कोटा। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देश आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत सांस्कृतिक विकास को संरक्षित करने और बनाए रखने में जागरूकता की दृष्टि से डॉ.सिंघल की प्रकाशित पुस्तक “पर्यटन और संग्रहालय ” के अवसर पर ” हमारे जीवन के समृद्ध अतीत की याद दिलाने में संग्रहालय की अहम भूमिका ” विषय पर ऑन मोबाइल राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। आज भारत के 1000 से ज्यादा संग्रहालय सांस्कृतिक विरासत के प्रदर्शन और संरक्षण के साथ – साथ भावी पीढ़ियों को शिक्षित भी कर रहे हैं। हमने
देश के विभिन्न राज्यों से कई विद्वान,पत्रकार और पर्यटन प्रेमियों से विचार आमंत्रित किए। परिचर्चा में राजस्थान ,उत्तरप्रदेश,हरियाणा,दिल्ली,महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों से प्रतिभागियों ने भागीदारी कर अपने विचार व्यक्त किए।
ज्यादातर प्रतिभागियों का मत था कि संस्कृति के संवाहक संग्रहालयों को विदेशी संग्रहालय की तरह आकर्षक बनाया जाए। पर्यटन के अन्य स्थलों की तरह इनकी भी प्रभावी मार्केटिंग की जाए जिस से हमारी सांस्कृतिक विरासत का अधिक से अधिक पर्यटक दर्शन कर सकें। हरियाणा सरकार में कला परिषद के पूर्व निदेशक
गुरुग्राम के अजय कुमार सिंघल कहते हैं कि सुक्ष्म रूप से इस विषय पर कुछ कहना है तो यही कहा जाएगा कि संग्रहालय अतीत का सत्यापन है। अपने अतीत का सैद्धांतिक पक्ष हम पुस्तकों ग्रंथों द्वारा जान जाते हैं परंतु संग्रहालय में रखी हुई सभी संग्रहित वस्तुओं को देखकर उसका प्रयोगात्मक परीक्षण भी हो जाता है।
पंचकुला से देश – विदेश के कई संग्रहालयों का भ्रमण कर चुकी पर्यटक मृदुला अग्रवाल कहती हैं सांस्कृतिक संरक्षण, संवर्धन और संचरण में संग्रहालयों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए जरूरी है कि इनका रख रखाव समुचित रूप से हो। पुरानी वस्तुओं को क्या देखना, सोच कर कम ही लोग इन्हें देखने जाते हैं। विचारणीय है कि क्यों विदेश जाने वाले भारतीय पर्यटक वहां के संग्रहालय देखने में रुचि लेते हैं जबकि भारत आने वाले पर्यटक यहां के संग्रहालयों के प्रति कम रुचि रखते हैं। संग्रहालयों पर आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि इनमें प्रदर्शित वस्तुओं के प्रदर्शन को आकर्षक बनाया जाए उन्हें आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया जाए। वह कहती हैं संग्रहालय खूबसूरत बने और इन्हें भी अन्य पर्यटक स्थलों की तरह प्रचार में शामिल कर मार्केटिंग किए जाने की आवश्यकता है।
लखनऊ से एक न्यूज़ पोर्टल के संपादक रहे पत्रकार विनय पाठक कहते हैं की संग्रहालय वर्तमान को अतीत से सम्बद्ध करता है, या यूं कह सकते हैं कि संग्रहालय वर्तमान से अतीत के संवाद का सशक्त माध्यम हैं। अगर हम संग्रहालय शब्द की व्याख्या या उत्पत्ति की चर्चा करें तो हम देखेंगें कि 15वीं शताब्दी मे पश्चिम में संग्रहालय शब्द को संग्रह के वर्णन करने के लिए पुनर्जीवित किया गया था। ये कहा जा सकता है कि संग्रहालय अतीत की सांस्कृतिक,राजनैतिक, आर्थिक या मानव जाति के उन्नयन को प्राथमिक साक्ष्य के रूप मे समेट कर वर्तमान को उससे रूबरू कराने का सबसे मौलिक साध्य हैं।
दिल्ली के भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण के से. नि. उप महाप्रबंधक( विद्युत इंजीनियरिंग) एवं पर्यटन के शौकीन यू. के. गोयल ने कहा कि संग्रहालय देश में पर्यटन के विकास में सहायक होते हैं और न केवल नई पीढ़ी को वरन विदेशी पर्यटकों को भारत की प्राचीन कला – संस्कृति की जानकारी देने का बड़ा माध्यम हैं। उन्होंने कहा कि आज देश में कई जगह हवाईजहाज संग्रहालय भी विकसित किए गए हैं। इनसे पर्यटकों का हवाईजहाज के विकास और इस से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी दे कर ज्ञानवर्धन करते हैं।
एक समाचार पत्र की संपादक एवं पत्रकार बड़ोदरा की रेणु शर्मा ने कहा कि संग्रहालय न सिर्फ कला संग्रह की इमारतें हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक विरासत और अनुभवों का भंडार हैं, जिससे हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं। संग्रहालय को देख कर हम अपनी विरासत के अनूठे अतीत पर गर्व की अनुभूति करते हैं। मुंबई से पर्यटन प्रेमी शरद गोयल ने कहा कि संग्रहालय हमारे अतीत का दर्पण हैं जो पर्यटकों को अतीत की संस्कृति से जोड़ता है।
राजस्थान खादी बोर्ड के उपाध्यक्ष पंकज मेहता ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति, इतिहास, और अतीत के विभिन्न पहलुओं की जानकारी देने में संग्रहालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राजस्थान सरकार राज्य में संग्रहालयों को आधुनिक और आकर्षक बनाने का प्रयास कर रही है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कोटा में रहे जिला कलेक्टर ( वर्तमान में जयपुर) उज्ज्वल राठौर ने कहा कि संग्रहालय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सम्बन्धों की स्थापना में योगदान देकर विभिन्न संस्कृतियों, राष्ट्रीय परम्पराओं और सांस्कृतिक विरासत के अध्यन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोटा जैसी जगह पर जो कि राजधानी भी नहीं है, रह कर लेखक ने देश-प्रदेश के संग्रहालयों पर काफी परिश्रम से कार्य किया है। ये पर्यटन के विविध पहलुओं पर निरन्तर लिख रहे हैं जो अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। जयपुर के इतिहासविद डॉ.बी.के.शर्मा ने कहा कि संग्रहालयों का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि आज संग्रहालय केवल हमारे इतिहास,पुरातत्व और कला – संस्कृति तक ही सीमित नहीं रहें वरन वानिकी, जीवाश्म, जीव जंतु, मानव विज्ञान, रेल,हवाईजहाज, विज्ञान, अंतरिक्ष और अनेक क्षेत्रों में संग्रहालय बन गए हैं। ये सभी संग्रहालय मानव की ज्ञान पिपासा को शांत कर पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।
जयपुर के बाल मुकुंद ओझा जनसंपर्क कर्मी एवं पत्रकार ने कहा कि भारत के संग्रहालय देश की समृद्ध लोक कला, दस्तकारी,वास्तुकला, संस्कृति, परम्पराओं और ऐतिहासिक अतीत के अनुपम खजाने के रूप में देश और दुनिया में विख्यात हैं। प्राचीन सभ्यताओं सहित हजारों साल पुराने अवशेषों और कलाकृतियों को बखूबी सम्भाल कर रखा गया हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी को इनसे परिचय कराने में संग्रहालयों की अहम भूमिका है। जयपुर के पूर्व प्राचार्य और भूगोल अध्येता डॉ.रामावतार शर्मा का कहना है कि संग्रहालय प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान युग तक संस्कृति के साथ चलते हैं और पर्यटकों को संस्कृति के इस विकास क्रम से अवगत करा कर ज्ञान और समझ बढ़ाने में सहायक होते हैं।
उदयपुर के पन्नालाल मेघवाल जनसंपर्क कर्मी एवं पत्रकार ने कहा कि संग्रहालय ऐसे संस्थान हैं जहां मानव और पर्यावरण की विरासतों के संरक्षण के लिए उनका संग्रह, शोध, प्रचार और प्रदर्शन किया जाता है जिसका उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिए होता है। वह कहते हैं सन् 1784 ईस्वी में सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की। एशियाटिक सोसायटी के प्रयास से सन् 1814 ईस्वी में भारतीय संग्रहालय कलकत्ता की स्थापना हुई जिसे भारत का प्रथम संग्रहालय होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संग्रहालय की स्थापना के बाद देश में अनेक संग्रहालयों की स्थापना हुई।
कोटा के इतिहासविद फिरोज अहमद ने कहा कि संग्रहालयों के माध्यम से ही हमें इतिहास, कला, संस्कृति और पर्यटन के संबंध में जानकारियां प्राप्त होती हैं। वह बताते हैं भारत में सालारजंग म्यूज़ियम हैदराबाद, नेशनल म्यूज़ियम दिल्ली, भारत कला भवन बनारस, नगर परिषद संग्रहालय इलाहाबाद, अल्बर्ट म्यूज़ियम जयपुरआदि प्रसिद्ध संग्रहालय हैं। मथुरा का संग्रहालय अपनी दुर्लभ मूर्तियों के संग्रह के कारण पूरे भारत में प्रसिद्ध है। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा के प्रभारी एवं संभागीय अधीक्षक डॉ.दीपक कुमार श्रीवास्तव ने पर्यटन में संग्रहालय की उपयोगिता बताते हुए कहा कि भारतवासी ही नहीं विदेशी सेलानी भी इन्हें देख कर आश्चर्य करते हैं।इतिहास,सभ्यता और संस्कृति को एक स्थान पर जानने का संग्रहालय से बढ़ कर दूसरा कोई अन्य स्रोत नहीं है।
कोटा के एडवोकेट एवं सोशल एक्टिविस्ट अख्तर खान ‘ अकेला ‘ ने कहा कि संग्रहालय निश्चित तौर पर हर तरह के इतिहास का पाठ्यक्रम होते हैं। संग्रहालय देश के लोगों को इतिहास से रूबरू करता हैं, जो वर्तमान दौर की संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक संरचनाओं को समझने के लिए आवश्यक है। भारत समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की भूमि है और इसे संरक्षित और प्रचारित करने में हमारे संग्रहालय अद्भुत माध्यम हैं। कोटा के पत्रकार सुनील माथुर का कहना है कि जीवन में संग्रहालय की की एक विशिष्ट भूमिका है, संग्रहालय कोई विशिष्ट इमारत भर नही है बल्कि सही मायने में यह हमारे सम्रद्ध अतीत की यादों को संजोए महत्व पूर्ण दस्तावेजों का संग्रह हैं। कोटा,जयपुर, बूंदी, झालावाड़ से कई अन्य प्रतिभागियों ने भी परिचर्चा में भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किए।