एक बार मुल्ला नसरुद्दीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया। मुल्ला समय से पहुँचे और स्टेज पर चढ़ गये,“क्या आप जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ? मुल्ला ने पूछा।
“नहीं” सामने बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया।
यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गये,”जिन लोगों को यह भी नहीं पता कि मैं क्या बताने वाला हूँ, मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है।” और ऐसा कह कर वह चले गये।
उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुद्दीन को आमंत्रण भेजा।
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया,“क्या आप जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ?”
“हाँ”, सामने बैठे लोगों का समवेत उत्तर आया।
“बहुत खूब। जब आप सब पहले से ही जानते हैं, तब भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्बाद करूँ”, और ऐसा कहते हुए मुल्ला वहाँ से निकल लिए।
अब लोग थोड़ा क्रोधित हो उठे। पर उन्होंने एक बार फिर मुल्ला नसरुद्दीन को आमंत्रित किया।
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया,“क्या आप जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ?”
इस बार सभी ने चूँकि पहले से ही योजना बना रखी थी, इसलिए आधे लोगों ने “हाँ” और आधे लोगों ने “ना” में उत्तर दिया।
“ठीक है, जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ, वो बाकी के आधे लोगों को बता दें।” और यह कहते हुए मुल्ला नसरुद्दीन एक बार फिर वहाँ से निकल लिए।
अब तो लोगों के गुस्से का ठिकाना ही न रहा। अबकी लोगों ने सोच लिया कि इस बार मुल्ला नसरुद्दीन को छोड़ना नहीं है। इस बार यदि मुल्ला ने कुछ न बताया तो अबकी मुल्ला की बक्कल तार देनी है!
इस बार फिर आमंत्रित होने पर मुल्ला नसरुद्दीन भी आ ही गये। इस बार चूँकि उन्होंने देखा कि माहौल थोड़ा ज्यादा गर्म है, सो उन्होंने सामने बैठे लोगों से कोई प्रश्न पूछने की बजाए अबकी कुछ बताना ही उचित समझा और बोला कि..
“कुछ भी कहो साथियों,
.
पर इस बार..
..
आएंगे तो योगी ही!”
इसके बाद फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया!