मृत्यु , क्या है मृत्यु? मृत्यु वो शब्द है जिसका नाम ही काफी है इंसान के दिलो दिमाग में डर पैदा करने के लिए। एक छोटा सा शब्द मृत्यु इंसान को डरा देती है, और मौत से भयभीत इंसान हर पल, हर क्षण उसी मृत्यु के डर से मरता रहता है। मौत से बचने के लिए भागता रहता है पर मृत्यु वो सत्य है जिसे कोई नहीं झुठला सकता, फिर वो सम्राट हो या रंक कोई उसकी पहुच से बच नहीं सका। हर परिस्थिति को चेहरे – मोहरे लगाकर जीने के बाद भी जीने के बाद मृत्यु की घोषणा हो जाती है। सम्राट भी मौत के नाम से भयभीत हो जाते है किन्तु मौत जीवन के एक- एक पल का हिसाब रखती है जीवन की हर परिस्थितियों को भी हर्षपूर्वक जिया फिर भी मृत्यु आने पर जीवन की घोषणा हो गयी।
उक्त विचार राष्ट्रसंत आचार्यश्री जयंतसेनसुरिश्वर जी म.सा. के शिष्य मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय जी म.सा. ने मुम्बई स्थित सात रास्ता जैन संघ को संबोधित करते हुए कहा। मुनि श्री ने आगे कहा की मौत के आते ही सब कुछ छूट जाता है वो देख तड़पता मानव सबके सामने भीख मांगता है प्राणों के भीख की कही जीवन छूट ना जाये….किन्तु वास्तविक स्थिति यह है की जीवन का उपयोग सत्य के लिए हुआ ही नहीं और जब सत्य का सामना जुटाने की परिस्थिति आई तब सब मूल्य रहित लगता था। मृत्यु देह का है शास्वत आत्मा का नहीं देह की यात्रा हर जन्मों में होती ही रही है लेकिन मृत्यु का दर्शन हुआ ही नहीं, लेकिन बार- बार मृत्यु के डर से भयभीत मानव मरता ही रहा है। उसके बाद भी मौत को मारने की कोशिश एक पल भी पुरषार्थ नही किया। मृत्यु ही मर गया तो निर्भयता की यात्रा से कौन रोक सकता है। मृत्यु का जन्म ही ना हो वही सत्य का शिखर है। पृथ्वी सारी मौत को बचाने की कोशिश करती है लेकिन प्रभु महावीर के संदेश के बिना मृत्यु को पहचानेंगे कैसे? जब तक प्रभु के संदेशो को ग्रहण नहीं करेंगे अहिंसा पथ के पथिक नहीं बनेंगे तब तक हम मृत्यु पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। मृत्यु को मारना (विजय प्राप्त करना) यानि परम त्याग से जीवन जीना…. आपका त्याग अपूर्व सौंदर्य को लाता है और उस सौंदर्य की प्राप्ति जीवन को धन्य बना देती है।