Monday, November 25, 2024
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देश के गौरव का खजाना है भारतीय वायुसेना संग्रहालय

अगर आप भारतीय वायुसेना और उसके गौरवशाली इतिहास के बारे में जानना चाहता हो तो आपको भारतीय वायुसेना संग्रहालय, पालम जरूर देखने जाना चाहिए। पालम हवाई अड्डे के परिसर से सटे इस संग्रहालय की स्थापना 1967 ई.में की गई थी। संग्रहालय में प्रवेश करते ही पहली दीर्घा में भारतीय वायुसेना के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानकारी दी गई है। सामने शील्ड्स रखी हैं। वहीं पर भारतीय वायुसेना स्वर्ण जयंती कैप्सूल रखा है, जिसे भारतीय वायुसेना के शताब्दी वर्ष 2032 में खोला जाएगा। एक शोक सभा में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉं. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा वायुसेना को प्रदान किया गया ध्वज ‘प्रेसीडेंट कलर अवॉर्ड’ भी यहां देख सकते हो। बाईं ओर विशाल वायुयान आकाश की ओर सर उठाए खड़ा है तो दूसरी ओर पृथ्वी से आकाश में मार करने वाली मिसाइल खड़ी है। इसके अलावा भारतीय वायुसेना के प्रयोग में आने वाले विभिन्न प्रकार के विमान हैं, जिनमें सी-47 व एयर स्पीड ऑक्सफोर्ड आदि विमान प्रमुख हैं। वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले यंत्र, उपकरण व हथियार आदि भी यहां दर्शाए गए हैं। यहीं पर विभिन्न अवसरों पर देश-विदेशों से प्राप्त तलवारें, बंदूकें, भूटान नरेश द्वारा भेंट की गई तलवार, पाकिस्तानी छाताधारी सैनिकों से जब्त की गईं स्टेनगन, पिस्तौल भी प्रदर्शित की गई हैं।

संग्रहालय की प्रथम गैलरी के बाद वायु सेना संग्रहालय में एक एनैक्सी तथा एक हैंगर है। एनैक्सी विंग कमांडर (बाद में एयर मार्द्गाल) एस मुखर्जी, ओ बी ई, स्क्वाड्रन लीडर (बाद में एयर कमोडोर) मेहर सिंह, एम वी सी, डी एस ओ, विंग कमांडर (बाद में एयर मार्द्गाल) ए एम इंजीनियर, डी एफ सी तथा एयर चीफ मार्द्गाल अर्जन सिंह, डी एफ सी की भव्य तस्वीरों से सुसज्जित है। ये समर्पित अफसर भारतीय वायु सेना के अग्रणी थे। संग्रहालय में रखा हुआ वायु सेना का ध्वज एक अप्रैल 1954 को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा भारतीय वायु सेना को प्रदान किया गया था।

एनैक्सी तीन भागों में विभाजित है। प्रथम भाग में रिसालपुर (अब पाकिस्तान में) में वायु सेना के प्रारंभिक दिनों का इतिहास फोटोग्राफ के माध्यम से दद्गर्ााया गया है और साथा ही शीर्षास्थ वायु योद्धाओं के नवीनतम ग्रुप फोटोग्राफ भी दद्गर्ााए गए हैं। भारतीय वायु सेना तथा अन्य देशों के वायुयानों के कुछ मॉडल वायुयानों को भी देखा जा सकता है। यहां पर लेफ्टिनेंट (मानद ग्रुप कैप्टन) एच एस मलिक, लेफ्टिनेंट एस जी वेलिंगकर तथा लेफ्टिनेंट आई एल रॉय की तस्वीरें हैं जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हवाई हमलों में अपना लोहा मनवाया था, उस समय वे रॉयल फ्लाइंग कोर में थे। लेफ्टिनेंट रॉय ने अठ्‌ठारह दिनों में शुगमन के नौ हवाई जहाजों को मार गिराया। वह डीएफसी से नवाजे जाने वाले प्रथम भारतीय अफसर थे किन्तु यह पुरस्कार उन्हें मरणोपरांत दिया गया।

वायुयान खड़े करने का विशाल अर्ध गोलाकार छत वाला स्थान हैंगर कहलाता है। इसमें दर्शकों को 29 तरह के विमानों को देखने को मिलते हैं, जो वायुसेना में समय-समय पर इस्तेमाल किए गए हैं। इनमें सबसे पुराना विमान 1933 में भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। विश्व में यह अपनी तरह का एकमात्र विमान है।

भारतीय सैन्य उड्डयन यादगारों का एक विशाल संग्रह है।इसके अलावा भारतीय वायु सेना का चमत्कारिक इतिहास भी दिखाया गया है जो उन बहादुर लोगों के लिए श्रद्धांजलि है जिन्होंने लड़ाइयां लड़ी और देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। संग्रहालय को आंतरिक और बाहरी गैलरियो में बाँटा गया है और यहाँ वस्तुओं का आश्चर्यजनक संग्रह है।

संग्रहालय की आंतरिक प्रदर्शन गैलरी में रोचक वस्तुएँ जैसे भारतीय वायुसेना के व्यक्तिगत हथियार,यूनीफॉर्म(गणवेश), फोटोग्राफ्स और अन्य वस्तुएँ जिन्हें वर्ष 1932 में भारतीय वायुसेना की स्थापना के समय से एकत्र किया गया है, प्रदर्शित किये गए हैं। यहाँ प्रदर्शित किये गए कुछ चित्रों में शामिल हैं: पकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 1971 के भारत पाक युद्ध के आत्मसमर्पण दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर का चित्र और दुश्मन के ठिकानों पर हमला करते हुए विमानों की तस्वीरें।

बाहरी प्रदर्शन गैलरी में कुछ रोचक वस्तुओं जैसे राडार उपकरण, हथियाए गए वाहन युद्ध में जीती गई ट्रॉफियां और अन्य। इसके अलावा पर्यटक यहाँ निर्मलजीत सिंह सेखों – एक उड़ान अधिकारी की मूर्ति भी देख सकते हैं और जिन्हें अपने असाधारण उड़ान कौशल के कारण और दो दुश्मनों को वीरतापूर्वक मार गिराने के कारण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

इनके साथ ही इस संग्रहालय में यूनीफॉर्म, तलवारें और वायु सेना अधिकारियों के हथियार, विभिन्न प्रारूपों के टैंक, राइफल, पिस्टल, गन और रिवॉल्वर भी प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं। भारतीय वायु सेना जैसी लड़ाकू सेना के लिए यह जरूरी है कि वह अपने गौरवशाली इतिहास और परम्परा से जुड़ी रहे तथा इसके लिए यह संग्रहालय मंदिर की तरह है जो भारतीय वायु सेना की गौरवमयी स्मृतियां संजोए हुए है।

यह संग्रहालय पूरे सप्ताह खुलता है, लेकिन आम लोगों के लिए सोमवार और मंगलवार को गैलरियां बंद रहती हैं। संग्रहालय में प्रवेश नि:शुल्क है। यहां एक बिक्री कक्ष भी है जहां से विभिन्न प्रकार के विमानों के मॉडल भी खरीदे जा सकते हैं। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन या अंतरराज्यीय बस टर्मिनल से टैक्सी/ऑटो से संग्रहालय जाने में करीब 45 मिनट की दूरी तय करनी होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं व राजस्थान जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं)

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