विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की धार्मिक आस्था, भांगड़ा नृत्य की महक, हीर-रांझा एवं सोहनी-महीवाल के अमर प्रेम कथा से सुवासित प्रदेश पंजाब में शिवालिक और हिमालय पर्वत मालाओं के उतंग शिखर तथा प्राकृतिक परिवेश के साथ बल खाती प्राचीन नदियों की प्रचुरता है। ”धान के कटोरे“ के रूप में विख्यात यह प्रदेश खाद्यान्न उत्पादन में अपना अग्रणीय स्थान रखता है। चंडीगढ़ में फ्रांसीसी वास्तुशिल्पी ला कार्बूजिए द्वारा निर्मित कार्यों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल कर भारत की विश्व धरोहर घोषित किया गया हैं।लुधियाना में होजरी एवं ऊनी कपड़ों के उत्पादन से इसे ”भारत का मेनचेस्टर“ कहा जाता है।
इतिहास
पंजाब अखंड भारत का हिस्सा रहा है। यहां मौर्य, बैक्ट्रियन, यूनानी, शक, कुषाण, गुप्त जैसी अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। मध्यकाल में पंजाब मुसलमानों के अधीन रहा। सबसे पहले गजनवी, गोरी, गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक, लोधी और मुगल वंशो का पंजाब पर अधिकार रहा। पंजाब शब्द संस्कृत का पहला उल्लेख महाभारत में मिलता है, जहाँ इसे पंच-नाडा के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका अर्थ है श्पाँच नदियों का देशश्। पंजाब शब्द पहली बार इब्न बतूता की चैदहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र का दौरा करने के बाद लिखित वर्णन से चलता है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पंजाब व्यापक उपयोग में आया, इसका उल्लेख तराईख-ए-शेरशाह सूरी (1580) नामक पुस्तक में किया गया, जिसमें श्पंजाब के शेर खानश् द्वारा एक किले के निर्माण का वर्णन है। अबुल फजल द्वारा लिखितआईने-ए-अकबरी में पंजाब के उस क्षेत्र का वर्णन है जिसे लाहौर और मुल्तान के प्रांतों में विभाजित किया जा सकता है और इसी में ‘पंजनाद’ शब्द मिलता है।जहाँगीर ने श्तुजक-ए-जहांगीरीश् में पंजाबी शब्द का भी उल्लेख किया है, जो फारसी से लिया गया है और भारत के तुर्क विजेता द्वारा पेश किया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ष्पाँचष् (पंज) ष्जलष् (आब), भूमि एवं पाँच नदियों का जिक्र करती हैं जो इससे होकर जाती हैं। पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में पंजाब के इतिहास ने नया मोड़ लिया।
गुरु नानक देव की शिक्षाओं से यहां भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा। सिख पंथ ने एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया, जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को खालसा पंथ के रूप में संगठित किया तथा एकजुट किया। उन्होंने देशभक्ति, धर्मनिरपेक्षता और मानवीय मूल्यों पर आधारित पंजाबी राज की स्थापना की। एक फारसी लेख के शब्दों में महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को सिख साम्राज्य में बदल दिया। किंतु उनके देहांत के बाद अंदरूनी साजिशों और अंग्रेजों की चालों के कारण पूरा साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। अंग्रेजों और सिखों के बीच दो निष्फल युद्धों के बाद 1849 में पंजाब ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।