अखिलेश यादव अब दुर्योधन की भूमिका में उपस्थित हैं। उन के सपने में श्रीकृष्ण भले आते हों , यदुवंशी भले बताते हों अपने को अखिलेश यादव पर उन के पास सलाहकार के तौर पर कृष्ण की एक परछाईं भी नहीं है। सही सलाहकार की जगह तमाम चाटुकारों से घिर गए हैं अखिलेश यादव। तमाम शकुनी लोगों से घिरे अखिलेश यादव की बॉडी लैंग्वेज बताती है कि भले वह यह चुनाव हार रहे हों पर सत्ता का मद उन्हें चूर किए हुए है। उन के लोग न सिर्फ़ उन्हें ग़लत सूचनाएं परोस रहे हैं बल्कि ग़लत समझ से भी लैस कर रहे हैं। सत्ता के लिए बौखलेश बने अखिलेश सही ग़लत का फर्क भूल गए हैं। दो-चार वाकया सुनिए।
जैसे कि अपने भाषणों और इंटरव्यू में वह इन दिनों कहते हैं कि बाबा मुख्य मंत्री कहते हैं कि मैं बहुत देर से जगता हूं। लेकिन अब मैं भी उन पर नज़र रखने लगा हूं। अखिलेश जैसे जोड़ते हैं कि बाबा मुख्य मंत्री और मेरे घर की बाउंड्री एक है। और रोज शाम को मैं देखता हूं कि बाबा मुख्य मंत्री के घर से धुआं निकलता है। अखिलेश यादव का इशारा होता है कि बाबा मुख्य मंत्री चिलम पीते हैं। एक तो चिलम की सूचना ग़लत है। दूसरे मुख्य मंत्री के 5 कालिदास मार्ग के सरकारी निवास से लगी बाउंड्री भी एक सरकारी बंगले की ही है। अखिलेश यादव का नहीं है यह बंगला।
विक्रमादित्य मार्ग पर जो सरकारी बंगला अखिलेश के पास था , वह 2017 में ख़ाली कर गए। हां , उस बंगले की टाइल , टोटी भी उखाड़ ले गए। आप को याद ही होगा। अखिलेश यादव या उन के परिवार के पास अब कोई सरकारी बंगला नहीं है , वहां आस-पास। एक शिवपाल यादव के पास सरकारी बंगला है , वह माल एवेन्यू में है। जो कालिदास मार्ग पर स्थित मुख्य मंत्री के बंगले से दूर है। वहां से कोई कुछ नहीं देख सकता। अखिलेश यादव और उन के परिवार के पास विक्रमादित्य मार्ग के बहुत सारे बंगले हैं पर कोई सरकारी नहीं है। लगभग पूरा विक्रमादित्य मार्ग अखिलेश यादव परिवार का है। सब निजी हैं। कैसे है , इस पर सी बी आई जांच लंबित है। 5 कालिदास मार्ग , मुख्य मंत्री के सरकारी बंगले से बहुत दूर हैं। ख़ैर।
एक राष्ट्रीय चैनल के संवाददाता से बात करते हुए अखिलेश बोले , आप का चैनल बहुत बड़ा है पर आप को मैं नहीं जानता। यह कहते हुए बड़ी ऐंठ से वह हेलीकाप्टर में जा कर बैठ गए। कोई बात नहीं। अखिलेश यादव के अहंकार और बौखलाने के अनेक क़िस्से उपस्थित हैं। ठीक है कि हर किसी रिपोर्टर को हर कोई नहीं जान सकता। लेकिन अहंकार में चूर हो कर यह कहना भी ज़रुरी है ?
