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अखंड भारत – जो सपना ज़िंदा रहता है वही पूरा होता है
अखंड भारत का स्वप्न कुछ लोगों को असंभव लगता हो । लेकिन यदि हम इतिहास का अवलोकन करेंगे, तो ध्यान आएगा कभी जो बातें असंभव लगा करती थी, कुछ समय के पश्चात वो संभव भी हुआ है । मनुष्य की उम्र कुछ वर्ष हुआ करती है पर देशों की उम्र हजारों -हजारों वर्ष होती है । विश्व के ऐतिहासिक अनुभव हैं कि किसी भी देश का विभाजन स्थाई अथवा अटल नहीं होता ।
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वीर सावरकर : तेज, तारुण्य एवं तिलमिलाहट की प्रतिमूर्ति
स्वातंत्र्य विनायक दामोदर सावरकर केवल नाम नहीं, एक प्रेरणा पुंज है जो आज भी देशभक्ति के पथ पर चलने वाले मतवालों के लिए जितने प्रासंगिक हैं उतने ही प्रेरणादायी भी. वीर सावरकर अदम्य साहस, इस मातृभूमि के प्रति निश्छल प्रेम करने वाले व स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाला अविस्मरणीय नाम है.
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भारतीय नववर्ष: हमारा गौरव, हमारी पहचान
यह नववर्ष हमारा गौरव एवं पहचान: वर्ष प्रतिपदा को विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैसाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: हर भाषा हर बोली को सलाम
मातृभाषा हमारा गौरव: भारत के ख्याति प्राप्त अधिकतर वैज्ञानिकों ने अपनी शिक्षा मातृभाषा में ही प्राप्त की है। महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, श्री माँ, डा. भीमराव अम्बेडकर, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य चिंतकों से लेकर चंद्रशेखर वेंकट रामन, प्रफुल्ल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बसु
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देश के असली हीरो व अजेय योद्धा ‘नेताजी सुभाष’
नेताजी और आज़ाद हिंद फौज के खौफ से मिली आज़ादी: सन 1956 में ब्रिटेन के तात्कालिक प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली भारत आए. ये वही एटली थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के ड्राफ्ट पर 1947 में हस्ताक्षर किये थे.
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राष्ट्र की सनातन चेतना को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाने वाले विवेकानंद
युवा दिलों की धड़कन: उम्र महज 39 वर्ष, अपनी मेधा से विश्व को जीतने वाले, युवाओं को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले, अपनी संस्कृति व गौरव का अभिमान विश्व पटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद का यह 159वां
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हम सबकी ज़िम्मेदारी व समय की मांग है ‘सिटिज़न जर्नलिज़्म’
सिटिज़न जर्नलिज़्म की संभावना व भूमिका आने वाले समय और अधिक बढ़ने वाली है। ‘कभी भी युद्ध नहीं जीता जाता, बल्कि छोटे-छोटे मोर्चे जीतने के बाद ही युद्ध जीता जाता है’।
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दीनदयाल उपाध्याय – भारतीय पत्रकारिता के पुरोधा
उनके जीवन का मंत्र चरैवेति रहा। दीनदयाल जी ने पत्रकारिता द्वारा अपने लेखन के रूप में भारत को भारत से परिचय कराया ।
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दूरदर्शन – समाचार, संस्कार व संतुलन की पाठशाला
कोरोना के इस दौर में भी हम सबने दूरदर्शन की सफलता व कीर्तिमान को एक बार फिर महसूस किया है।
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गति के लिए चरण व प्रगति के लिए आचरण की प्रेरणा है ‘शिक्षक’
आज शिक्षक दिवस है और हममें से कोई भी ऐसा नहीं, जिसके जीवन में इस शब्द का महत्व न हो। हम आज जो कुछ भी है या हमने जो कुछ भी सिखा या जाना है उसके पीछे किसी न किसी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग व उसे सिखाने की भूमिका रही है।