महोदय,
पिछले 1400 वर्षो से हिन्दू समाज की सहिष्णुता व उदारता ने ही उसे अच्छे बुरे के ज्ञान को धूमिल करके कायर बना दिया और भगवान श्री राम व श्रीकृष्ण के धर्मानुसार आचरण करके धर्म की रक्षा करना ही भुला दिया।अधर्म पर धर्म की विजय का पाठ पढ़ाने वाले रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथो को कपोल कल्पित बताकर हमें अपने धर्म से विमुख करने के अनेक षड्यंत्र रचे जाते रहें है।हिन्दू धर्म के प्रेरणादायी इतिहास को भुला कर उसके स्थान पर विधर्मियों के द्वारा हमारी संस्कृति को पतित करके हमारे धर्म को नष्ट करने के इतिहास को दशको से पाठ्य पुस्तकों में प्रचारित किया जाता आ रहा है। हमारे पतन की गाथाओं को पढ़ा कर धर्म बलिदानियों के जीवन को व्यर्थ बना दिया गया।
आज हिंदुओं की आस्थाओं पर प्रहार करने वाले दुष्टो को कोई उसी की भाषा में समझाता है तो कहा जाता है कि हिन्दू असहिष्णु व हिंसक हो गया है । वह साम्प्रदायिक हो रहा है।वह मानवता विरोधी है, धर्मनिरपेक्षता का पालन नहीं करता, भगवा आतंकवाद बढ़ रहा है अल्पसंख्यकों का जीवन संकट में है इत्यादि इत्यादि। आज विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनो की भी रुचियां हमारे देश में बढ़ रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि भारत विरोधी शक्तियां घर के भेदियो के साथ मिलकर अधिक सक्रिय हो गयी है । जयचंदो का इतिहास दोहराये जाने की तैयारी हो रही है।
यह कोई नहीं समझता कि हिंदुओं की सहिष्णुता का ही परिणाम है कि धर्म के आधार पर विभाजित होने के बाद भी भारत आज तक धर्मनिरपेक्ष बना हुआ है। यहां अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक हिंदुओं से भी अधिक अधिकार दिए जाने पर भी हिन्दू कभी असहिष्णु नहीं हुआ।सीमाओँ पर विधर्मियो की व्यापक घुसपैठ से जिहादियों के विस्फोटक हमलों को भी सहन करना सहिष्णुता बन गयी है।यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सहिष्णुता व उदारता हिंदुओं के रक्त में इतनी अधिक घुल गई है जिससे वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी सक्रिय नहीं हो पाते। अधिक दूर न जाते हुए पिछले 25 वर्षो में कश्मीर के हिन्दुओ का सर्वनाश इसका साक्षी है। असंतुलित जनसँख्या आकड़ें व 8 राज्यों में हिंदुओं का अल्पसंख्यक होना भी हिंदुओं को सहिष्णुता के कारण ही चिंतित नहीं कर रहा और अपने अन्धकारमय होते भविष्य को समझते हुए भी गहरी निंद्रा से जागना नहीं चाहता। अतः फिर क्यों हिंदुओं को असहिष्णु कहकर उसके कोमल ह्रदय को आहत किया जा रहा है ?
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद