यदि प्रश्न पूछा जाए कि क्या नेहरू इंदिरा गांधी को राजनीति में लाना नहीं चाहते थे अथवा क्या नेहरू कभी नहीं चाहते थे कि इंदिरा प्रधानमंत्री बने? क्या नेहरू ने कभी कहा था कि इंदिरा को प्रधानमंत्री मत बनाना? उत्तर मिलेगा हाँ। इस उत्तर का सत्य से कितना संबन्ध है इस पर विचार करने से पूर्व हमें यह विचार करना चाहिए कि इस प्रश्न का हाँ में उत्तर का आधार क्या है? क्या इस सम्बंध में जवाहर लाल नेहरू द्वारा कथित कोई वक्तव्य अथवा आलेख उपलब्ध है? यदि नहीं तो इस प्रश्न को एक परियों की कहानी की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी वर्षों तक क्यों परोसा जा रहा है?
इन प्रश्नों का आधिकारिक उत्तर प्राप्त होता है नेहरू जी के समकालीन व वरिष्ठ पत्रकार दुर्गा दास की पुस्तक India from Curzon to Nehru and after में जो चौकाने वाला भी है।
1955 के पूर्व यह प्रश्न चर्चा का विषय बना हुआ था कि नेहरू का उत्तराधिकारी कौन होगा? सबसे प्रबल दावेदार बी के कृष्णमेनन को माना जाता था। इसके दो कारण थे एक कि दोनों वामपंथी विचारधारा रखते थे व दूसरा कि अंतर्राष्ट्रीय व कई राष्ट्रीय कार्यक्रमों में कृष्णमेनन नेहरू के साथ दिखते थे। किंतु 1955 के बाद कृष्णमेनन के नाम पर असहमति दिखने लगी। इसका कारण था कॉंग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की सबसे शक्तिशाली संस्था कॉंग्रेस वर्किंग कमेटी में इंदिरा गांधी का सीधा मनोनयन। 1955 के पूर्व तक इंदिरा नेहरू के पास कॉंग्रेस के जिला एवं प्रदेश स्तर के किसी भी पद पर कार्य करने का कोई अनुभव नहीं था। अपने पिता जवाहर लाल नेहरू की सहयोगी के रूप इंदिरा साथ दिखती थी किन्तु कॉंग्रेस के कार्यक्रमों अथवा कमिटियों से इंदिरा का कोई लेनादेना नहीं था।
इस सब से परे इंदिरा गांधी को सीधे कॉंग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह दिए जाने के बाद नेहरू को समझने वाले यह मान चुके थे कि नेहरू अपना उत्तराधिकारी चुन चुके हैं।
दुर्गा दास अपनी किताब india from Curzon to Nehru and after में लिखते हैं कि 1957 में अपने साप्ताहिक आलेख में इंदिरा का नेहरू के उत्तराधिकारी होने संबंधित आलेख लिखने के पश्चात नेहरू जी नाराज हो कर दुर्गा दास को मिलने बुलाया। जब दुर्गा दास नेहरू से मिले तो नेहरू जी ने कोई खंडन नहीं किया बल्कि यह कहा कि जब पृरुषोत्तमदास टन्डन सरदार पटेल की पुत्री मनी बेन को वर्किंग कमिटी का सदस्य बना सकते हैं तो इंदिरा क्यों नहीं? इसके उत्तर में दुर्गा दास ने कहा कि मनी बेन वर्षों से कॉंग्रेस में एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर चुकी है। जिला एवं प्रदेश स्तर की कमिटियों में कार्य करते हुए नीचे से ऊपर आई है जबकि इंदिरा को सीधे राष्ट्रीय स्तर पर नियुक्त कर दिया गया है। इस पर नेहरू ने कोई जवाब नहीं दिया।
दुर्गा दास अपनी इसी पुस्तक में लिखते हैं कि इंदिरा की सीधे राष्ट्रीय स्तर पर नियुक्त के बाद मौलाना आजाद समेत सभी वरिष्ठ नेता व पत्रकार यह मान चुके थे कि नेहरू ने इंदिरा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। एक और घटना जो चर्चा में बनी रही और जिससे यह साबित हो गया कि नेहरू अपने जीवन में ही इंदिरा को राजनीति में स्थापित करना चाहते थे। घटना तब की है जब इंदिरा को राजनीति में लाने की चर्चा चल रही थी तब कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि इंदिरा अभी बच्ची है क्या वह जिम्मेवारियां संभाल पाएगी? इस पर नेहरू लगभग चिल्लाते हुए कह उठे कि कौन कहता है कि इंदिरा कमजोर है और जिम्मेवारियां नहीं संभाल सकती?