भारतीय राज्य पंजाब 1947 में बनाया गया था, जब भारत के विभाजन ने भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब के पूर्व राज प्रांत को विभाजित किया था। प्रांत का ज्यादातर मुस्लिम पश्चिमी हिस्सा पाकिस्तान का पंजाब प्रांत बन गयाय ज्यादातर सिख पूर्वी भाग भारत का पंजाब राज्य बन गया। पटियाला सहित कई छोटी पंजाबी रियासतें भी भारतीय पंजाब का हिस्सा बन गईं। वर्ष1950 में, दो अलग राज्य बनाए गए। पंजाब में पंजाब का पूर्व राज प्रांत शामिल था, जबकि पटियाला, नाभा, जींद, कपूरथला, मालेरकोटला, फरीदकोट और कलसिया की रियासतों को एक नए राज्य, पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ में जोड़ा गया था। हिमाचल प्रदेश कई रियासतों और कांगड़ा जिले से एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बनाया गया था। 1956 में, पंजाब राज्य संघ को पंजाब राज्य में मिला दिया गया, और हिमालय में पंजाब के कई उत्तरी जिलों को हिमाचल प्रदेश में जोड़ दिया गया।
भूगोल
देश के उत्तर में स्थित पंजाब राज्य की सीमाएं, उत्तर में जम्मू एवं कश्मीर के राज्य से, पूर्व में हिमाचल प्रदेश राज्य से, दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व में हरियाणा राज्य से, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य से तथा पश्चिम की ओर पंजाब प्रान्त से जुड़ी हुई हैं। चण्डीगढ़ इस राज्य की राजधानी एवं संघ राज्य क्षेत्र होने के साथ-साथ हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब राज्य पंजाबी भाषा के आधार पर वर्ष 1966 में अस्तित्व में आया। राज्य का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किमी है तथा प्रशासनिक दृष्टि से दो संभागों एवं 22 जिलों में विभक्त किया गया है। यहां की जनसंख्या 2.77 करोड़ से अधिक है तथा साक्षरता दर 75 प्रतिशत है। यहां प्रमुख रूप से सिखों व हिन्दुओं के साथ-साथ न्यूनाधिक सभी धर्मो के लोग निवास करते हैं। हिन्दी एवं पंजाबी यहां की प्रमुख भाषाएं हैं। राज्य में नदियों के साथ-साथ व्यापक नहर प्रणाली देखने को मिलती है। यहां सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एवं झेलम प्रमुख पाँच नदियां राज्य की अपनी विशेषताएं हैं। वन एवं वन्यजीवों की दृष्टि से रोपड़, गुरूरदासपुर एवं होशियारपुर जिलों में समृद्ध वनस्पतियों एवं वन्यजीवों की उपलब्धता शिवालिक पर्वतमाला पर देखने को मिलती है, जिसके कारण इसे देश का सूक्ष्म स्थानिक क्षेत्र कहा जाता है। राज्य में बड़े पैमाने पर पशु-पक्षी पाये जाते हैं तथा यहां चार अभ्यारणय दर्शनीय हैं। इनमें कपूरथला में शालीमार गार्डन, अमृतसर का रामबाग, सिरहिन्द में आम खास बाग एवं संगरूर में छतबीर बसर गार्डन प्रमुख हैं।
अर्थव्यवस्था
पंजाब की अर्थव्यवस्था की दृष्टि से कृषि प्रधान राज्य है जहां सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र पाया जाता है। यहां गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, मोती बाजरा, मक्का एवं जौ आदि फसलें की जाती हैं। फिरोजपुर और फजिलका राज्य में गेहँू एवं चावल उत्पादन के सबसे बड़े जिले हैं। राज्य में विभिन्न किस्मों के संतरे, सेव, अंजीर, बादाम, अनार, आडू, शहतूत, खुबानी एवं प्लम फलों की खेती बहुतायत से की जाती है। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में वैज्ञानिक उपकरणों, इलेक्ट्रोनिक्स सामान, होजरी, कृषि उपकरणों, बिजली के सामान, मशीन उपकरण, सिलाई मशीन, खेल सामान, साइकिल, उर्वरक, चीनी, इस्पात रोलिंग आदि के उद्योग अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। पर्यटन तीसरा बड़ा उद्योग है जिसका यहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है।
