नवी मुंबई । सल्लेखना / संथारा पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने बिना सल्लेखना / संथारा के बारे में जाने, उस उत्कृष्ट तपस्या को आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध से तुलना करते हुए, जैन धर्म की प्रमुख तपस्या पर रोक लगा दी है.
जैन शास्त्रों में कहा गया है कि साधक को अपने शरीर के माध्यम से सतत साधना करते रहना चाहिए, जब तक शरीर साधना के अनुकूल प्रतीत हो शरीर को पर्याप्त पोषण देते रहना चाहिए परन्तु जब शरीर में शिथिलता आने लगे व हमारी साधना में बाधक प्रतीक होने लगे, बुढ़ापे के कारण शरीर अत्यंत क्षीण, जर्जर हो जाए अथवा ऐसा कोई रोग हो जाए जिसका कोई उपचार न हो, उसकी चिकित्सा न की जा सके तो उस घड़ी में शरीर की नश्वरता एवं आत्मा की अमरता को जानकर धर्म ध्यान पूर्वक इस देह का त्याग करना सल्लेखना कहा जाता है. सल्लेखना की एक विधि है. इस प्रक्रिया के अनुसार साधक अपनी कषायों को कृष करने के क्रम में अपने मन को शोक, भय, अवसाद, स्नेह, बैर, राग द्वेष और मोह जैसे विकारी भावों का भेद विज्ञान के बल पर शमन करता है . और अपनी साधना के द्वारा अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को कम करता जाता है. और अत्यंत सहज और शांत भावों से इस संसार से विदा लेता है.
देह विसर्जन की इतनी तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक पद्धति को आत्महत्या कहना अथवा इच्छामृत्यु या सतीप्रथा निरुपित करना बड़ा आश्चर्यजनक है यदि जैन धर्म में प्रतिपादित ‘सल्लेखना’ की मूल अवधारणा को ठीक ढंग से समझा गया होता तो ऐसा कभी नहीं होता. जैन धर्म में आत्महत्या को घोर पाप निरुपित करते हुए कहा गया है ‘आत्मघातं महत्पापं’. हत्या ‘स्व’ की हो अथवा ‘पर’ की हो हत्या तो हत्या है. जैन धर्म में ऐसी हत्या को कोई स्थान नहीं है. इस साधना अथवा सल्लेखना के लिए आत्महत्या जैसे शब्द का प्रयोग तो तब किया जा सकता है जब यह मरने के लिए की जाए. जबकि सल्लेखना मरने के लिए नहीं जीवन-मरण से ऊपर उठने के लिए की जाती है. ऐसी सल्लेखना की पावन प्रक्रिया को आत्महत्या कहना कितना आश्चर्यजनक है. वस्तुतः सल्लेखना आत्महत्या नहीं आत्मलीनता है, जिसमें साधक आत्मा की विशुद्धि एवं शरीर की शुद्धि के साथ अपनी अंतिम साँस लेता है. सल्लेखना एवं आत्महत्या दोनों को कभी एक नहीं कहा जा सकता है. दोनों की मानसिकता में महान अंतर है:
जिसके प्राणों पर संकट आ जाएँ, वह उद्वेलित नहीं होगा तो क्या होगा? जिस सल्लेखना के कारण हमारी साधना सफल होती है जिसको धारण करने की भावना हर जैन साधक जीवनभर रखता है यदि उसपर ही प्रतिबन्ध की बात आ जाए तो समाज उद्वेलित होगा ही. वस्तुतः सल्लेखना पर रोक हमारे धर्म पर रोक है. हमारी साधना पर रोक है. यह जैनधर्म और संस्कृति पर कुठाराघात है. जैन समाज का उद्वेलित होना स्वाभाविक है जिसे इस प्रतिबन्ध को हटाकर ही शांत किया जा सकता है.
इस तरह अपना विरोध व्यक्त करते हुए, वाशी नवी मुंबई की सकल जैन समाज के लोगों ने अपनी अहिंसक मौन रैली निकालकर विरोध का प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में महिलाओं ने केसरिया साड़ी, पुरुष वर्ग ने सफ़ेद वस्त्र धारण करके , साथ में छोटे छोटे बच्चों ने भी अपना सहयोग दिया. सभी ने अपने हाथ में विरोध स्वरुप काली पट्टी लगाईं हुई थी. यह जुलुस ‘वाशी सेक्टर ९ जैन मंदिर से शुरू होकर – कोपर खैरने सेक्टर 1’ तक पहुंची वहां से बसों में बैठकर लोग ठाणे कलेक्टर आफिस पहुंचकर ज्ञापन सौंपा. आज पूरा वाशी जैसे बंद था, लोगों ने आपने प्रतिष्ठान बंद रखे थे. इस प्रदर्शन में लगभग १५०० लोग सम्मलित हुए.
इसी तरह का अभियान पूरे देश में चलाया गया, जिसमें जयपुर १००००० , दिल्ली ५००००, रायपुर २५०००, दुर्ग ८०००, गुवाहाटी ३५०००, मुंबई ५५०००, मेरठ ३०००, कोटा १५०००, सागर २२०००, शिखरजी १५००, पटना ९०००, आगरा २५०००, अलीगढ ५०००, सिलोनी २०००, हटा दमोह (मध्यप्रदेश) १०००, फिरोजाबाद २२०००, नागपुर ५००००, लखनऊ १५०००, झाँसी २५०००, ग्वालियर २५०००, सूरत २०००००, भीलवाडा ४००००, राजनादगांव ५०००, मुगावली ५०००, रांची ७०००, इंदौर १५००००, खातेगांव २५००, जबलपुर ७५०००, भिंड १५०००, बिलासपुर ५०००, कटनी २००००, भोपाल ५००००, गुना २००००, अशोकनगर १००००, विदिशा १००००, उज्जैन ११००००,सुल्तानगंज रायसेन ५०० , बीना ५०००, औरंगाबाद ५००००, बेलगाँव २००००, सीहोर ५०००. ललितपुर ७००००.
इसके साथ बुंदेलखंड में प्रत्येक गाँव से लोगों ने मुंडन कराकर विरोध जताया. मुंडन करने वालों की संख्या १५०००० लोगों ने मुंडन कराया ,जिसमे ललितपुर, टीकमगढ़, गुना मुख्यतः थे.
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संपर्क
सीएस. प्रवीण कुमार जैन,
कम्पनी सचिव, वाशी, नवी मुम्बई – ४००७०३.
Regards,
CS Praveen Kumar Jain,
Company Secretary, Vashi, Navi Mumbai – 400703.