दुनिया न किसी के लिए रुकती है न थकती है। समय के साथ चलती है। समय के साथ कदम-ताल करती है। क्योंकि समय ही सब कुछ है। जीवन बिना समय के निर्मूल है। दुनिया की गति-प्रगति इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। कहा भी गया है -‘’समय एक ऐसा पहिया है जो हर दम घूमता रहता है।‘’ चाहे अदना हो या खास सभी का जीवन घंटा, मिनट, सेकंड, पहर, दोपहर, क्षण, प्रतिक्षण, दिन, सप्ताह, माह, साल इन सभी शब्दों से हर पल प्रभावित होता है। परंतु क्या हमने कभी सोचा है कि एक आम आदमी के जीवन में समय की इतनी बड़ी भूमिका को भला कौन प्रतिबिंबित करता है? सोचिए मत! ना ही दिमाग पर जोर डालिए। समय का यह दूत हम सभी के घरों की दीवारों पर, टेबुलों पर, अलमारियों पर, दराजों पर, खिड़कियों पर रखे या टंगे अक्सर दिख जाते है। कहने को तो हमारे विज्ञान की परिभाषा में ये निर्जीव हैं। लेकिन समय के ये दूत हम सभी के जीवन में एक सजीव से भी अधिक प्रभाव डालते है। अब तक हममें से अधिकांश समझ गए होंगे कि समय के यह दूत और कोई नहीं कैलेंडर है। जिसकी प्रतीक्षा हम सभी को प्रत्येक वर्ष के आरंभ पर रहती है।
जी, हाँ, हम सभी के जीवन का अभिन्न अंग कैंलेडर है। चाहे हम अनुशासित व्यक्ति हो या नहीं। हममें से किसी की जिंदगी इसके बिना नहीं चल सकती। ये हमारी जिंदगी का अहम् हिस्सा है। भले ही यह सिमट कर अब मोबाइल या घड़ी में सिमट गया हो और इस बार तो और अधिक दुविधा आ गयी जब कोरोना की वजह से सरकार ने कैलेंडर की छपाई पर ही रोक लगा दी है। फिर भी कैलेंडर सॉफ्ट रूप में तो रहेगा ही।
सालों से हम सभी को वर्ष के शुभारंभ पर अगर किसी एक चीज का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है तो वह कैलेंडर ही है। आज भी अलसुबह हम सभी को इस नए कैलेंडर का इंतजार रहेगा| चाहे हमें दैनिक कार्यक्रम बनानी हो, नवीन योजनायें या नोटबुक पर अपनी डेट डालनी हो, जीवन के यादगार क्षणों को और यादगार बनाना या छुट्टियों का रिकार्ड रखना हो इन सभी का समाधान कैलेंडर में छुपा होता है। और तो और किसी को अपनी विवाह की तिथि नियत करानी हो या और कोई शुभ काम तब भी उसे पंचाग की ही जरूरत पड़ती है।
सालों से हम सभी को आंग्ल नव वर्ष के शुभारंभ पर अगर किसी एक चीज का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है तो वह कैलेंडर ही है। चाहे हमें दैनिक कार्यक्रम बनानी हो, नवीन योजनायें या नोटबुक पर अपनी डेट डालनी हो, जीवन के यादगार क्षणों को और यादगार बनाना या छुट्टियों का रिकार्ड रखना हो इन सभी का समाधान कैलेंडर में छुपा होता है। और तो और किसी को अपनी विवाह की तिथि नियत करानी हो या और कोई शुभ काम तब भी उसे पंचाग रूपी कैलेंडर की ही जरूरत पड़ती है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कैलेंडर से लोगों की मानसिकता का भी पता चलता है। व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कैलेंडर से उसके स्वभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। मनोविज्ञानी