मॉरीशस में बैठकर भारत की अध्यात्मिक, सांस्कृतिक धार्मिक व रामायण की ध्वजा फहराने वाले राजेंद अरुण का आज मॉरीशस में निधन हो गया।
29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जन्मे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। वे 1970 से ही हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के सानिध्य में कई हिंदी समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में पत्रकारिता के दायित्वों का निर्वहन किया। इलाहाबाद से प्रकाशित जनता की आवाज के प्रधान संपादक बने और 1973 में विश्व पत्रकारिता सम्मेलन में भाग लेने मॉरीशस गए। वहां, हिंदी भाषा का खूब प्रचार-प्रसार किया। इससे प्रभावित होकर मॉरीशस के तत्कालीन राष्ट्रपति शिवसागर रामगुलाम ने संसद में कानून बनाकर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए रामायण सेंटर की स्थापना कर दी और हिदी अकादमी एवं रामायण सेंटर का अरुण को अध्यक्ष बना दिया। जहां से उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें हिदी में लिखकर भाषा का प्रसार किया। डॉ. शिवसागर रामगुलाम ने उन्हें अपने हिन्दी पत्र ‘जनता’ का सम्पादक बनाकर उनसे मॉरिशस में ही रहने का निवेदन किया, जिसे सहज-सरल राजेंद्र जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। मॉरिशस में रहते हुए उन्होंने धर्मयुग, कादंबिनी, साप्ताहिक हिंदुस्तान से लेकर कई प्रमुख अखबारों में मॉरीशस की साहित्यिक सांस्कृतिक व रचनात्मक गतिविधियों के बारे में रोचक लेख लिखकर मॉरीशस व भारत के साहित्य के जगत में भी अपनी खास पहचान बनाई।
सन् 1982 में उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। एम.बी.सी. रेडियो पर उन्होंने रामायण की व्याख्या पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम ‘मंथन’ आरंभ किया। लोगों ने इसे खूब सराहा। यह कार्यक्रम अब तक ‘मानस मंथन’ नाम से जारी है। उनके रेडियो कार्यक्रम की लोकप्रियता से ‘रामकथा’ का आरंभ हुआ। सन् 2000 के लगभग से श्री अरुणजी के मन में यह विचार आने लगा कि एक संस्था बनाकर रामकथा का विश्व स्तर पर प्रचार-प्रसार करें। सन् 2001 में उनके इस विचार को ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना के साथ ठोस आधार प्राप्त हुआ।
मॉरीशस में हिंदी व रामायण के प्रचार प्रसार के साथ ही उन्होंने उन्होंने अपने गांव में भी रामायण सेंटर की स्थापना की।
पंडित राजेंद्र अरुण तथा हिंदू संगठनों के प्रयत्नों से प्रधान मंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने 15 अगस्त 2000 को भारत के स्वतंत्रता दिवस एवं तुलसी जयंती के पावन अवसर पर रोज़-बेल में जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के सामने रामायण सेंटर का शिलान्यास किया।
मॉरीशस की संसद ने 2001 में इसके लिए एक कानून बनाकर रामायण सेंटर की स्थापना को कानूनी रूप दे दिया था, जो अब हिंदू धर्म और रामायण अध्ययन का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बन चुका है। मॉरीशस की संसद में मुस्लिम, ईसाई सहित दूसरे संप्रदाय के लोगों ने एक सुर से रामायण सेंटर बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया था।
जब भारत में राम जन्म भूमि पर बनने वाले मंदिर को लेकर विवाद चरम पर था तब मॉरीशस में रामायण सेंटर की स्थापना करने वाले राजेंद्र अरुण ने संकल्प लिया कि वे मॉरीशस में एक भव्य राम मंदिर बनवाएंगे। उनके संकल्प को सिध्दि दी मुंबई के श्री भागवत परिवार ने। श्री भागवत परिवार के पं. वीरेन्द्र याज्ञिक ने मुंबई के लोगों से अरुणजी के साथ संपर्क किया और राम मंदिर के लिए 6 करोड़ रुपये एकत्र हो गए। इस राशि से मॉरीशस में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ। इस राम मंदिर के निर्माण का सबसे रोचक पक्ष ये रहा कि मॉरीशस की संसद ने इस मंदिर के निर्माण के लिए बकायदा संसद में एक बिल पास किया ताकि भविष्य में राजनीतिक परिस्थितियाँ बदल जाने पर मंदिर पर कोई आँच न आए।
मॉरीशस दुनिया के उन गिनेचुने देशों में है जहां तकरीबन आधी आबादी (52 प्रतिशत) आबादी हिंदू है. लेकिन यहां दूसरे धर्म के लोग भी अच्छी-खासी तादाद में रहते हैं. तकरीबन 30 प्रतिशत लोग ईसाई हैं और मुसलमानों की आबादी 17 प्रतिशत है
इस रामायण सेंटर के शुरु होने का ये प्रभाव हुआ कि रामायण को वहां के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है. रामायण की इसी लोकप्रियता ने इस देश में रामायण सेंटर की नींव रखी है.
