डॉ. भवानीशंकर मिश्र ‘विरंचि’ ब्रह्मपुर ओडिशा के व्दारा रचित प्रथम गजल संग्रह में अपने सरल व सहज रूप में इस संग्रह को सभी वर्ग के पाठको के लिए लिखा है, अत्यंत ही सराहनीय है। इसमें उन्होंने समाज के सरोकार के हर पक्ष को समाहित किया है।इस संग्रह की विशेषताओं में आपका आध्यात्मिक पक्ष,सामाजिक ,सभ्यता,संस्कृति,संस्कार और उससे निहित सभी महत्वूर्ष विषयों को बहुत कम शब्दो में विस्तार से बाहुलता के साथ सम्मिलित किया है ।इस संग्रह में मानव के संघर्ष को दर्शाते हुए व्यक्तिगत निहित स्वार्थ से अलग लोकहितकारी बातों के संदेश का समावेष भी है।शब्दों के चयन में बहुत विविधता भी है प्रचलित अप्रचलित उर्दू के शब्दों का समावेश किया गया है, जिससे रचनाओं का बहुत ही सुंदर अंलकरण भी हुआ ।इस संग्रह में एक बात कुछ कमजोर रही की किसी भी रचना को लेखक ने शीर्षक न देकर कुछ कमी कर दी ।मेरा मानना है कि शीर्षक अगर हो तो रचना के मूल भाव तक पहुँचने में पाठक को सुविधा होती है।
लेखक ने अपने उद्गार मे यह स्वीकार किया है कि उनके इस प्रयास में सहयोग आदरणीय डा.राजेन जयपुरिया जी का रहा है।
इस संग्रह के कुछ मेरी पंसदगी के शेर
करेगा मुआफ हमें कोई क्यों कहो तो,
जबकि सबको सताने में हम लगे है ।
श्रध्दा विश्वास के सिवा
क्या ढूंढता तू भगत में।
हो गया है ये क्या मैं नहीं जानता
आदमी आदमी ही को नहीं मानता।
संपर्क
लिंगम चिरंजीव राव
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