सोशल मीडिया पर अखिलेश के पालतू पत्रकार ने आज लिखा कि योगी सरकार के एक अधिकारी जो अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं , अखिलेश यादव के पास चुपके से जा कर मुलाक़ात की। क्या तो वह अखिलेश यादव की सरकार बनते देख रहे हैं , इस लिए। इसी टिप्पणी में पालतू पत्रकार लिखता है ताकि अखिलेश सरकार बनते ही वह केंद्र में नियुक्ति के लिए अखिलेश सरकार से एन ओ सी पा जाए। जाहिर है इस पालतू पत्रकार को केंद्र में प्रतिनियुक्ति की प्रक्रिया भी नहीं मालूम। मालूम होती प्रक्रिया तो ऐसा नहीं लिखता।
और तो और एक दूसरे पालतू पत्रकार ने आज लिखा है कि इन दिनों अखिलेश यादव को एक आई ए एस अधिकारी रोज तीन-चार बार गुड मॉर्निंग मेसेज भेजने लगे थे। आजिज आ कर अखिलेश यादव ने उक्त आई ए एस अधिकारी को ब्लॉक कर दिया। ग़ज़ब है। तमाशा यहीं खत्म नहीं होता। एक दुकानदार पत्रकार इस सब को ख़बर बना कर परोस देता है। मनो अखिलेश यादव इन पत्रकारों को बताते फिरते हैं कि कौन मुझ से , कब मिलने आया रात के अंधेरे में , किस को उन्हों ने ब्लॉक किया। ग़ज़ब है यह भी। लेकिन किसी भी पालतू ने किसी अधिकारी का नाम कहीं दर्ज नहीं किया है। करे भी कैसे ? जब कुछ सच हो तब न ! बस नकली माहौल बना कर प्रोपगैंडा करना है। नाम लिखेंगे तो क़ानूनी रुप से फंस जाएंगे यह सभी दलाल पत्रकार।
एक पालतू और दलाल पत्रकार जो यू ट्यूबर भी है को दिए गए इंटरव्यू में दैनिक जागरण अख़बार को भी अपशब्दों से पाट दिया है अखिलेश यादव ने। अखिलेश यादव भूल गए कि दैनिक जागरण के मालिकों को उन के पिता ने न सिर्फ़ पेड न्यूज़ के तहत निरंतर ख़रीदते रहे हैं बल्कि सपा की तरफ से जागरण मालिकों को राज्य सभा में भी भेजते रहे हैं। तमाम अन्य व्यावसायिक लाभ मुलायम ही नहीं , अखिलेश यादव भी देते रहे हैं जागरण के मालिकानों को।
एक और तमाशा देखिए। अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है कि लखनऊ के स्ट्रांग रुम में एक सरकारी अधिकारी हथौड़ा , पिलास ले कर ई वी एम हैक करने पहुंचा। ग़ज़ब बुद्धि पाई है इस यदुवंशी ने। कि हथौड़ा , पिलास से ई वी एम हैक करवा देता है। जो स्लोगन भी लिखता है यह यदुवंशी तो नरेंद्र मोदी से उधार ले कर , जब तक गिनाई नहीं , तब तक ढिलाई नहीं ! याद कीजिए जब तक दवाई नहीं , तब तक ढिलाई नहीं ! अखिलेश यादव इसी तरह की तमाम राहुल गांधियाना हरकतें करते मिलते हैं। ठीक है कि प्यार और युद्ध में सब कुछ जायज होता है। प्रोपगैंडा भी करना ही होता है चुनाव में। सभी करते हैं। मीडिया को हथियार बनाते ही हैं। सब ठीक। सभी करते हैं। कोई हर्ज नहीं।
लेकिन तीन चक्र में डेढ़ सौ से कुछ अधिक सीट पर चुनाव होता है और अखिलेश यादव बताते हैं कि दो शतक लगा दिया है। क्या इसी तरह 400 सीट जीतेंगे अखिलेश यादव ? यह क्या है ? इतना यादव होना भी गुड बात नहीं है। जाकेट की जेब में ‘ गरम पानी ‘ का इतना असर होता है भला ! सवाल उठता है कि कोई सलाहकार सही सूचना नहीं दे रहा तो क्या सही गणित भी नहीं बता सकता सीटों की। पर तमाम शकुनि लोगों से घिर कर शकुनि चाल चलना भी फलदायी नहीं होता। अखिलेश यादव क्या यह भी नहीं जानते ? सच तो यह है कि कोई डेढ़ सौ से अधिक सीटों पर समाजवादी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने जा रही है। लेकिन बाघ से बिल्ली के लड़ जाने को अगर आप बहादुरी मानते हैं तो धन्य हैं आप और आप की यह बीमारी।