संस्कृति
पंजाब साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक समृद्ध राज्य की श्रेणी में आता है। साहित्य के आकाश पर ऋग्वेद, पाणिनी की अष्टाध्यायी, सकारायण की व्याकरण, चरक संहिता, भगवत गीता एवं महाभारत ऐसे प्राचीन गं्रथ हैं जो इस भूमि पर आंशिक या पूर्ण रूप से रचे गये। पन्द्रहवीं शताब्दी में यहां सिक्ख धर्म का उदय हुआ और गुरूनानक देव, बांदासिंह तथा भाई मतीदास जैसे प्रभावी सिक्ख गुरूओं ने इस पावन भूमि पर जन्म लिया। सांस्कृतिक दृष्टि से पंजाब में पुरूषों द्वारा किया जाने वाला भांगड़ा एवं महिलाओं का गिद्दा नृत्य सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्यों में माने जाते हैं। यहां के नृत्य अधिकतर फसल बोने एवं फसल पकने व काटने के समय उल्लास बिखेरते हैं। अन्य नृत्यों में धमाल, ढोला एवं सम्मी नृत्य प्रमुख हैं। इन लोक नृत्यों का पंजाबी संगीत के साथ विभिन्न आकर्षक मुद्राओं एवं भाव भंगिमाओं से प्रदर्शन किया जाता है।
इस भूमि पर लोहड़ी, बसन्त एवं बैशाखी, गुरूनानक जयन्ति के साथ-साथ होली, दीवाली, दशहरा के पर्व पूर्ण उमंग से मनाये जाते हैं। भांगड़ा नृत्य की लोकप्रियता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा और इंग्लैण्ड की पश्चिमी दुनिया के साथ मिलकर यह हाईब्रिड नृत्य बन गया है तथा विभिन्न प्रकार की धुनों का विकास हुआ है। यहां मावली एवं पल्ली बोलियों में गाने, गाथा गीत, महाकाव्य और रोमांस के गीत गाये जाते हैं। संगीत के क्षेत्र में पंजाब घराना और पटियाला घराना अपना विशेष महत्व रखता है। मिर्जा साहिबान, सस्ती पुनन, जग्गा जाट, दुल्ला भट्टी, पुराण भगत, जीना मौड की लोक कथाऐं भी यहां प्रचलित हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से सिक्ख पगड़ी बांधने की अनेक कला शैलियां प्रचलित हैं। इनमें पटियाला शाही, मौनी दत्तार, पोचवी दस्तान, बरनाला शाही एवं अमृतसर शाही प्रमुख शैलियां हैं। राज्य में आकर्षक स्थल एवं समृद्ध संस्कृति होने के साथ फिल्मों की शूटिंग भी होने लगी है। मक्का की रोटी, सरसों का साग एवं छाछ यहां का सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन है।भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यपंजाब विश्विद्यालय के पूर्व छात्रद्ध, जैव रसायन शास्त्री नोबल पुरस्कार विजेता हरगोविन्द खुराना, क्रिकेटर कपिल देव, युवराज सिंह, अन्तर्राष्ट्रीय हाॅकी खिलाड़ी बलवीर सिंह, हाॅटमेल के संस्थापक सुबीर भाटिया, राॅक गार्डन के निर्माता नेकचन्द, पंचकुला कैक्ट्स गार्डन के जन्मदाता जी. एस. सरकारिया एवं धावक मिल्खा सिंह इस धरती की शान हैं। खेल की दृष्टि से राज्य में क्रिकेट, गोल्फ, हाॅकी, बैडमिटन, कैरम एवं शूटिंग रेंज के दस खेल परिसर एवं स्टेडियम उपलब्ध हैं। रायपुर ग्रामीण ओलंपिक के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटन की दृष्टि से अमृतसर एवं चण्डीगढ़ महत्वपूर्ण शहर हैं। यहां अनेक पर्यटक स्थल दर्शनीय हैं।
परिवहन