रामायण सेंटर द्वारा पिछले सालों में रामायण और हिंदू धर्म से जुड़े कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को आयोजन किया गया है।
मॉरीशस में बने रामायण सेंटर के माध्यम से पांच से पंद्रह साल के बच्चों को हिंदू दर्शन और रामायण के जीवन मूल्यों की शिक्षा दी जाती है. यहां रामायण पर शोध के लिए संदर्भ ग्रंथों की एक विशाल लायब्रेरी भी है. विश्व में रामायण के जितने संस्करण हैं, वे सब इस संस्थान में उपलब्ध हैं. इसके अलावा रामायण की शिक्षाओं को आज के संदर्भों में समझने के लिए सेंटर में लाइट एंड म्यूजिक शो भी आयोजित किए जाते हैं.
राजेंद्र अरुण का मानना था कि , ‘रामायण सेंटर सिर्फ एक धर्म के लोगों लिए नहीं है. यहां आकर कोई भी रामायण के पात्रों से जीवन मूल्यों की शिक्षा ले सकता है।’
रामायण सेण्टर कार्य की दृष्टि से दो विभाग हैं, पहला अध्ययन केन्द्र है, जिसके अन्तर्गत रामायण का अध्ययन, अनुसंधान, हिंदू संस्कृति और संस्कार का प्रचार‡प्रसार तथा भारतीय तत्व दर्शन का मॉरीशस तथा अन्य भारत‡वंशी बहुल देशों जैसे सूरीनाम, मालदीव, त्रिनिदाद आदि में अध्ययन की सुविधाएं उपलब्ध कराना, दूसरा आध्यात्मिक केन्द्र है, जिसके अन्तर्गत रामायण सेण्टर में विशाल श्रीराम मन्दिर का निर्माण तथा उसका परिचालन एवं रख-रखाव, साथ ही आध्यात्मिक केन्द्र के अन्तर्गत मॉरीशस में बोडस संस्कार को प्रचारित करना, पूजा‡पाठ की पद्धति को शुद्धता के साथ स्थापित, करना तथा अनुष्ठान, यज्ञ, हवन आदि को सही प्रकार से कराने के लिए पंडितों, आचार्यों को प्रशिक्षित करना।
इस क्रम में रामायण सेण्टर के अध्ययन केन्द्र की स्थापना वर्ष 2007 में हो गयी थी, जिसका उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमन्त्री माननीय श्री नवीन राम गुलाम द्वारा किया गया था। इस समय रामायण सेण्टर में रामायण के अध्ययन, गायन शैली तथा मंचन की कक्षाएं चल रही हैं, जिसमें 100 विद्यार्थी नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
बाद में रामायण सेण्टर के आध्यात्मिक केन्द्र के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया, जिसमें एक विशाल राम मन्दिर है। इसके तल मंजिल में आध्यात्मिक सभागार की व्यवस्था, सत्संग, प्रवचन, विवाह तथा अन्य सामाजिक‡सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए की गयी है।
‘मॉरीशस के तुलसी’ के रूप में पूरी दुनिया में जाने पहचाने वाले पं. राजेंद्र अरुण एक भव्य सांस्कृतिक विरासत छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गए।
‘मॉरीशस के तुलसी’ पं. राजेंद्र अरुण के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्यक् रूप का दिग्दर्शन करानेवाला संपूर्ण ग्रंथ इस लिंक पर उपलब्ध है।
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