कहते है बहुधा पंसदीदा तस्वीर वाले कैलेंडर से स्वाभाविक ताजगी का एहसास होता है, क्योंकि उसमें व्यक्ति की पसंद शामिल होती है। यही कारण है कि सरकार एवं निजी संगठनों द्वारा अपने उत्पादों, सांस्कृतिक धरोहरों, रीति-रिवाजों, परंपराओं आदि पर आधारित कैलेंडरों का बड़े पैमाने पर प्रकाशन किया जाता है। यहाँ तक कि केरल के शाजी थॉमस का नाम 3000 सालों के 28 पृष्ठों का कैलेंडर तैयार करने हेतु गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है।
परंतु, क्या हमने कभी सोचा है कि हमारी जिंदगी के पल-पल का हिसाब रखने वाले कैलेंडर के इतिहास के बारे में हम सब कितना जानते है? अगर दुनिया भर के कैलेंडर पर नजर दौड़ाए तो विश्व स्तर पर मुख्यत: ईसवी, यहूदी, हिजरी, पारसी, चीनी, शक, विक्रमी कैलेंडर ज्यादा प्रचलित मिलेंगें। परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक लोकप्रिय तथा साल को 365 दिनों में बांटने वाला कैलेंडर ग्रेगेरियन ही बन चुका है। अब तो अंग्रेजी नव वर्ष की लोकप्रियता को देखते हुए बहुधा इसे ही रोजमर्रा में अपनाया जा रहा है।
भारत में चूँकि दीर्घ काल तक विदेशी शासन रही, अत: यहाँ मुगलों के राज्यकाल में हिजरी संवत तथा बाद में ब्रिटिशों की शासन व्यवस्था में ईसवी परंपरा पर आधारित कैलेंडर अपनाये गए। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सरकार ने 22 मार्च, 1957 को शक संवत पर आधारित राष्ट्रीय पंचाग को अपनाया, क्योंकि शक या विक्रम संवत अथवा युगब्ध का किसी पंथ अथवा पंथप्रणेता से कोई संबंध नहीं हैं। वह शुद्ध कालगणना है। यही कारण है कि बहुधा लोग 01 जनवरी को नव वर्ष के रूप में अपनी परंपरा के विरूद्ध मानते है।
पुराने समय में इंसान के पास समय को नापने की कोई अधिकृत तकनीक नहीं थी और वे सूरज और चंद्रमा के घूमने के हिसाब से ही दिन और रात की गणना किया करते थे। धीरे-धीरे खगोल विज्ञान के अध्ययन और शोध द्वारा यह ज्ञात हुआ कि पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती रहती है। इस प्रकार पृथ्वी की अपनी धूरी पर घूमने की कुल अवधि को दिन और रात में तथा सूरज की परिक्रमा करने की अवधि को एक वर्ष माना गया। इसके बाद वर्ष की इस अवधि को चंद्रकलाओं या चंदा मामा के बढ़ने-घटने के हिसाब से बारह भागों में बांटा गया, जिसे मंथ, माह या महीना कहा जाने लगा। माना जाता है कि करीब 2000 वर्ष पहले आधुनिक इटली की राजधानी रोम में कैलेंडर का आविष्कार हुआ। रोमन सम्राट रोग्यूलस द्वारा बनाए गए इस कैलेंडर में साल 304 दिनों का और माह 10 थे। लेकिन, इसमें महीने के दिनों की संख्या तय नही की गई थी। इसमें वर्ष का आरंभ मार्च महीने से होता था। बाद में इसी कैलेंडर में रोमन सम्राट पोंपीलस के द्वारा रोमन देवी जेनिस के नाम पर जनवरी माह, रोमन त्योहार फ्रेबुआ के नाम पर फरवरी माह जोड़ा गया। इसी प्रकार से, साल के 12 महीनों वाला दुनिया का पहला कैलेंडर चलन में आया। परंतु इस कैलेंडर में अब भी दिनों की कुल संख्या ही 355 ही तय की गई थी। ये सभी कैलेंडर मुख्यत: चंद्रमा पर आधारित थे।
माना जाता है कि करीब 2000 वर्ष पहले आधुनिक इटली की राजधानी रोम में कैलेंडर का आविष्कार हुआ। रोमन सम्राट रोग्यूलस द्वारा बनाए गए इस कैलेंडर में साल 304 दिनों का और माह 10 थे। लेकिन, इसमें महीने के दिनों की संख्या तय नही की गई थी। इसमें वर्ष का आरंभ मार्च महीने से होता था। बाद में इसी कैलेंडर में रोमन सम्राट पोंपीलस के द्वारा रोमन देवी जेनिस के नाम पर जनवरी माह, रोमन त्योहार फ्रेबुआ के नाम पर फरवरी माह जोड़ा गया। इसी प्रकार से, साल के 12 महीनों वाला दुनिया का पहला कैलेंडर चलन में आया। परंतु इस कैलेंडर में अब भी दिनों की कुल संख्या ही 355 ही तय की गई थी। ये सभी कैलेंडर मुख्यत: चंद्रमा पर आधारित थे।
सूर्य के आधार पर कैलेंडर को तैयार करने की प्रक्रिया मिस्र में ईसा से करीब तीन हजार साल पहले ही शुरु हो चुकी थी। इस कैलेंडर में साल को तीन-चार महीनों एवं तीन ऋतु काल में विभाजित किए गए थे। इस कैलेंडर में सूरज की गति के हिसाब से साल में कुल 360 दिन तय किए गए। सूरज की समय गणना को ही आधार मानकर महान रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने एक नया कैलेंडर विकसित किया, जिसका नाम दिया गया जूलियस कैलेंडर। बाद में, जूलियस कैलेंडर में रह गई बाकी कमियों को दूर कर आधुनिक कैलेंडर को नया रुप दिया रोम के 13वें पोप ग्रेगरी ने। इसीलिए रोम के 13वें पोप ग्रेगरी को आधुनिक कैलेंडर का जन्मदाता कहा जाता है। वर्तमान में दुनिया भर में स्वीकृत कैलेंडर ग्रेगेरियन कैलेंडर ही है। पोप ग्रेगरी का जन्म रोम ही हुआ था। उन्होंने अपने कैलेंडर की शुरुआत प्रभु यीशु के जन्म माह जनवरी से की। पोप ग्रेगरी के कैलेंडर में सामान्य वर्षो में 365 दिन तथा लीप ईयर(प्रत्येक चौथे वर्ष) में 366 दिन तथा फरवरी माह में 28 दिन एवं प्रत्येक चौथे साल में आने वाले फरवरी माह में 29 दिन तय किए गए। आज पोप ग्रेगरी द्वारा बनाया गया यह कैलेंडर पूरी दुनिया में कैलेंडर के मानक रुप में प्रचलित है।
वर्तमान में दुनिया भर में स्वीकृत कैलेंडर ग्रेगेरियन कैलेंडर ही है। पोप ग्रेगरी का जन्म रोम ही हुआ था। उन्होंने अपने कैलेंडर की शुरुआत प्रभु यीशु के जन्म माह जनवरी से की। पोप ग्रेगरी के कैलेंडर में सामान्य वर्षो में 365 दिन तथा लीप ईयर(प्रत्येक चौथे वर्ष) में 366 दिन तथा फरवरी माह में 28 दिन एवं प्रत्येक चौथे साल में आने वाले फरवरी माह में 29 दिन तय किए गए। आज पोप ग्रेगरी द्वारा बनाया गया यह कैलेंडर पूरी दुनिया में कैलेंडर के मानक रुप में प्रचलित है।