पंजाब भारत के सभी प्रमुख स्थानों से सड़क,रेल एवं हवाई मार्ग से जुड़ा हैं। चंडीगढ़ में एक घरेलू हवाई अड्डा, राजासांसी (अमृतसर) में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और पटियाला तथा सहनेवाल (लुधियाना) में दो हवाई अड्डे हैं। अनेक सुपर एक्सप्रेस रेलें पंजाब से गुजरती हैं।
दर्शनीय स्थल चण्डीगढ़( केंद्रशासित)
चंडीगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्र को पहली नवंबर, 1966 को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। यह हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी भी है। इसके उत्तर और पश्चिम में पंजाब तथा पूर्व और दक्षिण में हरियाणा है।अनूठी प्राकृतिक छंटा बिखेरता चण्डीगढ़ शहर अपनी व्यवस्थित बसावट एवं वास्तुशिल्प की दृष्टि से भारत के सबसे सुन्दर, प्रदूषण मुक्त वातावरण और स्वच्छ शहरों में प्रमुख है। यहां के सभी सेक्टरों में वनस्पति एवं फूलों की विविधता इस शहर को एक नया आयाम प्रदान करती है। शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसा चण्डीगढ़ संघीय राज्य होने के साथ-साथ पंजाब एवं हरियाणा राज्यों की संयुक्त राजधानी हैं। नियोजित रूप से बसाये गये इस शहर को ”ब्युटीफुल सीटी“ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। करीब 114 वर्ग कि.मी. में फैले इस शहर के नियोजन का कार्य फ्रांसीसी वास्तुकार ली-कार्बूजियर द्वारा किया गया था। यहां की आबादी 7.5 लाख है।
शहर की विशेषता है कि यहां से बहुत कम दूरी पर कई विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों पर आसानी से पहुँचा जा सकता है। राॅक गार्डन-अनूठा एवं स्तब्ध करने वाला राॅक गार्डन सेक्टर एक में सूखना झील एवं कैपिटल काॅम्पलेक्स के मध्य नेकचन्द सेनी द्वारा इस उद्यान को बनाया गया। इसमें टूटी-फूटी, बेकार वस्तुएं जैसे- चूड़ी, चीनी मिट्टी के बर्तन, तार, ट्यूबलाईट एवं आॅटोपाट्र्स आदि चीजों को सजाकर एक स्वप्नलोक साकार किया गया है। यहां कई झरनें, पुल, घुमावदार रास्ते, महल, विभिन्न प्रकार की मनुष्य एवं जानवरों की आकृतियां खूबसूरती के साथ बनाये गये हैं। उद्यान के विकास के लिए भारत सरकार ने 1984 में नेकचंद को पद्ममश्री से सम्मानित किया। उनका निधन कैंसर के इलाज के चलते 12 जून 2015 को हो गया। नेकचन्द दुनिया को बेकार सामान के सुन्दरतम उपयोग करने का संदेश इस उद्यान के माध्यम से दे गये। सूखना झील -सेक्टर एक में ही पहाड़ी गोद में सुखना झील का सुन्दर नजारा देखने को मिलता है। यहां वाटर स्पोर्ट के साथ-साथ बोटिंग एवं अन्य जल क्रीड़ाओं का आनन्द लिया जा सकता है। यहां से पहाड़ियों के सुन्दर नजारों के साथ-साथ सूर्यास्त का नजारा अत्यन्त मनमोहक दिखाई देता है। मानवनिर्मित इस झील की योजना भी ली-कार्बूजियर ने बनाई थी। यहां विशेषकर सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का नजारा देखने को मिलता है।
राजधानी काॅम्पलेक्स के भवन वास्तुकला के सुन्दर नमूने हैं।रोज गार्डन -शहर के सेक्टर 16 में स्थित रोज गार्डन गुलाब के फूलों का एशिया का सबसे बड़ा उद्यान है। करीब 30 एकड़ क्षेत्रफल में बने इस उद्यान में 1700 प्रकार की वनस्पति एवं 1600 से ज्यादा किस्मों के गुलाब पाये जाते हैं। गुलाब के फूलों के साथ-साथ उद्यान में बाहेरा, कपूर, बेल, हरे और पीले गुलमोहर के पौधे भी पाये जाते हैं, जिनका औषधी के रूप में काफी महत्व है। गार्डन में वार्षिक रोज उत्सव आयोजित किया जाता है। जिसमें स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में प्रतिभागी बनते हैं। बाग के मध्य 70 फीट ऊँचा फव्वारा उद्यान की शोभा बढ़ता है। बसन्त के मौसम में इस उद्यान का सौन्दर्य और निखार अपने पूरे यौवन पर होता है। इसे स्वतन्त्रता सैनानी जाकिर हुसैन के नाम पर जाकिर हुसैन रोज गार्डन भी कहा जाता है। राजकीय संग्रहालय एवं कलादीर्घा -राजकीय संग्रहालय एवं कलादीर्घा शहर के सेक्टर 10 में स्थित है। इसके भवन का वास्तुशिल्प देखते ही बनता है। भवन में विजिटिंग रूम, प्राकृतिक संरक्षण प्रयोगशाला, अस्थाई प्रदर्शनी हाॅल , आडिटोरियम एवं केफेटिरिया बनाया गया है।
संग्रहालय की कलादीर्घा में गांधार कला की पत्थरों की मूर्तियां, धातु की मूर्तियां, पुरानी चट्टाने, अन्य शिल्पकृतियां, पुरालेख, मुद्रा एवं अन्य सजावटी प्राचीन वस्तुओं का एक अच्छा संग्रह देखने योग्य है। एक अन्य कलादीर्घा में प्राचीन व आधुनिक कला प्रदर्शनी विशेष रूप से दर्शनीय है। यहीं पर शहर के विकास से सम्बन्धित स्केच, रेखा चित्र, पेटिंग्स, फोटोग्राफ, माॅडल्स आदि भी देखने को मिलते हैं। चण्डीगढ़ शहर के इन प्रमुख एवं महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों के साथ-साथ सेक्टर 14 में बना पंजाब विश्वविद्यालय का भवन एवं इसके परिसर में बना बाॅटनिकल गार्डन, सेक्टर 10 में स्वस्थ रहने के लिए खुली हवा में घूमने के लिए खूबसूरत लेयर वेली, सेक्टर 3 में विभिन्न रंग एवं प्रजातियों के बोगन बेलियां फूलों का 20 एकड़ में बना बाग, सेक्टर 33 में करीब 10 एकड़ में रंग-बिरंगे फूलों का बना टेरस गार्डन एवं पौधों तथा झाड़ियों से बनी जीव जन्तुओं की आकृति वाला टेपियारी पार्क तथा सेक्टर 35 में विशेष रूप से बच्चों के लिए बना पार्क दर्शनीय स्थल हैं। गुरूद्वारा श्री केशगढ़ साहिब चंडीगढ़ से 80 किलोमीटर दूर आनंदपुर में स्थित यह गुरूद्वारा 9वें सिक्ख गुरू तेगबहादुर द्वारा 1664 ईस्वी में स्थापित किया गया था। यह पांच तख्त में से एक हैं। इसे आनंदपुर साहिब गुरूद्वारे के रूप में भी प्रसिद्धी मिली है। यहां 1936-41 में तख्त केसरगढ़ बनवाया गया तथा इस बड़े भवन के सामने एक वाटिका भी लगाई गई। बताया जाता है कि गुरू गोविन्द सिंह यहां 25 वर्ष रहे। यहां होला मोहल्ला नाम से होली का पर्व तथा अप्रेल में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
अमृतसर
सिक्ख समुदाय के आस्था स्थलों में महत्वपूर्ण तीर्थ सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित श्री हरमिन्दर साहिब गुरूद्वारा, स्वर्ण मंदिर अमृतसर शहर में अमृत सरोवर के मध्य स्थित है। सरोवर में गुरूद्वारे तक पहुंचने के लिए किनारे से एक पुल बनाया गया है। गुरूद्वारे के ऊपर सोने की पतरी का कार्य किया गया है और इसी कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। गुरूद्वारे के साथ मंदिर शब्द जुड़ने से यह आपसी सद्भाव का बड़ा केन्द्र बन गया है। गुरूद्वारे में प्रवेश के लिए पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण में चार द्वार बनाए गए हैं। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए बनी सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी सभी घटनाओं और इसका पूरा इतिहास लिखा गया है। गुरूद्वारे में सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ’गुरू ग्रंथ साहिब’ को ऊंचे आसन पर रखा गया है, जहां श्रृद्धालु मत्था टेककर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और मुख्य प्रसाद लंगर चखते हैं।