महाभारत की एक घटना याद आती है।
धृतराष्ट्र को दुर्योधन सर्वदा जीतता हुआ सा ही दीखता था। यहां तक कि दुर्योधन युद्ध में मारा गया फिर भी वह दुर्योधन के विजयी होने का समाचार सुनने को लगातार उत्सुक था । चाटुकार उसे सही सूचना नहीं दे रहे थे । युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाने वाले संजय भी इस बिंदु पर आ कर ख़ामोश हो गए थे । वह तो अचानक एक ब्राह्मण , जय हो , जय हो ! कहते हुए महल के सामने से गुज़रा। तो प्रहरी भेज कर धृतराष्ट्र ने उस ब्राह्मण को बुलवाया। बैठाया और उसे तमाम उपहार से लाद दिया। ब्राह्मण घबराया और बोला , यह सब क्या है महाराज ! धृतराष्ट्र ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि , ‘ तुम्हीं तो हो जो शुभ समाचार लाए हो। ‘ ब्राह्मण अचरज में पड़ गया। पूछा कि , ‘ कौन सा शुभ समाचार ? ‘ धृतराष्ट्र ने कहा , ‘ दुर्योधन की विजय का समाचार ! ‘ ब्राह्मण हड़बड़ा गया। बोला , लेकिन दुर्योधन तो मारा गया है युद्ध में। आप को किसी ने बताया नहीं ? ‘ धृतराष्ट्र को ब्राह्मण की बात पर विशवास नहीं हुआ। पूछा कि तुम अभी जय हो ! क्यों कह रहे थे ? ब्राह्मण ने कहा , जब भी महल के सामने से गुज़रता हूं तो ऐसा कहता हूं। और भी जगह। तो उस ने बिना किसी रियायत के बताया कि दुर्योधन युद्ध में मारा गया। यह कह कर ब्राह्मण सारे उपहार वापस देने लगा। कहा कि ब्राह्मण हूं , उपहार लेने के लिए झूठ नहीं बोल सकता। लेकिन उस ब्राह्मण को अनसुना करते हुए मारे ख़ुशी के धृतराष्ट्र उसे उपहार देने लगा कि दुर्योधन विजयी हो गया है । लेकिन जब ब्राह्मण ने उसे फिर बताया कि दुर्योधन तो युद्ध में मारा जा चुका है तब भी वह उदास तो हुआ लेकिन दुर्योधन के मारे जाने की ख़बर पर सशंकित रहा।
मुश्किल यह है कि इस समय अखिलेश यादव समेत हमारी राजनीतिक पार्टियों और उस के तमाम समर्थकों की स्थिति भी उसी धृतराष्ट्र सरीखी है। मीडिया की क्या बात करें वह तो जाने कहां कहां और जाने कितने मोड़ पर क़दम-दर-क़दम बिकी हुई है । और सोशल मीडिया तो मीडिया के कचरे और जूठन पर पलती हुई बेलगाम हो चली है। इस लिए तमाशा रोज जारी है। ग़ालिब का एक शेर याद आता है :
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया, मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा, मेरे आगे
लेकिन वह कहते हैं न कि कुछ कुत्तों की बीमारी का इलाज कहीं नहीं है। लाइलाज हैं। जैसे दौड़ते ट्रक के सामने दौड़ कर मर जाना ऐसे कुत्तों की नियति होती है। आप कर भी क्या सकते हैं। अगर आप ग़लती से ट्रक से बचने की सलाह दे दें तो बचे हुए कुत्ते आप पर भौंकते ही रहते हैं। भौंकते हुए ही फिर से आ रहे ट्रक के आगे दौड़ने लगते हैं। उन की यही बहादुरी है। अगर उन की इस बहादुरी का आप कुछ कर सकते हों तो कर लीजिए। सलाह देते और उन्हें बचाने की धुन में अचानक पता चलेगा कि एक दिन आप भी उन के साथ ट्रक के आगे दौड़ते हुए कुचले हुए पाए जाएंगे। फिर तमाम ट्रक आप को कुचलते हुए निकलते जाएंगे। आप का पता भी नहीं चलेगा। पोस्टमार्टम के लायक़ भी नहीं मिलेंगे आप।
साभार-https://sarokarnama.blogspot.com/2022/03/blog-post.html से