षित समूह तक पहुंचाने का एक ज़ज्बा है। वर्तमान में नागरिक पत्रकारिता कोई नया शब्द नहीं रह गया है बल्कि आज इस विधा से न जाने कितने ही लोग अपनी सशक्त भूमिका को निभाते हुए दिखाई देते है। आज नागरिक पत्रकारिता के माध्यम से किये गये प्रयासों से अनेकों सकारात्मक परिवर्तन अपने आस-पास होते हुए दिखाई भी देते है। जैसे-जैसे नागरिक पत्रकारिता का व्याप ब़ढ़ रहा है वैसे-वैसे इसके तौर-तरीकों में भी बदलाव दिखाई देने लगा है। आज शब्दों के साथ-साथ वर्चुअल मीडिया, न्यू मीडिया, क्रॉस मीडिया का महत्व भी बढ़ गया है। इसलिये नागरिक पत्रकारिता के लिये अब कलम के साथ-साथ मॉउस की ताकत, न्यू मीडिया की तकनीक व पहुँच को समझना भी आवश्यक हो गया है।
हम नागरिक पत्रकार क्यों बने ? इस एक प्रश्न के सही चिंतन व विश्लेषण से ही सार्थक नागरिक पत्रकार बनने की दिशा तय होती है। तभी नागरिक पत्रकार किसी मीडिया संस्थान से न जुड़े होने के बावजूद भी निष्पक्ष भाव से समाचार सामग्री का सृजन कर पायेगा। नागरिक पत्रकारिता के कारण ही कौन से समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित होंगे, ये निर्णय अब केवल कुछ मुठ्ठी भर लोगों का नहीं रह गया है। नागरिक पत्रकारिता की भूमिका व नये मीडिया तक उसकी पहुँच ने अब सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। कभी-कभी तो यहां तक देखने में आता है कि किसी खबर को सर्वप्रथम नागरिक पत्रकारिता के द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से सामने लाया गया और बाद में मुख्यधारा के मीडिया में वो खबर प्रमुखता से छा गई। नागरिक पत्रकारिता एक ओर जहाँ समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निवर्हन है वहीं दूसरी ओर मीडिया में समाज की सहभागिता बढ़ाने हेतु एक तरीका व अवसर भी है।
सही मायने में नागरिक पत्रकारिता आम आदमी की अभिव्यक्ति है। आम आदमी से जुड़ी ऐसी अनेकों कहानियाँ है जो परिर्वतन की वाहक बनती है। व्यवस्था का ध्यान आकर्षित करना हो या व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करना हो, नागरिक पत्रकारिता धीरे-धीरे एक प्रभावी ज़रिया बनकर उभर रही है। नागरिक पत्रकारिता जहाँ पर एक अवसर व अपनी भूमिका को निभाने का एक सशक्त माध्यम दिखाई देता है, वहीं इसमें अनके प्रकार की चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो इस शब्द की स्वीकृति को लेकर ही कुछ वर्गो में दिखाई देती है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति किसी सूचना व जानकारी को प्रचारित व प्रसारित करता है तो क्या उसे पत्रकार मान लिया जाए ?