गुरूद्वारा एक चैकोर आकार के प्लेटफार्म पर 52 मीटर ऊंचाई में बना है। प्रथम मंजिल पर बने भवन को ’शीष महल’ कहा जाता है, जिसमें दीवारों और छतों पर कांच की कारीगरी का अद्भुत कार्य किया गया है। गुरूद्वारा 400 साल पुराना बताया जाता है तथा इसका नक्शा स्वयं गुरू अर्जुनदेव ने तैयार किया था। यह गुरूद्वारा शिल्प-सौन्दर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी का कार्य देखते ही बनता है। गुरूद्वारे में पूरे दिन गुरूवाणी स्वर लहरी गूंजती है। भक्तगण पहले सरोवर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और फिर सरोवर में स्नान कर ’गुरू ग्रंथ साहिब’ के दर्शन करने गुरूद्वारे में पहुंचते हैं। गुरूद्वारे के चार द्वारों में एक द्वार गुरू रामदास सराय का है। सराय में 24 घंटे लंगर चलता है। मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर स्वर्ण जड़ित अकाल तख्त है। इसमें एक भूमिगत तल एवं पांच अन्य तल बने हैं। यहां एक सभागार और संग्रहालय भी बनाया गया है। मंदिर में रोशनी की सुंदर व्यवस्था की गई है। रात्रि में रोशनी में नहाया गुरूद्वारा और सरोवर में झांकता उसका प्रतिबिम्ब एक सुंदर आभा बिखेरता है, जो अत्यन्त मनमोहक लगता है।
परिसर में जलाशय के चारों ओर अनेक तीर्थस्थल बनाए गए हैं। गुरूद्वारे के सरोवर की नियमित सफाई की जाती है। प्रकाश उत्सव, बैसाखी, लोहड़ी, गुरूनानक पर्व, शहीदी दिवस एवं संक्रांति जैसे पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। समीप ही 9 मंजिला इमारत गुरू का महल है। इस स्थान पर स्वर्ण मंदिर निर्माण के समय गुरू प्रवास करते थे। गुरूद्वारा गुरू हरगोविन्द सिंह के पुत्र की याद में बनवाया गया है। यहां दीवारों पर गुरूनानक देव की जीवनगाथा एवं सिक्ख संस्कृति से संबंधित चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। इसके पास ही माता कौलांजी गुरूद्वारा है। यह गुरूद्वारा उस दुखियारी महिला को समर्पित है, जिसको गुरू हरगोविन्द सिंह ने यहां रहने की अनुमति प्रदान की थी। इसके पास ही केसरबाग में गुरूद्वारा सारागढ़ी साहिब बना है।
इस गुरूद्वारे को सिक्ख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए 1902 ईस्वी में बनवाया गया था, जो एंग्लो-अफगान युद्ध में शहीद हुए थे। गुरूद्वारे के आसपास अन्य स्थान थड़ा साहिब, बेर बाबा गुढ्ढा जी, गुरूद्वारा लाची, बार गुरूद्वारा, शहीद बंगा बाबा दीप सिंह गुरूद्वारा बने हैं।जलियाँ वाला बाग – शहीदों की याद में बना शहीद स्मारक अंग्रेजों की क्रूरता की कहानी कहता है, जब ब्रिटिश जनरल डायर ने 13 अप्रैल 1919 को यहां 2000 निर्दोष महिला-पुरूष एवं बच्चों पर गोलियां चलवा कर सैकड़ों को मौत के घाट उतार दिया था। यहां शहीद हुए लोगों की याद में बने बाग में एक शहीद कुआं भी बना है। गोलियों से जान बचाने के लिए अनेक लोग इस कुएं में कूद गये थे।
