दशकों से खगोलविद ब्रह्मांडीय गुत्थियों को सुलझाने में प्रयासरत हैं और इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिलती रही है। एक नये अध्ययन में खगोल-विज्ञानियों ने इलेक्ट्रॉन के समकक्ष प्रतिद्रव्य (Antimatter) की अधिकता का अवलोकन किया है, जिन्हें पॉजिट्रॉन कहा जाता है। जिस प्रकार कोई पदार्थ कणों का बना होता है, उसी प्रकार प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर प्रतिकणों से मिलकर बना होता है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि प्रतिद्रव्य में 10 गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट्स (जीईवी) से अधिक ऊर्जा होती है। एक व्यापक अनुमान के अनुसार यह 10 अरब वोल्ट की बैटरी में धनात्मक रूप से आवेशित एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा है। हालांकि, यह 300 से अधिक जीईवी ऊर्जा वाले पॉजिट्रॉन की संख्या के अनुमान से कम है। 10 और 300 जीईवी के बीच की ऊर्जा वाले पॉजिट्रॉन के इस व्यवहार को खगोलविदों द्वारा ‘पॉजिट्रॉन अतिरेक’ की संज्ञा दी गई है
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से संबंद्ध रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बेंगलूरू के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन किया गया है। शोध में कहा गया है कि हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे गुजरती हुई कॉस्मिक किरणों व उन पदार्थों से अंतःक्रिया करती है, जो इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन जैसी अन्य कॉस्मिक किरणों का उत्पादन करते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये कॉस्मिक किरणें ‘पॉजिट्रॉन अतिरेक’ प्रक्रिया का मूल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से संबंद्ध रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बेंगलूरू के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन किया गया है। शोध में कहा गया है कि हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे गुजरती हुई कॉस्मिक किरणों व उन पदार्थों से अंतःक्रिया करती है, जो इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन जैसी अन्य कॉस्मिक किरणों का उत्पादन करते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये कॉस्मिक किरणें ‘पॉजिट्रॉन अतिरेक’ प्रक्रिया का मूल हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मिल्की-वे में आण्विक हाइड्रोजन के विशालकाय बादल होते हैं, जो नये तारों के गठन का स्रोत हैं। ये नये तारे सूर्य के द्रव्यमान से 10 लाख गुना से बड़े आकार के हो सकते हैं, और उनका दायरा 600 प्रकाश-वर्ष की दूरी तक विस्तृत हो सकता है। सुपरनोवा विस्फोटों में उत्पन्न कॉस्मिक किरणें पृथ्वी तक पहुँचने से पहले इन बादलों से होकर गुजरती हैं। यही कॉस्मिक किरणें आण्विक हाइड्रोजन के साथ अंतःक्रिया करती हैं। अंतःक्रिया से ये अन्य कॉस्मिक किरणों को जन्म दे सकती हैं। बादलों से गुजरने की प्रक्रिया के दौरान इनके मूल आकार का क्षरण होता है और इस दौरान परस्पर मिश्रण भी होता है। इसके साथ ही, बादलों की ऊर्जा के संपर्क में आकर वे अपनी ऊर्जा खोने लगती हैं। हालांकि, इसके बाद भी वे पुनः सक्रिय हो सकती हैं।
शोधकर्ताओं में शामिल अग्निभा डे सरकार ने कहा है कि “इस अध्ययन को व्यापक स्वरूप प्रदान करने के लिए तीन अलग-अलग कैटलॉग का पालन किया गया है। संयुक्त कैटलॉग में हमारे सूर्य के निकटवर्ती पड़ोस में दस आण्विक बादल होते हैं। ये गेलेक्टिक बादल खगोलविदों को एक महत्वपूर्ण इनपुट प्रदान करते हैं। यह इनपुट गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट वाली कॉस्मिक किरणों की संख्या से संबंधित है। ये आंकड़े उन्हें पृथ्वी तक पहुँचने वाले पॉजिट्रॉन की अधिक संख्या निर्धारित करने में मदद करते हैं।”
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जिन कंप्यूटर कोड का उपयोग किया है, वे गेलेक्टिक आण्विक बादलों की सटीक संख्या को मद्देनजर रखते हुए गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा में पॉजिट्रॉन की उपस्थित संख्या को पुन: उत्पन्न करने में सक्षम थे। अग्निभा डे सरकार ने कहा, “हमने उन सभी तंत्रों पर विचार किया है, जिनके माध्यम से कॉस्मिक किरणें आण्विक बादलों के साथ अंतःक्रिया करती हैं, ताकि आसपास के आण्विक बादल पॉजिट्रॉन अतिरेक की परिघटना में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।”
यह कंप्यूटर कोड न केवल पॉजिट्रॉन की अधिकता, बल्कि सही ढंग से प्रोटॉन, एंटी-प्रोटॉन, बोरॉन, कार्बन और कॉस्मिक किरणों के अन्य सभी घटकों के स्पेक्ट्रा को सही रूप में पुनः प्रस्तुत करने में सक्षम है। अग्निभा डे सरकार ने विरोधाभासी पल्सरों का उल्लेख करते हुए मौजूदा उपलब्ध स्पष्टीकरणों के साथ इसकी तुलना करते हुए कहा, “हमारी पद्धति बिना किसी भी विरोधाभास के देखी गई सभी संख्याओं को बताती है।”
शोधकर्ताओं ने आण्विक बादलों की सरल ज्यामितीय संरचनाओं पर भी विचार किया है, जबकि वास्तविक आण्विक बादलों में जटिल ज्यामिति होती है। हालांकि, शोधार्थियों के समक्ष अभी भी कई चुनौतियां हैं और उनकी योजना जल्द से जल्द इन चुनौतियों से पार पाने की है।
इस अध्ययन में अग्निभा डे सरकार के अलावा सायन विश्वास और नयनतारा गुप्ता शामिल हैं। यह अध्ययन ‘जर्नल ऑफ हाई एनर्जी एस्ट्रोफिजिक्स’ में प्रकाशित किया गया है।
साभार- इंडिया साईँस वायर से