Monday, December 23, 2024
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अमरीकी विश्वविद्यालय में है हिन्दी में एमबीए करने की सुविधा

दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दूसरे सत्र में आज ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण-समस्याएँ और समाधान’ का समापन हुआ। संयोजक और महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, श्री सतीश मेहता ने अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं। वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के पूर्व अतिथि आचार्य और व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रोफेसर प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता में आज के सत्र में भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, स्विट्जरलेण्ड, थाईलेण्ड, जर्मनी आदि से आये अनेक हिन्दी विद्वान ने अपने विचार रखे।

व्यापारिक संबंध बढ़ाने अमेरिका में होता है हिन्दी में एम.बी.ए.

आस्ट्रेलिया की श्रीमती पूर्णिमा पटेल ने बताया कि आस्ट्रेलियाई सरकार ने वर्ष 2016 से ऐच्छिक रूप से स्कूलों में हिन्दी पढ़ाने की अनुमति दे दी है। हिन्दी को रोजगार से जोड़ने की चर्चा में अमेरिका की श्रीमती वैष्णवी शर्मा ने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवानिया में हिन्दी में एम.बी.ए. का पाठ्यक्रम संचालित है। पाठ्यक्रम के छात्रों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में व्यापारिक कड़ी के रूप में उपयोग कर रही है। विभिन्न स्तर पर परस्पर संवादहीनता की बाधा न रहने के कारण उनके व्यापार में बहुत लाभ हो रहा है।

श्रीलंका की श्रीमती अतिला कोतलावल ने कहा कि वे 15 साल से हिन्दी शिक्षण कर रही हैं। उनके पढ़ाये 1000 से अधिक बच्चे विश्वविद्यालय पहुँच चुके हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में हिन्दी के प्रारंभिक साहित्य की कमी है। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि विदेशों में अच्छा हिन्दी शिक्षण करने वालों की सूची बनाकर उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिये।

दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दूसरे सत्र में आज ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण-समस्याएँ और समाधान’ का समापन हुआ। संयोजक और महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, श्री सतीश मेहता ने अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं। वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के पूर्व अतिथि आचार्य और व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रोफेसर प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता में आज के सत्र में भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, स्विट्जरलेण्ड, थाईलेण्ड, जर्मनी आदि से आये अनेक हिन्दी विद्वान ने अपने विचार रखे।

प्रस्तावित अनुशंसाएँ

  • सीबीएसई की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोर्ड का गठन हो।
  • पाठयक्रम की एकरूपता हो।
  • विभिन्न देशों की आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित हो।
  • समय-समय पर हिन्दी कार्यशालाओं का आयोजन किया जाये।
  • नवीन पुस्तकों का निर्माण छात्रों को ध्यान में रखकर किया जाये।
  • विभिन्न संस्थाओं के सामंजस्य के लिये स्थानीय समिति का गठन किया जाये।
  • आधुनिक तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया जाये।
  • विदेशी छात्रों के लिये पुस्तकों की भाषा सरल और सहज बनाया जाये।
  • सीबीएसई प्रणाली में परिवर्तन किया जाये।
  • शिक्षकों का विदेशों से आने के बाद प्रकाशन सामग्री देना अनिवार्य किया जाये।
  • आईसीसीआई द्वारा शिक्षकों से संबंधित जानकारी वेबसाईट पर डाली जाये।
  • विदेशी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाये।
  • अनुवाद भवन की व्यवस्था की जाये तथा अनुवादकों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाये।
  • आईसीसीआई द्वारा विदेश भेजे जाने वाले शिक्षकों को एक सप्ताह के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थानों में उनके ज्ञान को निखारने क लिये भेजा जाये।
  • शिक्षकों को कम्प्यूटर का पर्याप्त ज्ञान हो।
  • शिक्षक विदेशों में जाने से पहले भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन करें।
  • विदेशों में भेजे जाने वाले शिक्षक स्थानीय शिक्षकों के लिए कार्यशाला आयोजित करें।
  • इंडोलॉजी छात्रों को विशेष छात्रवृत्ति प्रदान की जाये।

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