ज्ञान, योग्यता और रोजगार की जरूरत पर बल
राजनांदगांव। समावेशी, सहभागिता पूर्ण और समग्र दृष्टिकोण से देश के लिए एक नई शिक्षा नीति तैयार किया जाना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी और बाद में उसे संशोधित भी किया गया था । तब से अब तक अनेक बदलाव हुए हैं, जिसकी वजह से नीति में संशोधन की आवश्यगकता है। भारत सरकार, लोगों की गुणवत्तापरक शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान संबंधी पहलुओं के ज्यादा निकट लाने के लिए नई शिक्षा नीति लाना चाहती है, जिसका उद्देश्य भारत को, इसके छात्रों को कौशल तथा ज्ञान प्रदान करके देश को महाशक्ति बनाना है।
उक्ताशय के उदगार शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नई शिक्षा नीति पर आयोजित जिला स्तरीय कार्यशाला में वक्ताओं ने व्यक्त किये। प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2015 के राष्ट्रीय स्तर के मसौदे के निर्माण में खंड और जिला स्तर पर दिए गए सुझावों की भी अहम भूमिका रहे इस दृष्टि से यह कार्यशाला आहूत की गई है। यह एक क्रांतिकारी पहल है। इसमें दिए गए सुझावों का प्रतिवेदन उच्च स्तर पर भेजा जाएगा। इससे पहले डॉ.के.के. देवांगन ने कार्यशाला की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला में निर्देशानुसार प्रस्तावित बिन्दुओं की क्रमबद्ध चर्चा करते हुए संस्था के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने आरम्भ में बताया कि ज्ञान, योग्यता और रोजगार की जरूरत पर बल देते हुए शिक्षा के सरोकारों को ज्यादा प्रभावी ढंग से जमीनी अहमियत तक पहुँचाने के मद्देनज़र नई शिक्षा नीति के निर्माण की यह प्रक्रिया पूरे देश में जारी है। लिहाज़ा, उन्होंने कार्यशाला में उपस्थित प्राचार्यों, प्राध्यापकों, अतिथि व्याख्याताओं, स्टाफ कर्मचारियों सहित शिक्षाविदों, गणमान्यजन, जनभागीदारी सदस्यों, पूर्व छात्रों, वर्तमान छात्र-छात्राओं को अपने सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया। दो घंटे तक पूरी लगन और गंभीरता के साथ सतत रूप से चली कार्यशाला के दौरान पूर्व प्राचार्य डॉ,हेमलता मोहबे, जनभागीदारी समिति के पूर्व अध्यक्ष और समाजसेवी श्री अशोक चौधरी, उद्योगपति श्री संतोष जैन,श्री नीरज वाजपेयी, प्राचार्य डॉ.बी.एन.मेश्राम, प्राचार्य डॉ.गन्धेश्वरी सिंह, प्राचार्य डॉ.मंडावी, डॉ.ओंकारलाल श्रीवास्तव, डॉ.देवेन्द्र साहू सहित अन्य अनेक क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने अपने-अपने महत्वपूर्ण विचार साझा किये।
बौद्धिक विमर्श के साथ-साथ उत्साहपूर्ण सहभागिता के रचनात्मक वातावरण से कार्यशाला मील का पत्थर साबित हुई।