नागरिक पत्रकारिता की सही से समझ व अवधारणा को लेकर भी कभी-कभी विरोधाभास दिखाई देता है। समाज में इसका स्पष्ट व एक जैसे स्वरूप का निर्धारण भी अभी दिखाई नहीं देता। नागरिक पत्रकारिता के नाम पर किसी के जीवन के व्यक्गित पहलू जिसका समाज से सीधा-सीधा कोई सरोकार नहीं है एवं सनसनीखेज खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से दिखा देना भी एक बड़ी चुनौती है। इन सब चुनौतियों के बावजूद भी नागरिक पत्रकारिता में असीम संभावना है। वर्तमान तकनीक के माध्यम से पत्रकारिता के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, उपलब्ध माध्यमों का प्रयोग कर व्यक्ति नागरिक पत्रकारिता के रूप में अपने को स्थापित कर सकता है। नागरिक पत्रकारिता से शुरू होकर मुख्य मीडिया तक का सफ़र आज असंभव नहीं रह गया है। बस आवश्यकता है तो नागरिक पत्रकारिता के प्रति ठीक समझ विकसित करने की। इसके लिए उसे नागरिक पत्रकारिता के प्रकार, माध्यम एवं अभ्यास के तरीकों को अपनाना होगा। उसे यह समझना होगा कि नागरिक पत्रकारिता लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का एक मंच है। सूचना के अधिकार को किस प्रकार नागरिक पत्रकारिता का पर्याय बनाया जा सकता है यह भी उसको सीखना होगा। भाषा की शुद्धता और उसका स्तर बनाए रखना भी इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नागरिक पत्रकारिता करते हुए किस प्रकार के विषयों का चयन किया जाए और उन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए छायाचित्र, वीडियो व ग्राफिक्स के महत्व को भी उसे समझाना होगा।
पिछले कुछ वर्षों में देश में नागरिक पत्रकारिता के लिए स्थितियां अनुकूल हुई हैं। इंटरनेट के विस्तार से इसे मजबूत रीढ़ मिली है। देश में डेटा की खपत अमेरीका और चीन की कुल डेटा खपत से भी ज्यादा है। नई पीढ़ी भी खबर की खोज में नए साधनों की ओर मुड़ने लगी है। नागरिक पत्रकारिता ने स्थापित मीडिया को हर क्षेत्र में ललकारा है। नागरिक पत्रकारिता के प्रभाव से मुख्यधारा का मीडिया भी अछूता नहीं हैं। उसमें उत्पन्न बदलावों को महसूस किया जा सकता है। इसे आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है टेक्नोलॉजी ने। आज हर नागरिक अपने फोन के माध्यम से दुनिया के साथ हर पल जुड़ा हुआ है। वह कहीं से भी किसी को तस्वीरें, वीडियो और आलेख भेज सकता है। पहले कंटेंट का निर्माण कुछ विशेषज्ञों तक ही सीमित था। मौजूदा दौर में इंटरनेट से जुड़ा तकरीबन हर व्यक्ति लगातार कंटेंट का निर्माण ही नहीं कर रहा बल्कि उसे सतत सम्प्रेषित भी कर रहा है। सोशल मीडिया ने ऐसे एप्लिकेशन विकसित कर लिए हैं जिससे तकरीबन हर कोई अपनी भाषा में, चाहे सीमित दायरे में ही क्यों न हो, एक मीडियाकर्मी बन चुका है। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, वीचैट, टिकटॉक को आज किसी भी बड़े मीडिया संस्थान से कहीं बड़े मीडिया उपक्रम हैं। लेकिन ध्यान रखने की बात है कि इन सब प्लेटफॉर्म पर कंटेंट आम नागरिक ही बनाते और सम्प्रेषित करते हैं।
कंज्यूमर स्नैपशॉट सर्वे के अनुसार कोरोना लॉकडाउन से पहले एक यूजर्स सोशल मीडिया पर औसतन रोज 150 मिनट बिताते थे। वहीं 75 प्रतिशत यूजर्स ने जब फेसबुक, वॉट्सऐप औप ट्विटर पर ज्यादा टाइम खर्च करना शुरू किया तो यह डेली 150 मिनट से बढ़कर 280 मिनट हो गया। वर्तमान में भारत में तकरीबन 350 मिलियन सोशल मीडिया यूज़र हैं और अनुमान के मुताबिक 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुँच जाएगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि सोशल मीडिया के सही उपयोग द्वारा सिटिज़न जर्नलिज़्म कैसे समाज व आम आदमी की आवाज बन सकता है। सिटिज़न जर्नलिज़्म की संभावना व भूमिका आने वाले समय और अधिक बढ़ने वाली है। ‘कभी भी युद्ध नहीं जीता जाता, बल्कि छोटे-छोटे मोर्चे जीतने के बाद ही युद्ध जीता जाता है’। इसी प्रकार सिटिज़न जर्नलिज़्म के रूप में आज छोटे-छोटे मोर्चो पर हमें अपनी भूमिका तय करनी होगी। उसके लिए जिस प्रकार के प्रशिक्षण, योग्यता व समझ की आवश्यकता है उसे सीखना होगा। तभी सिटिज़न जर्नलिज़्म के माध्यम से समाज में हम जिस प्रकार के सकारात्मक परिवर्तन को लाना चाहते है, वो ला पायेंगे। यानि भरोसे से कहा जा सकता है कि इस राह का भविष्य उज्ज्वल है।
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(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक है)
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