आज जब पूरी दुनिया वैश्विक गांव के रुप में परिवर्तित हो रही है और हम सभी किसी न किसी रुप में वैश्विक भाषा, वैश्विक मानक इकाई, वैश्विक समय को मानते है। तो, इसी मानकता की दुनिया में सबसे ज्यादा मानक माना जाने वाला ग्रेगेरियन कैलेंडर भी सर्वस्वीकृत है। मानकता के ही कारण ग्रेगेरियन कैलेंडर दुनिया के अधिकांश घरों में टंगा मिल जाएगा। वक्त के साथ कैलेंडर के कलेवर /डिजायन में काफी बदलाव आए है। प्रत्येक वर्ष कंपनियों द्वारा नव वर्ष पर तमाम सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखकर कैलेंडर लांच किए जाते है। पर इस बार कोविड-19 के कहर ने इस परंपरा को भी प्रभावित किया। अत: इस बार सरकारी स्तर पर कैलेंडर के नाम पर हमें इसकी सॉफ्ट प्रति से ही संतोष करना होगा।
वक्त के साथ कैलेंडर के कलेवर /डिजायन में काफी बदलाव आए है। हम सभी ने भारत के ग्लैमरस कैलेंडर में कभी किंगफिशर का नाम बहुत सुना था। यूबी समूह का यह कैलेंडर विश्व प्रसिद्ध पिरेली का भारतीय जवाब था। जानवरों के हितों के लिए काम करने वाला संगठन पेटा का कैलेंडर भी काफी लोकप्रिय रहा है। पूर्व में डिस्कवरी चैनल के टेबल कैलेंडर के आवरण पर भारतीय बाघ के अलावा, दक्षिण भारत के मंदिर, रोमांचक पर्यटन तथा समुद्री तट के नजारे को प्रदर्शित किया जाता रहा है। साथ ही प्रत्येक वर्ष कंपनियों द्वारा नव वर्ष पर तमाम सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखकर भी कैलेंडर लांच किए जाते है। पर इस बार कोविड-19 के कहर ने इस परंपरा को भी प्रभावित किया। अत: इस बार सरकारी स्तर पर कैलेंडर के नाम पर हमें इसकी सॉफ्ट प्रति से ही संतोष करना होगा।
इसमें कोई शक नहीं कि समय के साथ कैलेंडर अपनी बात लोगों तक पहुंचाने यानि विज्ञापन या सूचना के माध्यम के रूप में भी स्थापित हो चुका है, जिसकी कमी कोरोना काल में महसूस की जाएगी। भले आज लोगों को गैजेट्स एवं स्मार्ट फोन तथा ई-मेल पर तरह-तरह के कैलेंडर उपलब्ध हो जाते है पर इस बार इसकी कमी महसूस तो की ही जाएगी। पर यह भी सत्य है कि एक बड़ी आबादी नया साल आने के दो माह पहले से ही दुकानों पर कई तरह के पंचागनुमा कैलेंडरों को खरीदने हेतु जाती है। साथ ही तरह-तरह की तस्वीरें, जैसे कि फिल्म स्टार, देवी-देवता, प्रकृति आदि वाले सामान्य कैलेंडर भी खुब बिकते है। गौरतलब है कि सूर्य और चंद्रमा की गतियों पर आधारित हिंदू कैलेंडर और चांद पर आधारित इस्लामी कैलेंडर आम लोगों में काफी लोकप्रिय है। भारत सरकार द्वारा भी राष्ट्रीय पचांग प्रकाशित किया जाता रहा है। तमाम सरकारी विभाग भी इस मामले में पीछे नहीं रहते। कोविड-19 महामारी ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया और सरकार ने इनके प्रकाशन पर रोक लगा दी, पर सुखद अहसास तो कैलेंडर की हार्ड प्रति से ही होता है।
कहते है जीवन का इक्कीसवाँ वसंत हमेशा सुखद होता है| तो यह सदी भी अपने इक्कीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है| किसी अनाम कवि के शब्दों को थोड़ा संशोधन के साथ ‘उम्र की डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है….. तारीखों के जीने से दिसंबर फिर उतर रहा है, वक्त है कि सब कुछ समेटे बादल बन उड़ रहा है फिर एक नव वर्ष आ रहा है….
आइए ईसाई नव वर्ष-2021 का अभिनन्दन नए कैलेंडर के साथ करें|
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