दो वर्ष तक चलेंगे पं. माधवराव सप्रे पुण्य स्मरण के कार्यक्रम
जन्मभूमि पथरिया में लगेगी सप्रे जी की प्रतिमा
नई दिल्ली। ‘‘पं. माधवराव सप्रे जी के मूल्य वर्तमान पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हैं। हम सभी को सप्रे जी के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि स्वावलंबन के बिना आजादी का कोई मोल नहीं है।’’ यह विचार केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने पं. माधवराव सप्रे की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किए। यह कार्यक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र तथा भारतीय जन संचार संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया। इस अवसर पर महत्वपूर्ण वैचारिक पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ के माधवराव सप्रे जी पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने की। वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार श्री आलोक मेहता, श्री विश्वनाथ सचदेव, श्री जगदीश उपासने, माधवराव सप्रे जी के पौत्र डॉ. अशोक सप्रे, इंदिरा गांधी कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी एवं भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
‘भारत का वैचारिक पुनर्जागरण और माधवराव सप्रे’ विषय पर अपनी बात रखते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पं. माधवराव सप्रे की जन्मस्थली पथरिया में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भाषा की चुनौती हमारे सामने है और ये बढ़ती जा रही है। इसलिए आज हमें सप्रे जी के लेखन से प्रेरणा लेनी चाहिए। हिंदी पत्रकारिता और हिंदी भाषा के विकास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने कहा कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण एक तरह से नए ज्ञान के उदय की प्रक्रिया भी है। सप्रे जी ने यह काम अनुवाद के माध्यम से किया और समर्थ गुरु रामदास की प्रसिद्ध पुस्तक ‘दासबोध’ का अनुवाद किया। उन्होंने कहा कि सप्रे जी का पूरा जीवन संघर्ष और साधना की मिसाल है। उनके निबंधों को पढ़ने पर मालूम होता है कि उनके ज्ञान का दायरा कितना व्यापक था।
माधवराव सप्रे जी के पौत्र डॉ. अशोक सप्रे ने कहा कि मेरे दादाजी ने मराठी भाषी होते हुए भी हिंदी भाषा के विकास के लिए कार्य किया। उनका मानना था कि जब देश स्वतंत्र होगा, तो भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है। इससे ये पता चलता है कि वे कितने दूरदर्शी थे।
वरिष्ठ पत्रकार श्री आलोक मेहता ने कहा कि समाज सुधारक के रूप में सप्रे जी का महत्वपूर्ण योगदान है। अपने लेखन से उन्होंने सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। उन्होंने जन जागरुकता के लिए कहानियां लिखी और समाचार पत्र प्रकाशित किए। दलित समाज और महिलाओं के लिए किए गए उनके कार्य अविस्मरणीय हैं।
श्री विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि सप्रे जी को पढ़कर यह आश्चर्य होता है कि किस तरह उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से एक नई व्यवस्था बनाने की कोशिश की थी। किस तरह उन्होंने एक ऐसे समाज की रचना करने की कोशिश की, जहां उनकी आने वाली पीढ़ी सुख और शांति के साथ रह सके। यही महापुरुषों की विशेषता होती है कि वे अपने समय से दो कदम आगे चलते हैं। श्री जगदीश उपासने ने कहा कि माधवराव सप्रे हिंदी नवजागरण काल के अग्रदूत थे। पत्रकारिता, साहित्य और भाषा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्यों का समग्र आंकलन अभी तक नहीं हो पाया है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए इंदिरा गांधी कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि माधवराव सप्रे देश के पहले ऐसे पत्रकार थे, जिन्हें राजद्रोह के आरोप में वर्ष 1908 में जेल हुई। उन्होंने साहित्य की हर धारा में लिखा। उनके लेख आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं। अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि सप्रे जी की प्रेरणा और भारतबोध से हमारा देश सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरेगा और फिर से जगत गुरु के रूप में अपनी पहचान बनाएगा। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अचल पंड्या ने किया।
प्रो. संजय द्वेिवेदी
Prof. Sanjay Dwivedi
महानिदेशक
Director General
भारतीय जन संचार संस्थान,
Indian Institute of Mass Communication,
अरुणा आसफ अली मार्ग, जे.एन.यू. न्यू केैम्पस, नई दिल्ली.
Aruna Asaf Ali Marg, New JNU Campus, New Delhi-110067.
मोबाइल (Mob.) 09893598888