इन दो प्रकरणों से यह स्पष्ट है कि नेहरू अपने जीवन में ही इंदिरा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके थे और इस बात की खबर उस दौर के सभी नेताओं एवं पत्रकार/साहित्यकारों को थी। प्रश्न यह है कि जब नेहरू द्वारा इंदिरा को स्थापित किया गया और यह बात सभी जानते थे तो फिर वर्षों तक इस स्तय को छिपाते हुए आखिर क्यों बार बार बताया गया कि नेहरू ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने अथवा राजनीति में लाने से मना किया था? वह कौन लोग थे जो नेहरू को महान बताने का प्रयास करते हैं जबकि वे राजनीति में परिवारवाद के संस्थापक थे। उस दौर के सभी प्रतिभाओं को राजनीतिक हाशिए पर पहुंचा कर अपनी बेटी को राजनीति के केंद्र में स्थापित करने वाले नेहरू के बारे झूठी खबरें फैलाने वाले एक ही विचारधारा के लोग है और उनकी विचारधारा वही है जो नेहरू की थी और वर्तमान कॉंग्रेस की है यानी वामपंथ की।
भारतीय इतिहास में कई बड़ी घटनाओं को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया कि भारतीय राजनीति एक विचार व एक व्यक्ति के अधिनायकवाद को अपना सौभग्य मान उसके इर्दगिर्द घूमती रहे। जिसके फलाफल में उस व्यक्ति के बाद उसके परिवार का राष्ट्र आदी बन जाए। और पीढ़ियों की भारत के सच्चे इतिहास से दूर कर दिया जाय।
झूठ की स्याही से नेहरू चालीसा लिखने वाले वामपंथियों के एक और झूठ का पर्दाफाश हो चुका है किंतु जबर थेथरलॉजो के आदी वामपंथी बार बार पकड़े जाने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते।
नेहरू जी का बच्चों से कैसा सम्बंध और उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का कोई सार्थक आधार न होने के बाद भी बाल दिवस का प्रचार करने वाले नेहरुवादी वामपंथी इस प्रश्न से बिफर जाते हैं कि नेहरू जी के जन्म जयंती पर बाल दिवस क्यों? सामूहिक झूठ-अफवाह के तंत्र पर जीने वाला वामपंथ के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है।
डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा एवं अन्य माध्यमों से रोजगार के कई अवसर उपलब्ध करवाने व आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के जन्मदिन पर कॉंग्रेस व वामपंथियों द्वारा बेरोजगार दिवस ट्रेंड करवाया जा सकता है तो भारत में अपनी बेटी को सीधे कॉंग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सेट करने वाले नेहरू जी के जन्मदिन को राष्ट्रीय_परिवारवाद_दिवस अथवा राष्ट्रीय बाल-बच्चा सेट दिवस के रूप में क्यों नहीं मनाया जा सकता है? बाल दिवस का कोई आधार न होने के बाद भी बाल दिवस मनाया जा सकता है तो नेहरू जी द्वारा परिवारवाद को स्थापित करने का प्रमाण उपलब्ध होने के बाद परिवारवाद दिवस मनाने में कोई अचरज नहीं होना चाहिए।
राष्ट्रीय परिवारवाद दिवस की शुभकामनाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं व समसामयिक विषयों पर लिखते हैं)