हाथी गेट मंदिर -अमृतसर में हिन्दुओं का प्राचीन एवं पवित्र मंदिर यहां स्थित है। यहीं पर देवी दुर्गा को समर्पित दुग्र्याना मंदिर लोहगढ़ गेट के पास स्थित है। इसके दरवाजे नक्काशीदार चाँदी से बने होने के कारण इसे रजत मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण भी स्वर्ण मंदिर से मिलती जुलती शैली पर करवाया गया है। जलाशय के मध्य में सोने से मंडा गर्भगृह बनवाया गया है। यहीं परिसर में मंदिर के पीछे हनुमान मंदिर तथा सीता मंदिर भी बनाया गया है। बाघा बाॅर्डर अमृतसर रेलवे स्टेशन से 28 कि.मी. दूर स्थित है भारत एवं पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बाघा बाॅर्डर। यहां भारत की सीमा सुरक्षा बल एवं पाकिस्तान रेंजर्स की टुकड़ियां रहती हैं। बाघा बाॅर्डर पर हर शाम यह टुकड़ियां इकट्ठी होती हैं। विशेष मौकों पर मुख्य रूप से 14 अगस्त के दिन जब पाकिस्तान का स्वतन्त्रता दिवस समाप्त होता है और भारत के स्वतन्त्रता दिवस की सुबह होती है उस शाम यहां शांति के लिए जागरण किया जाता है। बाघा बाॅर्डर को देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुँचते हैं।
कपूरथला
पंजाब राज्य का कपूरथला जिला एक प्रमुख शहर एवं जिला मुख्यालय है। इसका नाम इसके संस्थापक नवाब कपूर सिंह के नाम पर पड़ा। यह शहर अपनी खूबसूरत इमारतों और सड़कों के लिए जाना जाता है। यहां पर्यटकों के लिए अनेक दर्शनीय स्थल कपूरथला के सुनहरे इतिहास की गवाही देते हैं। गुरूद्वारा बेर साहिब – सुल्तानपुर लोधी तहसील में स्थित सिक्खों का प्रमुख धार्मिक स्थल गुरूद्वारा बेर साहिब सिक्ख अनुयायियों के बीच विशेष महत्व रखता है। बताया जाता है कि गुरूनानक देव यहां आये थे और उन्होंने जीवन के 14 वर्ष यहां बिताये थे। जब वे यहां की बेन नामक छोटी नदी में स्नान कर रहे थे तब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
इस जगह का नाम यहां लगाये गये बेर के पेड़ पर रखा गया। माना जाता है कि यह पेड़ भी स्वयं गुरूनानक द्वारा लगाया गया था। गुरूद्वारे का निर्माण एक ऊँची चैकी पर अष्टकोणीय काॅलम तथा एक अलंकृत गेलेरी के साथ महाराजा जगजीत सिंह द्वारा किया गया था। दीवारों और छतों पर फूलों के विभिन्न अलंकरण देखने को मिलते हैं।पंज मंदिर -ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के इस मंदिर का निर्माण सरदार फतेह सिंह द्वारा करवाया गया था। भारत का यह दूसरा ऐसा मंदिर है जहां सूर्य भगवान की प्रतिमा पर हर सुबह सूर्य की किरण सीधी पड़ती है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के अनेक मंदिर बने हुए हैं। मंदिरों की प्रतिमाएं अद्भुत हैं। विशेष बात यह है कि चाँदी के दरवाजे से भक्त सभी मूर्तियों को प्रणाम कर सकता है। पंज मंदिर में ब्रह्मा जी की दुलर्भ प्रतिमा विराजित है। मूरिश मस्जिद-यहाँ मोरक्को के मराकेश की विशाल मस्जिद की तर्ज पर कपूरथला में बनी मूरिश मस्जिद दर्शनीय स्थल हैं। मस्जिद का निर्माण कपूरथला के आखिरी शासक महाराज जगतजीत सिंह के समय फ्रांसीसी वास्तुकार मोनेयर एम. मेंटिक्स ने करवाया था। मस्जिद के अन्दरूनी गुम्बद की सजावट लाहौर के मायो कला विद्यालय के कलाकारों द्वारा की गई है। इस मस्जिद को वर्तमान में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। जिसकी देख-रेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की जाती है।शालीमार बाग, जगतजीत पैलेस भी यहां के दर्शनीय स्थल हैं।