स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की जिंदगी के अनछुए पन्नों से रूबरू कराने के लिए वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक उदय माहूरकर चिरायु पंडित की पुस्तक ‘वीर सावरकर- द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ का लोकार्पण दिल्ली में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के करकमलों से हुआ।
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने में हुए एक कार्यक्रम की अध्यक्षता की। यह पुस्तक ‘रूपा पब्लिकेशंस इंडिया’ की ओर से प्रकाशित की गई है।
कार्यक्रम में किताब के लेखक उदय माहूरकर ने कहा, ‘यह किताब क्रांतिकारी सावरकर के बारे में कम, देशभक्त सावरकर के बारे में अधिक बातें कहती है। उन्होंने हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की, जिसमें उन्होंने साफ़ कहा था कि सभी धर्मों को स्वतंत्र रूप से रहने की इजाजत है, उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई अल्पसंख्यक किसी परेशानी का सामना करता है तो सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।’
वहीं, किताब के सह लेखक चिरायु पंडित ने कहा, ‘वीर सावरकर का जीवन स्वतंत्रता संग्राम की जीती-जागती गाथा रहा है, वह देशभक्ति की एक जीवंत मिसाल हैं। इस किताब का सह-लेखक बनाने के लिए मैं माहूरकर जी का आजीवन ऋणी रहूंगा।’
इस दौरान केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘वीर सावरकर जैसे नायक के बारे में लिखना-पढ़ना कोई आसान काम नहीं है। सावरकर के जीवन के इतने आयाम हैं कि उन्हें एक किताब में समाहित करना चुनौती भरा काम है, जिसे इस पुस्तक के लेखकों ने बाखूबी निभाया है। मैं उदय माहूरकर व चिरायु पंडित को धन्यवाद देता हूं कि पुस्तक के बारे में सही जानकारी लोगों को मिल पाएगी। अटल जी ने भी सावरकर को तेज, त्याग और तप की प्रतिमूर्ति कहा था।’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. मोहन भागवत ने कहा, ‘आज वीर सावरकर के बारे में सही जानकारी का अभाव है, ये हमें स्वीकार करना होगा। आज सावरकर के जिन सिद्धांतों को देश की सबसे अधिक आवश्यकता है, उससे हमें रूबरू करवाने का काम ये पुस्तक करती है। जब इस देश को आजादी मिली, उसके बाद सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली और बड़ी तेजी से चली। लेकिन यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, अब अगला लक्ष्य विवेकानंद, दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद हैं। भारत की जो वास्तविक राष्ट्रीयता है, वो इन महापुरुषों में समाहित है। इन्हीं तीन लोगों के विचारों के कारण सावरकर इतने बड़े देशभक्त बने।’
आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा, “सावरकर एक राष्ट्रवादी और दूरदर्शी थे, उन्होंने जो कुछ भी कहा वह सच हो गया है, आज इसे सावरकर का युग कहना गलत नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रवादियों का युग है।” आरएसएस प्रमुख ने कहा कि “सावरकर ने उस समय की स्थिति को देखते हुए हिंदुत्व पर व्याख्या करना आवश्यक समझा था। इतने सालों के बाद अब जब हम स्थिति को देखते हैं तो दिमाग में आता है कि जोर से बोलने की जरूरत थी, अगर सभी बोलते तो शायद बंटवारा नहीं होता।”
श्री मोहन भागवत ने आरएसएस के दिवंगत विचारक पी परमेश्वरन को याद करते हुए कहा, पी परमेश्वरन ने कहा था कि “सावरकर को बदनाम करने के बाद स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati), स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) और योगी अरविंद (Yogi Arvind) को निशाना बनाया जाएगा क्योंकि उनके विचारों ने सावरकर से प्रेरणा ली और वह भारत में राष्ट्रवाद के दिग्गज थे।”
आरएसएस प्रमुख ने हिंदू धर्म को एकता की ताकत बताते हुए कहा, “मातृभूमि को एकजुट रखना हमारी जिम्मेदारी है। योगी अरविंद ने कहा था कि आखिरकार, अखंड भारत अस्तित्व में आएगा। राम मनोहर लोहिया ने भी अखंड भारत का सपना देखा था। अंडमान जेल में सावरकर का अनुभव रहा कि अंग्रेजों के लिए देश के अस्तित्व और संपत्ति को लूटने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ नियम को अपनाना जरूरी था।”
श्री भागवत ने कहा, ‘लोग जुड़ जाएं तो जिनकी दुकानें बंद होंगी उनको लगता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। स्वाभाविक है वो विचार मानवता का ही है। उस मानवता के विचार को ही भारतीय परंपरा की भाषा में धर्म कहा जाता है। धर्म यानी पूजा मानेंगे तो जोड़ता नहीं है। पूजा अलग-अलग हैं। भारतीय भाषा की परंपरा के अर्थ में धर्म का अर्थ वह नहीं है…। जोड़ने वाला, ऊपर उठाने वाला, बिखरने ना देने वाला, यह लोक और परलोक में सुख देने वाला, प्रथम, मध्य और अंत तीनों जगह आनंदमय और प्रत्येक के स्वभाव को ध्यान में रखते हुए उसके कर्तव्य का निर्धारणकरण देने वाला शाश्वत तत्व धर्म है।’